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कविता का भाव

जो परिणाम को ही जिंदगी मान लेते हैं……

तो वो हम सबके बीच होता…..
तो वो हम सबके बीच होता….

आज सभी परीक्षा का परिणाम पूछ रहे हैं।
परीक्षा में आए प्राप्तांकों का नाम पूछ रहे हैं।
पूछ रहे हैं कि फेल होने पर तुम क्या करोगे?
पिछड़ने पर समय का हर्जाना कैसे भरोगे?

कोई पूछ रहा है कि कितनी मेहनत की?
कोई कह रहा है क्यों कम इतनी मेहनत की?
किसी ने कहा कि थोड़ा तो और पढ़ लेते।
पास होने की थोड़ी-सी सीढियां और चढ़ लेते।

किसी ने इसी बात को थोड़ा प्यार से पूछा।
किसी ने इसी बात को थोड़ा खार से पूछा।
किसी ने इसी बता को अन्य चार से पूछा।
और किसी ने इसी बात को हज़ार से पूछा।।

पूछने वालों को जरा-सी भी चिंता न थी।
उनके स्नेह में भी कोई अधीनता न थी।
और तो और पूछने में भी कुलीनता न थी।
पर उनकी धूर्तता में जरा भी मलीनता न थी।।

काश! किसी ने उस बच्चे की मति देखी होती।
उसकी क्षमता पढ़ाई के प्रति देखी होती।
उसमें विद्यमान अन्य कईं कौशल देखे होते।
उसके उज्ज्वल भविष्य के कल देखे होते।।

काश! किसी ने परीक्षा का भय देखा होता।
अंतर्मन में न सुलझने वाला संशय देखा होता।
उसका विषयों के प्रति रुझान देखा होता।
उसका विषयों से इतर ज्ञान देखा होता।

काश! किसी ने उसमें विश्वास दिखाया होता।
काश! किसी ने उसमें एहसास जगाया होता।
काश! किसी ने उसे खास बनाया होता।
उसके फेल होने पर भी गले से लगाया होता।।

तो वह आज हम सबके बीच में होता।
अपने तन को उम्मीदों से खींच के ढोता।
उसे अपने फेल होने का कभी दुख न होता।
और वो कभी मृत्यु के सम्मुख न होता।।

जीवित रहकर वो अपने सपने स्वयं संजोता।
सांसों के और मन के मणके स्वयं पिरोता।
सुनकर सबके ताने कभी निराश न होता।
दूसरों के कहे अपना जीवन व्यर्थ न खोता।।

तो वो हम सबके बीच होता…..
तो वो हम सबके बीच होता….

ललिता शर्मा ‘ नयास्था ‘
भीलवाड़ा, राजस्थान

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