हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया एक शौर्यगाथा
प्रिय पाठकों, बीहड़, बागी और बंदूक के लिए बदनाम मध्य प्रदेश के भिंड जिले का एक और पहलू है, जो देशवासियों की नजरों से अछूता है। आज हम आपको चंबल अंचल के उन वीर सपूतों की कहानी बताएंगे जिन्होंने अपने अदम्य साहस, शौर्य और वीरता के दम पर 1999 के करगिल युद्ध को अपने खून से खींचकर विजयश्री हासिल की थी। चंबल अंचल के भिंड जिले के नौजवानों का देश की सुरक्षा में बड़ा योगदान है। चाहें वह 1962 का चीन युद्ध हो या 1971 का पाकिस्तान से युद्ध या 1999 में पाकिस्तान के खिलाफ करगिल युद्ध। हर युद्ध में भिंड जिले के नौजवानों के बलिदान की एक लंबी फेहरिस्त है। आइए जानते हैं ऐसे ही कुछ जवानों की कहानि।
दरअसल भारत और पाकिस्तान के बीच आखिरी युद्ध 1999 में करगिल में लड़ा गया था। 18 हजार फीट की ऊंचाई पर भारत के सैनिकों ने दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब दिया था। 26 जुलाई 1999 को भारत की जीत की आधिकारिक घोषणा हुई थी। करगिल युद्ध में भारत के 527 वीर सपूत शहीद हुए थे। हर साल 26 जुलाई के दिन इन वीर शहीदों के बलिदान को याद करने के लिए ‘करगिल विजय दिवस‘ मनाया जाता है।
यह कहानी भारतीय सेना के एक ऐसे वीर योद्धा की है, जिनका जीवन, साहस और शहादत देशभक्ति की एक अद्वितीय मिसाल है। हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया का जीवन संघर्ष, समर्पण और वीरता का परिचायक है। आइए, उनकी शौर्यगाथा के माध्यम से जानें कि उन्होंने देश के लिए अपने कर्तव्य को किस प्रकार सर्वोपरि रखा।
हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया का नाम भारतीय सेना के उन वीर योद्धाओं में शामिल है, जिन्होंने अपने देश की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। उनका जन्म 19 जून 1960 को मध्य प्रदेश के भिंड जिले के एक छोटे से गांव पीपरी में हुआ। एक साधारण किसान परिवार में जन्मे सुल्तान सिंह का बचपन संघर्ष और कठिन परिस्थितियों में बीता। लेकिन उनकी दृढ़ इच्छाशक्ति और देशभक्ति ने उन्हें भारतीय सेना का एक जांबाज सैनिक बना दिया।
भारतीय सेना में योगदान
1979 में सुल्तान सिंह ने राजपुताना राइफल्स की दूसरी बटालियन में भर्ती होकर अपने सैन्य जीवन की शुरुआत की। सेना में शामिल होने के बाद उन्होंने न केवल अपने परिवार बल्कि पूरे गांव का नाम रोशन किया। अपने पूरे सैन्य जीवन में उन्होंने कई महत्वपूर्ण अभियानों में भाग लिया और हर बार अपनी जिम्मेदारियों को पूरी ईमानदारी और बहादुरी से निभाया। उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण समय आया 1999 के करगिल युद्ध में।
करगिल युद्धः वीरता की कहानी
1999 का करगिल युद्ध भारतीय सेना के लिए एक बड़ी चुनौती थी। दुश्मन ने भारतीय सीमाओं में घुसपैठ कर कई ऊंचाई वाले स्थानों पर कब्जा कर लिया था। इन दुर्गम पहाड़ियों को मुक्त कराना भारतीय सेना के लिए अत्यंत आवश्यक था। हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया को द्रास सेक्टर के पॉइंट 4590 के ‘‘रॉक एरिया‘‘ को दुश्मन से मुक्त कराने का जिम्मा सौंपा गया। यह मिशन न केवल खतरनाक था, बल्कि असंभव सा लग रहा था। लेकिन सुल्तान सिंह ने इसे एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया।
13 जून 1999 को, जब तापमान माइनस डिग्री में था और चारों तरफ दुश्मनों की गोलियों की बारिश हो रही थी, सुल्तान सिंह ने अपनी टीम का नेतृत्व किया। दुश्मन की मीडियम मशीन गन (एमएमजी) भारतीय सैनिकों के लिए सबसे बड़ी बाधा बन रही थी। ऐसे में उन्होंने अदम्य साहस का परिचय देते हुए दुश्मन की मशीन गन पर सीधा हमला किया। उनके इस कदम ने दुश्मनों के होश उड़ा दिए। उन्होंने 8-10 दुश्मनों को मार गिराया और उनकी मशीन गन को नष्ट कर दिया। लेकिन इस वीरता प्रदर्शन के दौरान, वह गंभीर रूप से घायल हो गए और वीरगति को प्राप्त हुए।
मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित
हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया की इस शहादत ने पूरे देश को गर्वित किया। उनकी बहादुरी और बलिदान को सम्मानित करते हुए भारत सरकार ने 2002 में उन्हें मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया। यह सम्मान उनके अद्वितीय साहस और देश के प्रति असीम प्रेम का प्रतीक है।
परिवार की संघर्षपूर्ण कहानी
सुल्तान सिंह की शहादत ने उनके परिवार को एक ओर गर्व से भर दिया, तो दूसरी ओर उनके जीवन में संघर्ष भी लाया। भारत सरकार ने उनकी शहादत के बदले उनके परिवार को जमीन और पेट्रोल पंप प्रदान किया। लेकिन मध्य प्रदेश सरकार द्वारा नौकरी देने का जो वादा किया गया था, वह अब तक पूरा नहीं हो पाया। इसके बावजूद, सुल्तान सिंह के बेटे देवेंद्र नरवरिया ने हार नहीं मानी। उन्होंने समाज सेवा के क्षेत्र में कदम रखा और नगर परिषद के पार्षद बने। देवेंद्र ने अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए अपने बच्चों को सेना में भेजने का निर्णय लिया।
पीपरी गांव का गौरव
हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया की वीरता ने न केवल उनके परिवार बल्कि उनके गांव पीपरी और पूरे भिंड जिले को गौरवान्वित किया। उनकी याद में गांव के लोग आज भी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। उनकी कहानी आज भी युवाओं को प्रेरित करती है और यह सिखाती है कि देशभक्ति और कर्तव्यनिष्ठा से बड़ा कुछ नहीं।
शहादत की प्रेरणा
हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया जैसे वीर योद्धा हमारे लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। उनकी शहादत हमें यह सिखाती है कि देश सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं होता। उनका बलिदान हमें यह याद दिलाता है कि हमारी आजादी और सुरक्षा के पीछे हमारे सैनिकों की असीम त्याग और बलिदान की कहानियां छिपी हुई हैं।
”जो मिट्टी के लिए मिट जाता है, वह कभी मरता नहीं।“
प्रिय पाठकों, यह कहानी हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया की शौर्यगाथा है, जो हर भारतीय के लिए गर्व और प्रेरणा का प्रतीक है। उनकी शहादत हमें यह विश्वास दिलाती है कि जब तक हमारे देश में ऐसे सपूत हैं, तब तक हमारी सीमाएं सुरक्षित हैं और हमारा भविष्य उज्जवल है।
कैफे सोशियल मैगजीन ऐसे महवीरों को सदैव नमन करता हैं।
जय हिन्द