भारत के गुमनाम नायक – वीरांगना स्व. गुलाब कौर
भारत भूमि सदियों से वीरों की भूमि रही है। यहां पर अनेकों नायकों ने समय समय पर अपने प्राणों का वलिदान देकर मात्रभूमि की रक्षा की थी और अभी भी करते चले आ रहे हैं।
हमारा देश वलिदानियों का देश रहा है और इन वलिदानियों में सिर्फ पुरुषों का ही नहीं बल्कि महिलाओं, बच्चों और आदिवासियों का योगदान रहा है। “कैफे सोशल मासिक पत्रिका “ इतिहास में जिन्हें भुला दिया गया है उन्हें, उनके कार्यों को याद करते हुए हर माह गुमनाम नायक लेख में याद करते हुए श्रद्धांजली अर्पित कर रहा है।
आज हम बात कर रहे हैं एक ऐसी वीरांगना जिन्होंने अपना जीवन देश के लिए समर्पित कर दिया था।
इन्हीं वीरांगनाओं में से एक थी बीबी गुलाब कौर
गुलाब कौर जी का जन्म सन् १८९० में पंजाब के संगरूर जिले के बक्शी वाला गांव में एक अत्यंत गरीब परिवार में हुआ था।गरीबी और तंगहाली में उनका बचपन बीता। आपका विवाह श्री मानसिंह जी से हुआ था। विवाह के कुछ समय पश्चात बीबी गुलाब कौर और उनके पति ने अमेरिका जाने का विचार किया ताकि आर्थिक स्थिति में बदलाव आ सकें। सीमित संसाधनों के चलते उस समय अमेरिका जाना आसान नहीं था इसलिए वे लोग मनीला पहुंचे।उन लोगों की योजना थी कि कुछ समय मनीला में ही रहकर कुछ धन एकत्रित किया जाए तत्पश्चात अमेरिका जाया जा सकें।
मनीला में रहते हुए गुलाब कौर गदर पार्टी के नेताओं के संपर्क में आई। उसे समय मनीला में गदर पार्टी लोकप्रिय देशभक्त हाफिज अब्दुल्ला के नेतृत्व में सक्रिय थी। उनसे प्रभावित होकर पार्टी में शामिल हो गई। गदर पार्टी की मनीला शाखा का विस्तार तेजी से हुआ। गुलाब कौर जी ने विदेशी जमीन पर रहते हुए भारतीय प्रवासियों को देश को आजाद कराने के लिए एक जुट कर चल रहें आंदोलन में शामिल होने के लिए तैयार किया। और अब उन लोगों का अगला लक्ष्य भारत देश को ब्रिटिश हुकूमत से आजाद करने के लिए भारत वापस लौटना था।गदर पार्टी में शामिल होने पर गुलाब कौर जी को उनकी योग्यतानुसार पार्टी का काम सौंपा गया। उन्हें पार्टी की प्रिंटिंग प्रेस का महत्वपूर्ण कार्य मिला। दरअसल प्रिंटिंग प्रेस की आड़ में उन्हें क्रांतिकारियों की मदद और हथियार पहुंचाने का काम था।
भारत वापस लौटने के लिए उन्होंने जगह जगह जोशीले अंदाज में भाषण देते हुए लोगों से भारत लोटने का आह्वान किया। उन्होंने अपने एक भाषण में कहा था कि “यदि कोई अपने देश की आजादी के लिए हाथ आए इस सुअवसर से पीछे हटता है तो चूड़ियां पहन कर बैठ जाए,हम महिलाएं उनके स्थान पर लड़ेगी” वहां उपस्थित लोगों के मन पर इसका तीव्र गति से असर हुआ। लोगो ने अपने नाम देना शुरू कर दिया। गुरुद्वारा साहिब में गदरियों की बैठक हुई और भारत जाने की तारीख तय की गई।जब भारत जाने का समय आया तब उनके पति मानसिंह ने अपना विचार बदल दिया और भारत वापस लोटने का इरादा बदल दिया।तब उन्होंने अपने पति को बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन वो नहीं मानें। आखिरकार “बीबी गुलाब कौर ने देश भक्ति को पति भक्ति से सर्वोच्च मानकर अकेले ही भारत लोटने का मन बना लिया”
एक दिन एक बैठक चल रही थी कि अचानक पुलिस ने छापा मार दिया।तब गुलाब कौर ने सूझबूझ से हथियारों को एक टोकरी में डाल कर वहां से निकल गई। अंततः एक दिन उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और राजद्रोह का मुकद्दमा चला। उन्हें लाहौर जेल भेज दिया गया। जेल में रहते हुए भी उन्होंने अन्य क्रान्तिकारी साथियों (केदियों) के साथ मिलकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ न्याय के लिए आवाज उठाई। इससे जेल अधिकारी क्रोधित हो गए और उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया।जब वो जेल से रिहा हुईं तो उनका स्वास्थ्य काफी खराब हो चुका था। शारीरिक रूप से कमजोर होने के बावजूद मात्रभूमि के लिए लड़ाई लड़ती रही।
आखिर कार सन् १९४१में इस महान वीरांगना ने अंतिम सांस ली।
हमारे देश को आजाद कराने में बीबी गुलाब कौर जैसे अनगिनत वीर सपूतों ने अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।यह हमारे लिए अफसोस की बात है कि आज हम उन्हें भूल चुके हैं।
इन महान गुमनाम नायकों को सच्ची श्रद्धांजली तभी दी जा सकती है जब उनके योगदान को खुद समझते हुए आने वाली पीढ़ियों को बताएं।
कैफे सोशल मासिक पत्रिका की ओर से बीबी गुलाब कौर जी को शत् शत् नमन।।