शूरवीरो की गाथा

गुमनाम नायक – अमर शहीद उदय चंद जी जैन


कैफे सोशल अपने हर संस्करण में भारत माता को गुलामी की जंजीरों से मुक्त कराने वाले अमर शहीद गुमनाम नायक की, उनके देश के लिए दिए गए योगदान एवं बलिदानों को याद करते हुए विनम्र श्रद्धांजली अर्पित करते आ रहा है।

इसी श्रृंखला में इस संस्करण में एक ऐसे नौजवान की शौर्य गाथा से परिचित करा रहे हैं जिन्होंने अल्पायु में ही अपना बलिदान दिया था।वो नौजवान थें वीर सपूत उदय चंद जी जैन अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन के समय एक जुलूस का नेतृत्व करने वाले भारत माता के वीर सपूत उदय चंद जी जैन ने महज १९ वर्ष की उम्र में देश को स्वतंत्र कराने के लिए अपना सर्वस्व वलिदान दिया था।

उनका जन्म मध्य प्रदेश के मण्डला जिले के महाराजपुर में १० नवंबर १९२२को हुआ था।उदय चन्द जैन के पिता का नाम श्री त्रिलोक चन्द एवं माता का नाम श्रीमति खिलौना बाई था।उदय चंद जी ने जब जगन्नाथ हाईस्कूल में एडमिशन लिया तभी से उनके मन में आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने की इच्छा जोर मारने लगी। जल्दी ही वह विद्यालय के छात्र संघ के अध्यक्ष चुने गए। कम उम्र में उदय चन्द जैन ने भारत छोड़ो आन्दोलन में अपनी सक्रिय भूमिका निभाई थी। जब देश भर में भारत छोड़ो आन्दोलन छाया हुआ था, उसी समय मण्डला में भी ८ अगस्त को आंदोलन छिड़ चुका था और आंदोलन कारियों ने प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। टेलीग्राफ और रेल लाइनों को काटने और उखाड़ा जाने लगा था।

अंग्रेजी सरकार ने इन आंदोलन कारियों के बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया था। इस आंदोलन में विद्यार्थी भी शामिल हो गए और १४ अगस्त १९४२ को विद्यालय में हड़ताल कर दी। अगले दिन नर्मदा गंज से अंग्रेजों के विरुद्ध विशाल जुलूस निकाला जो आगे चलकर डी एम कार्यालय में जाकर समाप्त हुआ। यहां पर एक सभा की गई जिसका नेतृत्व उदय चंद जी ने ही किया था।

उदय चन्द अपने घर से जगन्नाथ हाई स्कूल मण्डला पहुँचे और दूसरे दिन 15 अगस्त को विद्यालय बंद करवाने के लिये धरने पर बैठ गये और सभी विधार्थी वंदे मातरम् के नारे लगाने लगे। आंदोलनकारियों का जुलूस जिलाध्यक्ष कार्यालय की ओर आगे की तरफ बढ़ रहा था जिसे राकने के लिए इंस्पेक्टर मि. फॉक्स के नेतृत्व में सशस्त्र बल तैयार था और वह चेतावनी दे रहा था कि जुलूस आगे की तरफ न बढ़े, नहीं तो गोली चलानी पड़ेगी। उदय चन्द जैन ने इस चेतावनी पर अपनी कमीज के बटन खोल कर गोली चलाने के लिए कहा और सामने से गोली चली जो सीधे उनके पेट में लगी और वो वहीं जमीन पर गिर गये। उदय चन्द को तुरन्त ही अस्पताल में भर्ती कराया गया, लेकिन उन्हें बचाया न जा सका और 16 अगस्त, 1942 को शहीद हो गये।

जब डी एम गजाधर सिंह व एस पी खान ने उदय चंद के पिता त्रिलोक चंद को बुलाकर चुपचाप दाहसंस्कार करने को कहा तो पिता ने साफ इन्कार कर दिया।जब उदय चंद की शवयात्रा निकली तो उसमें लगभग ९००० लोग शामिल थे और उस समय मंडला की कुल आबादी १२ हजार थी,उस दिन समूचा मंडला रो रहा था। उदय चन्द जैन जी की शहादत भारतीय राट्रीय आंदोलन में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखती है।

मंडला में उदय चौक पर बना उदय स्तंभ और स्कूल आज भी उनकी वीरता की याद दिलाता है। महाराज पुर में आज भी हर वर्ष १६ अगस्त को उनकी याद में मेला लगाया जाता है।

कैफे सोशल अमर शहीद उदय चंद जैन को शत् शत् नमन करता है।

संजीव जैन
संपादक – मंडल
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