परमवीर चक्र

कर्नल सोनम वांगचुक

कर्नल सोनम वांगचुक एक प्रेरणास्त्रोत सैनिक और पर्यावरणीय नवप्रवर्तक


कर्नल सोनम वांगचुक भारतीय सेना के एक अत्यधिक सम्मानित
अधिकारी थे, जिन्हें उनके साहसिक कारगिल युद्ध अभियान और अद्वितीय पर्यावरणीय नवाचारों के लिए जाना जाता है। ‘लद्दाख के शेर‘ के नाम से प्रसिद्ध कर्नल वांगचुक ने न केवल सेना में अपनी वीरता दिखाई, बल्कि समाज के लिए भी कई अनमोल योगदान दिए। इस लेख में हम उनके जीवन के विभिन्न पहलुओं शिक्षा, सैन्य सेवा, कारगिल युद्ध में भूमिका और उनकी पर्यावरणीय पहल को जानेंगे।

प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
सोनम वांगचुक का जन्म 1 सितंबर 1966 को लद्दाख के अलची गांव में हुआ था। उनका परिवार एक परंपरागत लद्दाखी परिवार था, जो बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। सोनम के पिता, सोनम वांग्याल, भारतीय सेना के एक प्रतिष्ठित अधिकारी थे और 14वें दलाई लामा के सुरक्षा दल में कार्यरत थे। उनके पिता के संपर्क में आने से सोनम को दलाई लामा के दर्शन और लद्दाखी संस्कृति के बारे में गहरी समझ मिली। इस पारिवारिक माहौल ने उन्हें जीवन में अनुशासन और कर्तव्य का महत्व सिखाया।

उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा हिमाचल प्रदेश के सोलन और धर्मशाला के स्कूलों से प्राप्त की। बाद में, उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के श्री वेंकटेश्वर कॉलेज से इतिहास में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। यहां तक कि वे एक उत्कृष्ट विद्यार्थी थे, लेकिन उनका दिल अभी भी क्लासरूम के बाहर की दुनिया में था। कॉलेज जीवन में ही उनका झुकाव सेना की ओर हुआ, और इसके बाद उन्होंने भारतीय सेना में शामिल होने का फैसला किया।

सेना में करियर की शुरुआत
1987 में, सोनम वांगचुक ने भारतीय सेना में सेकंड लेफ्टिनेंट के रूप में कमीशन प्राप्त किया। उन्हें असम रेजिमेंट की चौथी बटालियन में पोस्टिंग मिली। यहाँ उन्होंने सैन्य अनुशासन और सख्त प्रशिक्षण के माध्यम से अपने आत्मविश्वास को मजबूती दी। जल्द ही, उनकी मेहनत और समर्पण को पहचान मिली और वे लद्दाख स्काउट्स के इंदुस विंग में स्थानांतरित हो गए। सेना में उनकी यात्रा बहुत ही प्रेरणादायक रही और उन्होंने जल्द ही अपने साथी सैनिकों के बीच एक आदर्श बनकर उभरना शुरू किया।

कारगिल युद्धः कर्नल वांगचुक की वीरता

1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच कारगिल युद्ध हुआ। यह युद्ध कश्मीर के कारगिल क्षेत्र में लड़ा गया, और भारतीय सैनिकों के लिए यह एक कठिनतम लड़ाई साबित हुई। कर्नल सोनम वांगचुक इस युद्ध में एक प्रमुख भूमिका में थे।
चोर्बट ला दर्रे पर पाकिस्तानी सैनिकों द्वारा कब्जा किए जाने के बाद, भारतीय सेना के लिए इसे वापस छीनना बहुत मुश्किल हो गया था। कर्नल वांगचुक ने अपनी टुकड़ी के साथ इस अभियान की जिम्मेदारी ली। यह क्षेत्र इतनी ऊंचाई पर था कि यहां सेना के लिए लड़ना अत्यंत चुनौतीपूर्ण था। 40 सैनिकों के साथ, उन्होंने 135 पाकिस्तानी सैनिकों को हराया और दर्रे पर भारतीय नियंत्रण को बहाल किया। इस वीरता के लिए उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया, जो भारतीय सेना का दूसरा सर्वोच्च वीरता पुरस्कार है।

इस ऑपरेशन में कर्नल वांगचुक की नेतृत्व क्षमता, रणनीतिक सोच और वीरता ने उन्हें न केवल भारतीय सेना में, बल्कि पूरी दुनिया में एक नायक के रूप में स्थापित किया। कारगिल युद्ध के बाद, कर्नल वांगचुक को उनकी बहादुरी के लिए कई सम्मान मिले, और उनका नाम भारतीय सैन्य इतिहास में अमर हो गया।

कर्नल सोनम वांगचुक की सैन्य सेवा के दौरान कई साहसिक और प्रेरणादायक घटनाएँ घटीं। उनकी एक प्रमुख कहानी 1999 के कारगिल युद्ध से जुड़ी है, जब उन्होंने चोर्बट ला दर्रे पर पाकिस्तानी सैनिकों के खिलाफ नेतृत्व किया। इस ऑपरेशन में, उन्होंने 40 सैनिकों के साथ मिलकर 135 पाकिस्तानी सैनिकों को हराया, जिससे उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया।
इस ऑपरेशन के दौरान, कर्नल्र्र वांगचुक और उनकी टुकड़ी को 18,000 फीट की ऊँचाई पर -6 डिग्री सेल्सियस तापमान में दो फीट गहरी बर्फ में तीन दिनों तक संघर्ष करना पड़ा। उन्होंने अपनी टुकड़ी को रात भर की कठिन चढ़ाई के बाद सुबह होते ही पाकिस्तानी सैनिकों पर हमला करने का आदेश दिया, जिससे दुश्मन को भारी नुकसान हुआ और भारतीय सेना ने चोर्बट ला दर्रे पर नियंत्रण स्थापित किया।

कर्नल वांगचुक ने एक साक्षात्कार में बताया कि इस मिशन के दौरान उनके दिमाग में केवल एक ही विचार थाः ‘‘किसी भी तरह से पाकिस्तानी घुसपैठियों को खदेड़कर सीमा को सुरक्षित करना है।‘‘ उन्होंने अपने सैनिकों के साथ मिलकर इस चुनौतीपूर्ण मिशन को सफलतापूर्वक पूरा किया, जो भारतीय सेना की वीरता और समर्पण का प्रतीक है।

उनकी इस बहादुरी और नेतृत्व क्षमता ने उन्हें ‘लॉयन ऑफ लद्दाख‘ के उपनाम से सम्मानित किया और भारतीय सेना के इतिहास में उनका नाम अमर कर दिया। उनकी वीरता और नेतृत्व क्षमता के बारे में अधिक जानने के लिए, आप इस वीडियो को देख सकते हैंः
सितंबर 13, 2023ः व्ज्। गया में कर्नल वांगचुक की प्रेरणादायक स्पीच
कर्नल वांगचुक ने 13 सितंबर 2023 को व्ज्। गया में एक प्रेरणादायक भाषण दिया, जिसमें उन्होंने भारतीय सेना के युवा अधिकारियों को अपने अनुभवों से मार्गदर्शन किया। इस सत्र में उन्होंने कारगिल युद्ध के दौरान की गई अपनी बहादुरी और नेतृत्व के बारे में बताया। उनका भाषण केवल सैन्य जीवन की कठिनाइयों और वास्तविकताओं पर आधारित नहीं था, बल्कि यह जीवन के व्यापक पाठों पर भी केंद्रित था।

उन्होंने अपने अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि किस प्रकार मानसिक दृढ़ता और उच्च दबाव वाले परिस्थितियों में संतुलन बनाए रखना किसी भी सैनिक के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है। कर्नल वांगचुक ने यह भी कहा कि एक सच्चा नेता वह है जो अपने सैनिकों के साथ जोखिम साझा करता है, खासकर जब खतरा सामने हो। उनका यह संदेश युवा अधिकारियों के लिए एक महत्वपूर्ण सिद्धांत बन गया।

कर्नल वांगचुक ने उन मूल्यों की भी चर्चा की जो भारतीय सेना के अधिकारियों के लिए महत्वपूर्ण हैं जैसे कि सामूहिक कार्य, तात्कालिक निर्णय लेने की क्षमता, और व्यक्तिगत बलिदान। उन्होंने युवा अधिकारियों को याद दिलाया कि वे राष्ट्र की रक्षा के मुख्य स्तंभ हैं, जो युद्ध के दौरान जीवन और मृत्यु के निर्णय लेते हैं। उनके द्वारा दिए गए उदाहरणों ने युवा अधिकारियों को प्रेरित किया और उनकी जिम्मेदारी को समझाया कि वे एक दिन भारतीय सेना की कड़ी परंपरा और सम्मान को बनाए रखने के लिए तैयार हों।

पर्यावरणीय नवप्रवर्तक के रूप में योगदान
सैन्य सेवा से अवकाश प्राप्त करने के बाद, कर्नल वांगचुक ने अपने जीवन को पर्यावरणीय नवाचारों और शिक्षा के क्षेत्र में समर्पित किया। उन्होंने लद्दाख में अपने निवास स्थान के पास ही एक नई पहल शुरू की, जिसका उद्देश्य ऊंचे इलाकों में सैनिकों की सुविधा के लिए नवाचार करना था।

कर्नल वांगचुक ने भारतीय सेना के लिए सौर ऊर्जा से चलने वाले तंबू विकसित किए। इन तंबुओं में सौर पैनलों का उपयोग किया जाता है, जो दिन के समय में सूर्य से ऊर्जा इकट्ठा करते हैं और रात में उनका उपयोग सैनिकों के लिए तापमान को नियंत्रित करने के लिए करते हैं। यह नवाचार न केवल पर्यावरणीय दृष्टिकोण से प्रभावी था, बल्कि यह सैनिकों को भी अधिक सुविधा और सुरक्षा प्रदान करता था।

इसके अलावा, उन्होंने लद्दाख के दूरदराज के क्षेत्रों में ‘पानी के कनस्तरों‘ के लिए एक नई तकनीक विकसित की, जो ठंडे मौसम में पानी को जमने से बचाती है और सैनिकों को हमेशा ताजे पानी की आपूर्ति सुनिश्चित करती है। इस प्रकार के नवाचारों ने न केवल सैनिकों की कठिनाइयों को कम किया, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।

शिक्षा में योगदानःSECMOL की स्थापना
कर्नल सोनम वांगचुक का शिक्षा के क्षेत्र में भी बड़ा योगदान है। उन्होंने 1990 के दशक में लद्दाख में ‘शिक्षा आंदोलन‘ की शुरुआत की और लद्दाखी संस्कृति के अनुरूप शिक्षा प्रणाली को अपनाया। उनके द्वारा स्थापित ‘शैक्षिक और सांस्कृतिक आंदोलन‘ (SECMOL) ने लद्दाख के बच्चों को उनकी पारंपरिक संस्कृति और इतिहास से जोड़ा। ैम्ब्डव्स् ने एक नई शिक्षा पद्धति को अपनाया, जिसमें स्थानीय भाषा, संस्कृति और भूगोल को ध्यान में रखा गया।

कर्नल वांगचुक ने SECMOL के माध्यम से उन छात्रों के लिए शिक्षा का एक नया मॉडल प्रस्तुत किया, जो पारंपरिक शैक्षिक प्रणाली से बाहर थे। उनका उद्देश्य यह था कि शिक्षा सिर्फ किताबों तक सीमित न रहे, बल्कि यह छात्रों को उनके सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश से जोड़कर एक वास्तविक और स्थायी प्रभाव डाले। इस अनूठे दृष्टिकोण के कारण ैम्ब्डव्स् ने कई पुरस्कारों और सम्मान प्राप्त किए, और इसे एक वैश्विक मॉडल के रूप में स्वीकार किया गया।

पुरस्कार और सम्मान
कर्नल वांगचुक के असाधारण योगदान के लिए उन्हें कई पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हुए। इनमें 2018 में उन्हें रामोन मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त हुआ, जो एशिया के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक है। इसके अलावा, उन्हें 2016 में फ्रेड एम. पैकर्ड पुरस्कार और रोलेक्स पुरस्कार भी प्राप्त हुए। उनकी कड़ी मेहनत, समर्पण और नवीकरणात्मक सोच के कारण उन्होंने न केवल भारतीय सेना, बल्कि समाज और पर्यावरण के लिए भी अमूल्य योगदान दिया।

निष्कर्ष
कर्नल सोनम वांगचुक का जीवन एक प्रेरणा है। उनका संघर्ष, उनकी वीरता, और उनका समाज और पर्यावरण के प्रति योगदान हमें यह सिखाता है कि एक व्यक्ति के संकल्प और समर्पण से किसी भी कठिनाई को पार किया जा सकता है। वे केवल एक महान सैनिक ही नहीं, बल्कि एक महान शिक्षक, नवप्रवर्तक और समाज सुधारक भी हैं। उनकी कहानी न केवल भारतीय सैनिकों के लिए, बल्कि पूरी मानवता के लिए एक प्रेरणा है, जो हमें अपने कर्तव्यों को पूरी निष्ठा और समर्पण से निभाने की प्रेरणा देती है।

कैफे सोशल मैगजीन कर्नल सोनम वांगचुक के अदम्य साहस को नमन करता है। उनके संघर्ष और देशप्रेम की गाथा हर भारतीय के दिल में जज्बा जगाती है। साथ ही, हम भारतीय सेना के हर वीर जवान को नमन करते हैं, जो हमारी सीमाओं की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति देने से भी पीछे नहीं हटते।
जय हिन्द

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