General

१४ नवंबर: बाल दिवस

१४ नवंबर – आज भारत में बच्चों के सम्मान में हरसाल बाल दिवस मनाया जाता है । १९२५ में ,…

Read More »

माफ करो और भूल जाओ! – BY BALAM MOHLA

माफ करो और भूल जाओ! फिल्म उद्योग को लेकर लोगों में कई प्रकार की भ्रांतियां हैं। लोग समझते हैं कि…

Read More »

नीरज चोपड़ा का “हिंदी में पूछ लो, जी”

ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतकर भारत को एथलिटिक खेलों में पहला पदक दिलाकर 100 वर्षों में इतिहास रचने वाले नीरज…

Read More »

MADHYA PRADESH THE EMERGING HUB FOR INDUSTRIES

Shri Rohan SaxenaAdditional Collector, Indore (M.P.) MADHYA PRADESH THE GLOBALLY EMERGING HUB FOR INDUSTRIES : A BUREAUCRATIC VIEW Our Editor…

Read More »

हिंदी दिवस की औपचारिकता

डॉ. वेदप्रताप वैदिक हिंदी दिवस हम हर साल 14 सितंबर को मनाते हैं, क्योंकि इसी दिन 1949 को संविधान सभा ने हिंदी को राजभाषा बनाया था।लेकिन क्या आपने कभी सोचा कि हिंदी वास्तव में भारत की राजभाषा है भी या नहीं है? यदि हिंदी राजभाषा होती तो कम से कम भारत का राज-काज तो हिंदी भाषा में चलता लेकिन आजकल राजकाज तो क्या, घर का काम-काज भी हिंदी में नहीं चलता।अंग्रेज की गुलामी के दिनों में फिर भी हिंदी का स्थान ऊँचा था लेकिन आज हिंदी की हैसियत ऐसी हो गई है, जैसी किसी अछूत या दलित की होती है।  संसद का कोई कानून हिंदी में नहीं बनता, सर्वोच्च न्यायालय का कोई फैसला या बहस हिंदी में नहीं होती, सरकारी काम-काज अंग्रेजी में होता है। सारे विश्वविद्यालयों में अंग्रेजी अनिवार्य है। ज्यादातर विश्वविद्यालयों में पढ़ाई का माध्यम अंग्रेजी है। छोटे-छोटे बच्चों पर भी अंग्रेजी इस तरह लदी होती है, जैसे हिरन पर घास लाद दी गई हो। बच्चे अपने माँ-बाप को भी आजकल मम्मी-डैडी कहने लगे हैं। माताजी-पिताजी शब्दों का लोप हो चुका है। ‘जी’ अक्षर उनके संबोधन से हट चुका है।भाषा से मिलनेवाले संस्कार लुप्त होते जा रहे हैं। हिंदी अखबारों और टीवी चैनलों को अंग्रेजी शब्दों के बोझ ने लंगड़ा कर दिया है।हर साल जो करोड़ों बच्चे अनुत्तीर्ण होते हैं, उनमें सबसे बड़ी संख्या अंग्रेजी में अनुत्तीर्ण होनेवालों की है।भारत के बाजारों में चमचमाते अंग्रेजी के नामपटों को देखकर लगता है कि भारत अभी भी अंग्रेजों का ही गुलाम है।  अगर आप बैंकों में जाकर देखें तो मालूम पड़ेगा कि लगभग सभी खातेदारों के दस्तखत अंग्रेजी में हैं।आपका नाम हिंदी में है, फिर हस्ताक्षर अंग्रेजी में क्यों है? यदि नकल ही करना है तो पूरी नकल कीजिए।अपना नाम भी आप चर्चिल या जाॅनसन क्यों नहीं रखते ? नकल भी अधूरी ? हिंदी कभी राजभाषा बन पाएगी या नहीं, कहा नहीं जा सकता लेकिन वह लोकभाषा बनी रहे, यह बहुत जरुरी है। राजभाषा वह तभी बनेगी, जब हमारे नेतागण नौकरशाहों की नौकरी करना बंद करेंगे।हमारे नेता वोट और नोट में ही उलझे रहते हैं। उन्हें शासन चलाने की फुर्सत ही कहां होती है।यदि देश में कोई सच्चा लोकतंत्र लाना चाहे तो वह स्वभाषा के बिना नहीं लाया जा सकता।दुनिया के जितने भी शक्तिशाली और मालदार राष्ट्र हैं, उनमें विदेशी भाषाओं का इस्तेमाल सिर्फ विदेश व्यापार, कूटनीति और शोध-कार्य के लिए होता है लेकिन भारत में आपको कोई भी महत्वपूर्ण काम करना है या करवाना है तो वह हिंदी के जरिए नहीं हो सकता। हिंदी-दिवस इसीलिए एक औपचारिकता बनकर रह गया है।

Read More »

भारत की स्वतंत्रता के गुमनाम नायक

भारत की स्वतंत्रता के गुमनाम नायक – १८५७ की क्रांति के अग्रदूत लाला हुकुमचंद जैन हुकुमचंद जैन का जन्म 1816…

Read More »

इनबुक फाउंडेशन की बैठक संपन्न

इनबुक फाउंडेशन के अंतर्गत संचालित “मेरा अपना पुस्तकालय” की बैठक संपन्न महिला सशक्तिकरण पर हुई चर्चा हरदा. 10 अक्तूबर 2021…

Read More »

लायंस क्लब ऑफ मुंबई इनबुक कैफे और इनबुक फाउंडेशन की संयुक्त पहल

लायंस क्लब ऑफ मुंबई इनबुक कैफे और इनबुक फाउंडेशन की संयुक्त पहल ग्रामीण क्षेत्र की बालिकाओं में माहवारी के समय …

Read More »

हिंदी का होना, हिंदी का रोना, हिंदी का ढोना

अंग्रेजी को केवल दिमाग तक सीमित रखिए पर अपनी भाषा को दिल और दिमाग दोनों में रखिए।संपर्क भाषा के रूप…

Read More »

THE MAN WHO DEDICATED HIS LIFE TO CHHATTISGARH

THE MAN WHO BROUGHT LIGHT AND DEDICATED HIS LIFE TO CHHATTISGARH  – MR. B. MISHRA  “We will make electricity so…

Read More »
Back to top button