लोंगेवाला के शेर: ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी
मेनू मेरा जिंद चाहिदा
दिला विच बसा हुआ हिन्द चाहिदा।
सोणी – सोणी खुशबू दा रंगा हर अंग चाहिदा।
खेता विच माटी दी सुगंध चाहिदा।
आबो वाला बस मेरा वही पिंड चाहिदा।
मेनू मेरा हिन्द चाहिदा।
मिठी-मिट्ठी बेरियां दे बैर चाहिदा।
दिला विच किसी के न वैर चाहिदा।
नैणा विच चैणा वाली निंद चाहिदा।
मेनू मेरा हिन्द चाहिदा….
मितरा दी कोल विच नेह चाहिदा।
शाद वाली वहीं बस मुझे मेह चाहिदा। सिंगणी दी कोख विच पला हुआ सिंग चाहिदा।
मेनू मेरा जिंद चाहिदा, दिला विच बसा हुआ हिन्द चाहिदा।।
‘ मैं ठहरा पंजाबी का बच्चा कहां पीछे हटने वाला ना था’ – ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी
1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान लोंगेवाला पोस्ट पर हुई जंग के हीरो ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी के नाम में क्या नहीं है’ कुल” दीप सिंह’ ‘ चांद ‘ ‘ पुरी’ ऐसा लग रहा है जैसे नाम में ही समस्त सृष्टि समाहित है। कुल के दीपक ने सिंह का रूप धारण करके पूरे चांद पर कब्जा कर लिया।
यह शब्द मात्र शब्द नहीं है बल्कि रगों में दौड़ती पंजाब की मिट्टी है, देशभक्ति है। हमारी भारतीय सेना के इसी जज्बे ने दुश्मनों को नाकों चने चबवाकर भगाया।
१. कुलदीप सिंह चांदपुरी से मेजर बनने की कहानी अर्थात् बीज- कोंपल- पौधा
ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी का जन्म 20 नवंबर, 1940 को अविभाजित पंजाब के माउंट गोमेरी गांव के गुर्जर परिवार में हुआ। कुलदीप सिंह चांदपुरी का परिवार अपने पैतृक गांव चांदपुर (रुड़की) जाकर बस गया। ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह जी ने 1962 में होशियारपुर गवरमेंट कॉलेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। कुलदीप सिंह अपने माता – पिता की इकलौती संतान थे, इसके बावजूद उनके माता – पिता ने उन्हें सेना में जाने से नहीं रोका क्योंकि वह इस पीढ़ी के इकलौते पुरुष नहीं थे जो भारतीय सैनिक बनें बल्कि उनके परिवार की तीन पीढियां भारतीय सेना में अपनी सेवाएं दे रही थीं। ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह ने 1962 में भारतीय सेना में भर्ती ली। उन्होंने ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी ,चेन्नई से कमीशन प्राप्त किया और पंजाब रेजीमेंट की तेईसवी बटालियन में भाग लिया । 1965 में उन्होंने युद्ध में भाग लिया और पाक सेना को धूल चटाई। युद्ध के उपरांत संयुक्त राष्ट्र को अपनी आपातकालीन सेवाएं दीं और गाज़ा ( मिस्र) में कार्यरत रहे। दो बार मध्य प्रदेश के इन्फ्रेंट्री स्कूल में इंस्ट्रक्टर भी रहे परंतु जब वे सेना से रिटायर्ड हुए तो ब्रिगेडियर पद से रिटायर्ड हुए।
२. मेज़र से ब्रिगेडियर अर्थात् वृक्ष से अमरबेल बनने की कहानी
सन 1971 की सुबह मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी को सूचना मिली कि बहुत बड़ी संख्या में एक सेना लोंगेवाला चौकी की तरफ बढ़ रही है। इस पर मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी को लड़ाई के दिन पंजाब रेजीमेंट बटालियन को लीड करने की जिम्मेदारी दी गई थी। पाक सैनिकों के इरादे बड़े खतरनाक थे क्योंकि वे रामगढ़ होते हुए जैसलमेर पर कब्जा करना चाहते थे। यह कोई छोटी-मोटी संख्या नहीं, बल्कि 2000 से 3000 पाक सैनिक थे। इसके विपरित मेजर के पास कुल 120 सैनिक ही थे उसमें से भी 23 जवान गश्त पर थे। 5 दिसंबर, 1971 को सुबह के अंधेरे में ही पाकिस्तानी सैनिकों ने हमला बोल दिया। अपने पास मात्र नब्बे सैनिक होने के बावजूद वे रेतीली सर्द रात जिसमें रेत का हर कण बर्फ जैसा लगता है, उसमें वे हिम्मत और आत्मविश्वास के साथ डटे रहे और किसी भी पाक सैनिक को आगे नहीं बढ़ने दिया। मात्र मुट्ठी भर भारतीय सैनिकों ने पाक सेना के लगभग 34 टैंकर नष्ट कर दिए। इससे पाक के हौसले पस्त पड़ गए। यह सच में आश्चर्य की बात है कि इतने कम सैनिक होने के बाद भी भारतीय सेना ज़रा- सी भी पीछे नहीं हटी।
पाकिस्तान ने जीत हासिल करने के लिए कईं घिनौने कृत किए फिर भी हार का ही मुंह देखना नसीब हुआ। यहां तक की सफलता की यात्रा में मेजर कुलदीप सिंह चांदपुरी का बहुत बड़ा हाथ था क्योंकि वे युद्ध तो लड़ ही रहे थे साथ-ही-साथ लगातार सैनिकों को प्रोत्साहित कर ये एहसास दिला रहे थे कि हर एक सैनिक अपने आप में दस के बराबर हैं। अगले दिन सुबह होते ही वायु सेना की भी मदद मिल गई।
थल सेना और वायु सेना दुश्मनों पर कहर बनकर बरसीं। दोनों सैनाओं ने मिलकर दुश्मन को भारतीय सीमा से 8 किलोमीटर आगे तक खदेड़ कर भगा दिया। पाक हमारे इतने कम सैनिकों के आगे भी नहीं टिक पाया और अपने नापाक इरादे लेकर पुनः पीठ दिखा कर भाग गया। इस अदम्य जीत के बाद भारतीय सैनिकों की खुशी का ठिकाना नहीं था। इस जीत का श्रेय ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी ने अपनी टीम को दिया और टीम ने ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी को। वे सभी जीत के तुरंत बाद खुशी के माहोल में ‘ जो बोले सो निहाल सत श्री अकाल।’ के नारे लगा कर झूम रहे थे। भारतीय सैनिकों ने टैंकरों पर चढ़ कर भांगड़ा भी किया।
यह जीत कोई सामान्य जीत नहीं बल्कि अविस्मरणीय जीत है। कालजयी घटनाओं में यदि किसी की गुणगाथा की जायेगी तो वो ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी और टीम की, की जायेगी।
इस युद्ध के कुछ रोचक तथ्य –
१. इस युद्ध में आश्चर्य की बात यह थी कि जहां पाक की सेना के 500 सैनिक घायल हो गए थे और 200 सैनिक मारे गए थे वहीं हमारे मात्र दो भारतीय सैनिक घायल हुए थे वे भी उपचार के पश्चात स्वस्थ हो गए।
2. मंदिर को आंच नहीं आई
‘चेकपोस्ट के पास जवानों ने एक 10 बाय 10 का मंदिर बना रखा था। जंग में बुरी तरह क्षति हुई थी, चेकपोस्ट जल कर ख़ाक हो गई थी किन्तु मंदिर को आंच तक नहीं आई। युद्ध के बाद इंदिरा गांधी सहित तत्कालीन सेंट्रल मिनिस्टर जगजीवन राम, वीसी शुक्ला, बीएसएफ डायरेक्टर अश्वनी कुमार, राजस्थान के गवर्नर और मुख्यमंत्री सभी मंदिर को देखने आए। सभी को इस बात का आश्चर्य था कि इतने नुकसान के बावजूद मंदिर कैसे सलामत है।
3. लोंगेवाला के पास एक गांव गमनेवाला है। जंग के दिनों में पाकिस्तानी सेना ने उस गांव के सभी कुओं में ज़हर मिला दिया था। हालांकि सरकार ने जंग के बाद जांच करवाई थी, बावजूद इसके उस गांव के लोग आजतक उन कुओं से पानी नहीं पीते हैं।
4. 1997 में जेपी दत्ता की फिल्म ‘बॉर्डर’ लोंगेवाला की लड़ाई पर आधारित थी। इसमें सनी देओल ने चांदपुरी जी का रोल निभाया था।
भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान लोंगेवाला पोस्ट पर हुई जंग के हीरो ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी जी का देहांत 77 वर्ष की आयु में दिनांक …..शनिवार को मोहाली के फोर्टिस अस्पताल में हुआ था। कैंसर रोग से ग्रस्त होने के कारण उनका इलाज चल रहा था।
लोंगेवाला में अदम्य बहादुरी के लिए ब्रिगेडियर कुलदीप सिंह चांदपुरी जी को महावीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
कैफे सोशियल मैगजीन ऐसे महवीरों को सदैव नमन करता हैं।
जय हिन्द