शूरवीरो की गाथा

गुमनाम नायक – श्री पोट्टि श्रीरामुलु

गुमनाम नायक की श्रंखला में इस संस्करण में एक ऐसे स्वंतत्रता सेनानी के विषय में जानेंगे जिन्होंने देश को स्वतंत्र कराने के साथ-साथ आजाद देश में देश व समाज के लिए अपने प्राणों का बलिदान दिया था। ऐसे गुमनाम नायक थे श्री पोट्टि श्रीरामुलु।
श्रीरामुलु का जन्म १६ मार्च सन् १९०१ में नेल्लौर जिले के पदमातापल्ली में हुआ था।आपके पिता का नाम गुरवैया एवं मां का नाम महालक्ष्मम्मा था जो कि एक हिंदू परिवार से थे।

जन्म के कुछ वर्ष बाद नेल्लौर क्षेत्र में अकाल की स्थिति बन गई थी इस बजह से पूरा परिवार मद्रास चला गया और वहीं रहने लगा। मद्रास से आपने हाईस्कूल की शिक्षा प्राप्त की उसके बाद बाम्बें में विक्टोरिया जुबली टेक्निकल इन्स्टीट्यूट से सैनिटरी इंजीनियरिंग किया। शिक्षा पूरी करने के बाद आपने ग्रेट इंडियन पेनिन सुलर रेलवे में नौकरी करना शुरू कर दिया। यहां पर आपका विवाह हुआ। सन् १९२९ में पत्नी और नवजात बच्चों की अकस्मात् मौत हो गई। कुछ समय बाद आपने नौकरी छोड़ दी और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान देने के लिए साबरमती आश्रम चले गए जहां पर वह महात्मा गांधी के सम्पर्क में आए।

सन् १९३० में नमक सत्याग्रह आंदोलन में शामिल हुए जिसमें उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। कुछ वर्षों बाद जेल से रिहा हुए और सन् १९४१ में सत्याग्रह तथा सन् १९४२ में भारत छोड़ो आंदोलन में शामिल हुए।इन आंदोलनों के चलते उन्हें तीन बार जेल भी भेजा गया।

स्वतंत्रता आंदोलन के साथ समाज के लिए भी कार्य करने लगे। सन् १९४६-४८ में नेल्लौर जिले में दलितों के मंदिर प्रवेश करने की अनुमति एवं आधिकारों के समर्थन में अनेक उपवास किए। तेलुगू लोगों के हितों की रक्षा और तेलुगु संस्कृति, सभ्यता को सुरक्षित, संरक्षित करने के लिए पूरे आंध्र क्षेत्र को अलग कर मद्रास को राजधानी बनाने की जनता की मांगों का समर्थन के लिए लंबे समय तक उपवास रखा।आपके उपवास को छोड़ने के लिए प्रधानमंत्री नेहरू जी ने आश्वासन दिया तब उपवास समाप्त किया।

लेकिन लंबी प्रतीक्षा के बाद भी यह मांग पूरी नहीं होने पर आपने पुनः १९ अक्टूबर १९५२ को महर्षि सम्बमूर्ति के मद्रास घर पर उपवास शुरू कर दिया और १६ दिसंबर १९५२ की रात में आपकी मौत हो गई।आपकी अंतिम यात्रा में शामिल लोगों ने नारे लगाए और इससे दंगा भड़क गया।इसको रोकने के लिए पुलिस ने गोलियां चलाई जिसमें ७ लोगों की मृत्यु हो गई। इसके बावजूद यह आंदोलन लगातार चलता रहा। आखिर में १९ दिसंबर १९५२ को पं नेहरू ने अलग राज्य बनाने की घोषणा कर दी।१ अक्टूबर १९५३ में तेलुगु भाषी आंध्र राज्य की स्थापना हुई जिसकी राजधानी कुरनूल बनी। बाद में हैदराबाद राज्य के लोगों को भी इसमें शामिल किया गया और १ अक्टूबर १९५६ आंध्र प्रदेश बना जिसकी राजधानी हैदराबाद बनी।

आपके देश सेवा समर्पण और उपवास की ताकत को देखते हुए महात्मा गांधी ने कहा था कि “अगर मेरे पास श्रीरामुलु जैसे ग्यारह और अनुयायी होते तो देश बहुत पहले ही स्वंतत्रता प्राप्त कर लेता”।
जिस घर में उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली उस घर को आंध्रप्रदेश सरकार ने स्मारक के रूप में संरक्षित किया है,वह स्थान है- १२६ रोया पेट्टा हाई रोड मायलापुर चेन्नई।

भारत सरकार ने आपके सम्मान में एक डाक टिकट जारी किया था।आज आंध्र प्रदेश के एक जिले का नाम आपके नाम पर श्री पोट्टि श्रीरामुलु नेल्लौर है।

श्रीरामुलु पोट्टि को उनके द्वारा देश और आंध्र के लोगों के लिए उनके सर्वोच्च बलिदान के लिए “अमर जीवी”की उपाधि से सम्मानित किया गया है।

कैफे सोशल देश भक्त और समाज सेवी श्री पोट्टि श्रीरामुलु को नमन करता है।
संजीव जैन
संपादक – मंडल

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