शूरवीरो की गाथा

भारत के गुमनाम नायक – ऊदा देवी पासी

१८५७ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में अपने अदम्य साहस और भारत माता को स्वतंत्र कराने में अपने जीवन का सर्वोच्च बलिदान हमारे अनेकानेक शहीदों ने दिया था, जिसमें पुरुष, नारी, बच्चे शामिल थे।ऐसे ही उन महान सपूतों में से एक थी वीरांगना ऊदा देवी पासी

 जिन्होंने एक ही दिन में कई अंग्रेजी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था।

    ऊदा देवी जी का जन्म संभवत ३० जून १८३० को लखनऊ के नजदीक उजिरावां गांव में पासी समाज में हुआ था। उनका विवाह मक्का पासी से हुआ था, जो  लखनऊ के नवाब की सेना में कार्यरत थे।

      ऊदा देवी भी नवाब की बेगम हजरत महल की सेवा और सुरक्षा में तैनात थी। बेगम की सेवा और सुरक्षा में दलित जाति की महिलाएं ही कार्यरत थी।

    अंग्रेजी हुकूमत अपना विस्तार करते हुए जब लखनऊ पहुंची और उन्होंने नवाब को निर्वासित जीवन व्यतीत करने के लिए मजबूर कर दिया और कलकत्ता भेज दिया। इसके बाद बेगम हजरत महल ने लखनऊ की कमान संभाली।  बेगम ने अंग्रेजी हुकूमत के सामने झुकने से मना कर दिया। उन्होंने अंग्रेजों से युद्ध कर  बहादुरी से सामना किया। अंग्रेजी सेना और नवाबी सेना में भिंड़त हुई।इस युद्ध में दोनों ही पक्षों के अनेक सैनिक मारें गए जिनमें उदा देवी के पति मक्का पासी भी थे।

    उदा देवी के पास जब यह समाचार पहुंचा तो वह स्तब्ध रह गई, और उनके अंदर का सैन्य रुप जाग उठा। अपने पति की मृत्यु पर शोक न मनाते हुए अंग्रेजों से उनकी शहादत का बदला लेना का फैसला किया। और वह सीधे सिंकदर बाग जा पहुंची, जहां पर नवाबी सेना के सैनिक पहले से ही मौजूद थे। उनके पास पहले से ही शस्त्र चलाने का अनुभव था।वह नवाबी सैनिकों के साथ मिलकर अंग्रेज सिपाहियो का डटकर सामना करने लगी और कई अंग्रेजी सैनिकों को मार डाला।जब यह खबर अंग्रेजों को लगी तो वहां पर कैप्टन वायलस और डाउसन सैनिकों सहित पहुंचे तो इससे पहले कि वे हमला करते ऊदा देवी वहां मौजूद पीपल के पेड़ पर चढ़ गई और वह पुरुष वेश में थी। अपने सिपाहियों की लाशे देखकर दोनों आश्चर्यचकित रह गए। गोलियों अब भी लगातार चल रही थी, दोनों यह सोचकर परेशान हो गए कि आखिर कार ऐ गोलियों कहां से आ रही है।जब चारों तरफ देखा और पाया कि गोलियां पीपल के पेड़ से आ रही है और वहां कोई बैठा हुआ है तो इन लोगो ने उन्हें गोली मार दी।जब वो नीचे गिरी तो खून से लथपथ थी। ऊदा देवी ने अपनी अंतिम सांस लेने से पहले एक एक करके ३६ अंग्रेज सिपाहियो को गोलियों से भून दिया था।यह दिन १६ नवंबर १८५७ का दिन था।इस दिन को गदर के रुप में याद किया जाता है। इसी दिन भारत की इस वीर वीरांगना ने अपनी अंतिम सांस ली।

 आज भी लखनऊ के सिंकदर बाग में महान वीरांगना ऊदा देवी की प्रतिमा लगी हुई है।

  कैफे सोशल वीर वीरांगना ऊदा देवी को शत् शत् नमन करता है।।

संजीव जैन
संपादक – मंडल
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