भारत के गुमनाम नायक- अमर शहीद बंधु सिंह
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जब हमारे देश में अंग्रेजी हुकूमत के शासन के द्वारा भारतीयों पर किए जा रहे सितम और अत्याचार बढ़ते ही जा रहें थे तब देश में चारों तरफ से विद्रोह के स्वर उठने लगे थे। यथा शक्ति नुकसान इनका विरोध होने लगा। इसी समय देश के अनेकानेक भारत माता के वीर सपूतों ने अंग्रेजी हुकूमत से डटकर सामना करते हुए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था।उन्ही सपूतों में से आज हम अधिकतर को जानते भी नहीं है।
कैफे सोशल हर माह इन्हीं गुमनाम नायकों से देश को परिचित करा रहा है। एक ऐसे ही वीर सपूत शहीद बंधु सिंह जी थे जिन्हें फांसी पर सात बार लटका गया था।
बंधु सिंह जी का जन्म १ मई १८३३ को डूमरी रियासत के बाबू शिवप्रसाद सिंह जी के यहां हुआ था। बंधु सिंह ५ भाई थे जिनके नाम दल हम्मन सिंह,तेजई सिंह,फतेह सिंह,झीनक सिंह और करिया सिंह था।
इस समय ब्रिटिश सरकार का दमन बढ़ता जा रहा था इससे भारतीयों में अशांति बढ़ने लगी। उन्हीं दिनों मंगल पांडे ने बैरकपुर छावनी के विरुद्ध विरोध करना शुरू कर दिया और इसकी सूचना धीरे धीरे इलाके में फैलने लगी।तब अंग्रेजों के खिलाफ समूचा इलाका खड़ा हो गया और विरोध करने लगा। बंधु सिंह भी अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में खड़े हो गए और रियासत छोड़कर जंगल में चले गए। वहां रहते हुए अपनी गतिविधियों को चलाना शुरू कर दिया।
बंधु सिंह जी को गोरिल्ला युद्ध में महारत हासिल थी।वह जंगल से गुजरने वाले अंग्रेज अधिकारियों पर घात लगाकर हमला करते थे और उनका मस्तक काट कर अपनी ईष्ट देवी तरकुलहा देवी के चरणों में चढ़ा देते थे।वाद में नजदीक एक कुएं में उनके सिर को फेंक दिया करते थे।कुंआ नरमुंडों से भर गया था। कुएं के पास नाली का पानी भी खून से लाल हो जाता था। अंग्रेजों की बलि देने की वजह से इस नाले का नाम गोर्रा नाला पड़ गया था।
एक बार सरकारी खजाना विहार से आ रहा था तो उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर उसे लूट लिया और आपस में बांट लिया। कहां तो यह भी जाता है कि उन्होंने गोरखपुर के कलेक्टर को मारकर उसकी ही कुर्सी पर बैठ कर अपना शासन कायम कर लिया था। अपने अधिकारियों के जंगल से गायब होने से चिंतित अंग्रेजी सरकार ने खोजबीन शुरू कर दी और पता लगा लिया कि इस सबके पीछे बंधु सिंह जी का हाथ है।तब इन्हें गिरफ्तार करने के लिए बनारस से सेना भेजी गई। अंग्रेजों ने डूमरी गांव के पास अपना शिविर स्थापित कर लिया।
बंधु सिंह जी ने इलाके की दो प्रमुख नदियों घाघरा और गंजक पर कब्जा कर अंग्रेजों के आवागमन को रोक कर उनके गोला बारूद उठा ले गए इससे क्रोधित होकर अंग्रेजों ने डूमरी गांव को आग लगा दी जिसके कारण बंधु सिंह और साथियों को मजबूर हो कर भागना पड़ा। आखिर कार सूरत सिंह के विश्वासघात के कारण उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उन्हें अदालत में पेश किया गया जहां से उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। जब बंधु सिंह जी को फांसी दी जा रही थी तो पेड़ ही टूट गया।जब सात बार असफल होने पर आठवीं बार में तरकुलहा में तरकुल का पेड़ टूटकर लटक गया, उससे खून की धार बह गई । यहां पर लोगों ने उनका मंदिर बनाकर पूजना शुरू कर दिया, जो बाद में तरकुलहा देवी मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हो गया।अंततः १२ अगस्त १८५८ को गोरखपुर के अली नगर चौराहे पर फांसी दे दी गई।उन्होंने अंतिम सांस ली।
अमर शहीद भारत माता के सपूत शहीद बंधु सिंह जी की विरासत को जीवित और बलिदान, वीरता को सम्मान देने के लिए उनकी शहादत स्थली और तरकुलहा देवी मंदिर के प्रांगण में में एक स्मारक बनाया गया है।
कैफे सोशल भारत माता के इस वीर सपूत को उनकी प्रतिशोध,शहादत, बलिदान और देश के प्रति अटूट समर्पण को शत् शत् नमन करता है।
“हमें गर्व है अपने देश के अमर शहीद सपूतों पर”
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