परमवीर चक्र

शूरवीर परमवीर अल्बर्ट एक्का

“ताकत मेरी दासी है, मैंने उसे पाने के लिए इतनी मेहनत की है कि कोई उसे मुझसे छीन नहीं सकता।”

– नेपोलियन बोनापार्ट

शायद नेपोलियन को पता था कि ज़ख्मी होने के बावजूद भी अपनी ताकत का लोहा मनवाने वाला शूरवीर परमवीर अल्बर्ट एक्का भारत में जन्म लेगा और ताकत को अपनी दासी बनाकर दुश्मन के ऊपर काबिज़ होगा और बोनापार्ट के ये विचार भारत के जांबाज़ के ऊपर सटीक उतरेंगे।

जंगल में बेजुबान जानवरों का शिकार करना भले ही बुजदिल शिकारियों का काम हो परन्तु शिकार का शौक रखना और शौक रखकर देश के दुश्मनों को शिकार बनाने का जज़्बा रखना एवं दुश्मनों का शिकार करना बुज़दिली हो ही नहीं सकती। साथ ही इसी लक्ष्य को लेकर सैन्य वर्दी धारण करना, यह एक वीर और एक सच्चे देशभक्त की निशानी है।

जी हाँ यहाँ हम बात कर रहे हैं, शिकार का शौक रखने वाले ऐसे ही देशभक्त झारखंड के आदिवासी जनजातीय परिवार में जन्मे परमवीर लांस नायक अल्बर्ट एक्का की।

वो 27 जनवरी 1942 का दिन जरी गाँव में गजब की रौनक छाई हुई थी, माँ जूलियस का चेहरा गजब ही मुस्कुरा रहा था पिता जूलियस एक्का गर्व से पुत्र रत्न की प्राप्ति के उपलक्ष्य में गाँव में मिठाइयाँ बाँट रहे थे, रिश्तेदारों और पड़ोसियों के चेहरे खिले हुए थे, हर तरफ पटाखों और ढोल की गूंज से माहौल गुंजायमान हो रहा था।

किशोरावस्था एवं सैन्यरुचि
समय बीतता गया और झारखंड के गुमला जरी गाँव में जन्मा बालक समय के साथ धीरे-धीरे बड़ा होता गया। चूंकि परवरिश एवं जन्म आदिवासी परिवार में हुआ था, आदिवासियों के लिए शिकार एक आम खेल होता है इसलिए बालक में शिकार का शौक होना लाज़मी था। लेकिन इस होनहार बालक को सिर्फ शिकार का शौक ही नहीं था वरन् ये एक पारंगत शिकारी भी था। लेकिन इसी शिकार के जज्बे ने इस होनहार बालक की रुचि स्वतः ही सेना में भर्ती होने के लिए जागृत कर दी। तभी कहा गया है पूत के पाँव पालने में दिख जाते हैं।

इसलिए एक्का जंगलों में शिकार के अपने अनुभव, जमीन और चाल के अपने कुशल उपयोग के साथ एक बेहतर सैनिक बनने में सक्षम भी थे। अपनी इसी काबिलियत के कारण 27 दिसंबर 1962 को एक्का बिहार रेजिमेंट में भर्ती हो गये थे।

सैन्य सफर जनवरी 1968 में गार्ड्सस ब्रिगेड की 14वीं बटालियन के गठन के बाद, एक्का को उस यूनिट में स्थानांतरित कर दिया गया। उन्होंने उत्तर पूर्व में रहते हुए आतंकवाद विरोधी अभियानों में कार्रवाई देखी । आतंकवादी ताकतों के विरुद्ध इनके कौशल को देखते हुए 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध की तैयारी के दौरान एक्का को लांस नायक के रूप में पदोन्नत किया गया।

गंगासागर मार्चःशुरू हुआ सफर योद्धा का
2-3 दिसंबर 1971 की रात दो बजे की बात थी। 14 गार्ड की अल्फ़ा और ब्रावो कंपनियों ने पूर्वी पाकिस्तान में गंगासागर में पाकिस्तानी नियंत्रण वाले इलाके में मार्च करना शुरू किया, ये जगह अखौरा रेलवे स्टेशन से चार किलोमीटर की दूरी पर स्थित थी और ब्राह्मण बरिया, भैरब बाज़ार और कमालपुर के बीचों-बीच थी। वो दलदली इलाका था और उसमें चलने वाले सैनिकों के पैर घुटनों तक जमीन धंसे चले जा रहे थे इसलिए उनसे रेलवे ट्रैक की बगल में एक कतार में चलने के लिए कहा गया था। ये रेलवे पटरी ज़मीन की सतह से 8-10 फीट की ऊंचाई पर बिछाई गई थी। लांस नायक गुलाब सिंह और अल्बर्ट एक्का को सबसे आगे चलने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी। अल्फ़ा कंपनी रेलवे पटरी के दाहिनी तरफ़ और ब्रावो कंपनी लाइन के बायीं तरफ़ चल रही थी।

उन्हें आदेश थे कि जैसे ही पाकिस्तानी सैनिक दिखाई दे, वो उन पर हमला बोल दें।

यहाँ उल्लेखनीय है कि जैसे ही युद्ध छिड़ा 14 गार्ड्स को कोर चतुर्थ से जोड़ा गया । जैसे ही ऑपरेशन शुरू हुआ, यूनिट ने खुद को गंगासागर के दक्षिण में अखौरा रेलवे स्टेशन से लगभग 4 किलोमीटर । 2.5 मील दूर रखा और अपनी सुरक्षा का गठन किया। रेलवे स्टेशन के चारों ओर का ऊँचा मैदान उनका मुख्य बचाव था, उसके बाद टैंक- विरोधी और कार्मिक-विरोधी खदानें थीं। एक गश्त के दौरान, पाकिस्तानी सैनिकों को रेलवे पटरियों पर चलते हुए पाया गया। जल्द ही बटालियन की दो कंपनियों ने पटरी के किनारे दुश्मन के ठिकानों पर हमला कर दिया।

अल्बर्ट एक्का के परमवीर की ओर बढ़ते कदम
वो विरले ही होते हैं जो ज़ख्मी होने के बावजूद भी खुद की व्यक्तिगत चिंता किये बगैर दुश्मन को धूल चाटने पर मजबूर कर देते हैं, कुछ ऐसा ही अल्बर्ट एक्का ने गंगासागर युद्ध में किया।

जैसे ही दुश्मन की ओर लांस नायक एल्बर्ट एक्का एवं उनके सैनिकों ने कूच किया और लक्ष्य तक पहुंचे वहाँ अल्बर्ट एक्का ने देखा लक्ष्य के उत्तरी छोर की ओर एक अच्छी तरह से मजबूत इमारत की दूसरी मंजिल से दुश्मन अपनी एलएमजी लाइट मशीन गन से उनकी कंपनी को भारी नुकसान पहुंच रहा है। जिसमें भारी लोग हताहत हो रहे हैं इसके बावजूद अल्बर्ट ने अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा को नजरअंदाज करते हुए दुश्मन के बंकर पर हमला कर दिया और हमले को कुछ हद तक रोक दिया। एक बार फिर यह वीर सैनिक अपनी व्यक्तिगत सुरक्षा के बारे में सोचे बिना अपनी गंभीर चोट और दुश्मन की भारी गोलाबारी के बावजूद आगे रेंगता रहा जब तक कि वह इमारत तक नहीं पहुँच गया और एक ग्रेनेड को बंकर में फेंक दिया, जिससे एक दुश्मन सैनिक की मौत हो गई और दूसरा घायल हो गया। हालाँकि एल एम जी ने फायरिंग जारी रखी परन्तु उत्कृष्ट साहस और दृढ़ संकल्प के साथ लांस नायक अल्बर्ट एक्का ने एक तरफ की दीवार को तराशा और बंकर में प्रवेश करते हुए दुश्मन के सैनिक पर हमला किया जो अभी भी फायरिंग कर थी।

रहा था और इस तरह मशीनगन को चुप करा दिया, जिससे उसकी

कंपनी को और हताहत होने से बचाया गया और हमले की सफलता सुनिश्चित हुई।

ज़ख्म जितना गहरा रहा था अल्बर्ट में जोश उतना ही बढ़ता जा रहा था। दिल में जुनून था तो सिर्फ एक दुश्मन के छक्के छुड़ाना और कम्पनी को बचाना। इधर अल्बर्ट के लहू का कतरा बहता जा रहा था उधर अल्बर्ट दुश्मन पर वार पे वार किए जा रहे थे, इस जोश और जुनून में वो ख़ुद ही खुद के ज़ख्मों को भूल गए। अंततः वीर के शरीर से लहू बेलगाम बहता रहा। आँखों में अंधेरा छाने लगा आखिर शरीर तो शरीर है कब तक साथ देता, हुआ वही जिसका डर था वो लड़ते हुए भारत माँ की गोद में समाकरजीवनपर्यंत अमर हो गए।

धन्य है ऐसा विरला अमर वीर जवान।
अमरत्व प्राप्त करने उपरांत लांस नायक अल्बर्ट एक्का को भारत के सर्वोच्च युद्धकालीन वीरता पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। 2000 में 50 वें गणतंत्र दिवस के अवसर पर भारत सरकार ने उनकी स्मृति में एक डाक टिकट जारी किया। झारखंड के सपूत को फिरयालाल स्टोर के सामने प्रमुख चौराहे का नाम अल्बर्ट एक्का चौक रख कर

सम्मानित किया गया, जिस पर उनकी प्रतिमा भी स्थापित की गई है। उनके नाम से गुमला में एक प्रखंड (उप जिला) भी बनाया गया है अल्बर्ट एक्का जरी प्रखंड।

1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान अगरतला को पाकिस्तान से बचाने की

उनकी कार्रवाई के लिए त्रिपुरा में उनके नाम पर एक इको पार्क अल्बर्ट एक्का पार्क है।

सलाम है भारत के इस जांबाज और सच्चे सपूत को
ये सच है कि जब देश की माँ ऐसे वीरों को जन्म देती हैं मातृभूमि खुद बखुद स्वर्ग बन जाती है। देश में अमन-चैन और सुकून की बहार खुद बखुद आ जाती है, वीर को नतमस्तक होकर शीश ये नमन करता है।

तेरे वजूद पर अल्बर्ट, तुम पर, ये देश गर्व करता है।

जय हिंद जय भारत

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button