भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की गुमनाम शहीद – श्रीमती तारा रानी श्रीवास्तव
-संजीव जैन
स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में कई स्वतंत्रता सेनानियों की भूमिका रही है। इनमें पुरुषों के साथ साथ महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया था ।इन वीरांगनाओं में रानी लक्ष्मी बाई , झलकारी बाई हो या फिर इन जैसी अनगिनित वीर महिलाओं ने क्रूर अंग्रेजों के सामने ना झुकते हुए बड़ी बहादुरी से उनका सामना किया और देश की आजादी के खातिर अपना सर्वोच्च बलिदान तक दिया। इन वीरांगनाओं में से कुछ को याद रखा गया लेकिन बहुतों को भुला दिया गया। इतिहास में भी इनका जिक्र बहुत कम दिखाई देता है।
इन्हीं गुमनाम वीरांगनाओं में से एक थी” श्रीमती तारा रानी श्रीवास्तव”
तारा रानी का जन्म बिहार के सारण जिले में हुआ था। वह एक सामान्य सामाजिक महिला थी। उनका विवाह फुलेंदु बाबू से हुआ था जो कि एक स्वतंत्र सेनानी थे। पति के संग रहते हुए उनके हृदय में भी देश प्रेम की भावना जगी और देश को आजादी दिलाने के लिए गांव-गांव जाकर औरतों को आजादी की लड़ाई में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करने लगी।
8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी ने “करो या मरो” का नारा देकर भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान किया। इस आंदोलन में देशवासियों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। तारा रानी के पति भी अंग्रेजों की अवज्ञा करने के लिए सिवान थाने पर तिरंगा लहराने का निर्णय लिया । लोगों को एकत्रित कर सिवान थाने की ओर चल दिए उनके साथ काफी भीड़ थी। इसका नेतृत्व स्वयं तारा रानी कर रही थी । आगे आकर पुलिस ने इन सबको रोकना शुरू किया लेकिन देश प्रेमियों का जनसैलाब कहां रुकने वाला था। तत्पश्चात पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया लेकिन पुलिस के डंडे भी इन को आगे बढ़ने से नहीं रोक पाए। मार खाते हुए भी आगे बढ़ने लगे। तब पुलिस ने गोलियां चलाना शुरू कर दिया इसी बीच फुलेंदु बाबू भी पुलिस की गोली लगने से घायल हो गए। यह 12 अगस्त 1942 का दिन था। तारा रानी ने अपने पति को घायल अवस्था में देख उनके घाव पर अपनी साड़ी से एक टुकड़ा फाड़कर पट्टी बांधी और उन्हें वहां उसी हालत में छोड़ कर अपने दिल को मजबूत कर भीड़ का नेतृत्व करने लगी और सिवान पुलिस स्टेशन की ओर आगे बढ़ने लगी क्योंकि उनके पति ने संकल्प जो लिया था तिरंगा लहराने का। मजबूत इरादों के साथ उन्होंने सिवान पुलिस स्टेशन पर जाकर तिरंगा लहराया भी। तिरंगा फहरा कर जब पति के पास लोंटी तब तक उनकी पति की मौत हो चुकी थी। यह सब देख कर हिम्मत ना हारते हुए उनके अंतिम संस्कार तक मजबूती के साथ खड़ी रही।
15 अगस्त 1942 को छपरा में उनके पति की देश के लिए दी गई कुर्बानी के सम्मान में एक प्रार्थना सभा रखी गई थी उस सभा में भी तारा रानी ने लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ सामना करने का निश्चय किया ।
तारा रानी ने इस बात को असत्य कर दिखाया कि एक औरत अपने पति के पीछे ही चलती है। तारा रानी ने अपने पति को खोने के बाद भी आजादी मिलने तक स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भाग लिया अपने पति की शहादत को व्यर्थ ना होने दिया। और देश को स्वतंत्रता मिलने तक कार्य करती रही।
ऐसी महान वीरांगना तारा रानी श्रीवास्तव के चरणों में कैफे सोशल की विनम्र श्रद्धांजली।
शत् शत् नमन