भारत के गुमनाम नायक – श्रीमती सुनीति चौधरी
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में हमें बहुत से वीरों की कहानियां पढ़ने- सुनने को मिलती हैं लेकिन बात अगर देश की वीरांगनाओं की हो तो गिने-चुने नाम ही हमें पता हैं। लेकिन आपको बता दें कि समय-समय पर भारत की बहुत सी बेटियों ने न सिर्फ शक्ति प्रदर्शन किया बल्कि अपने साहसिक कार्य से अंग्रेजी हुकूमत की नींद हराम कर दी थी। इस संस्करण में हम एक ऐसी क्रांतिकारी बेटी के अदम्य साहस की बात कर रहे हैं, जिन्होंने मात्र १४ वर्ष की कम उम्र में वो साहसिक कार्य किया जो बड़ी उम्र के लिए भी कठिन था। वो थी भारत की सबसे युवा महिला क्रांतिकारी सुनीति चौधरी।
सुनीति चौधरी का जन्म २२ म ई १९१७ को बंगाल के कोमिल्ला में एक मध्यम वर्गीय बंगाली परिवार में हुआ था। आपके पिता का नाम उमाचरण चौधरी एवं माता का नाम सुरसुंदरी चौधरी था।
स्कूल के समय अपनी वरिष्ठ छात्रा प्रफुल्ल नलिनी के सम्पर्क में आई और उनके मार्गदर्शन में बहुत से किताबों का अध्ययन किया। स्वामी विवेकानंद की एक पुस्तक पढ़ते समय उनके एक वाक्य ने सुनीति चौधरी की दिशा ही बदल दी।वह वाक्य था “जीवन मात्रभूमि के लिए एक वलिदान है”
सन् १९३१ में नेताजी के आह्वान पर उन्होंने एक छात्र संघ बनाया, जिसमें सुनीति कप्तान, शांति घोष सचिव और प्रीति लता अध्यक्ष बनीं। इन लोगों ने क्रांतिकारी वरूण भट्टाचार्य से पिस्तौल, शूटिंग और मार्शल आर्ट सीखा।
उस समय वहां जिला मजिस्ट्रेट चार्ल्स जेफ्री बकलेंड स्टीवंस था, जो चल रहे सत्याग्रह को नष्ट करने के लिए जुल्म करने लगा, सभी नेताओं को जेल में डाल दिया गया, यहां तक कि महिलाओं और लड़कियों को भी प्रताणित करने लगा। जब इसके
अत्याचार बढ़ने लगे तब इसको सबक सिखाने के लिए विचार किया गया और इसे दंड देने के लिए योजना बनाई गई।इस काम को शांति घोष और सुनीति चौधरी ने अंजाम तक पहुंचाने का निर्णय लिया।
१४ दिसंबर १९३१ को सुबह १० बजे एक गाड़ी जिला मजिस्ट्रेट के बंगले के सामने आकर रुकी।उस गाड़ी में २ लड़कियां थी। उन दोनों ने साड़ियों के ऊपर रेशमी आवरण बांध रखा था। वहां मौजूद कमर्चारियों के हाथ एक पर्ची मजिस्ट्रेट के पास भेजी। मजिस्ट्रेट, उप विभागीय अधिकारी नेपाल सेन के साथ बाहर आए। स्टीवंस ने दोनों लड़कियों से पत्र लिया। उन दोनों लड़कियों ने मजिस्ट्रेट से तैराकी क्लब खोलने की अपील की और पत्र सोंपा। मजिस्ट्रेट पत्र लेकर अंदर हस्ताक्षर करने के लिए गया। जब हस्ताक्षर कर पत्र देने के लिए सामने लड़कियों की ओर देखा तो दोनों लड़कियों ने उस पर पिस्तौल तान दी। वहां मौजूद लोगों ने उन्हें पकड़ लिया। गिरफ्तार कर उन्हें मिदनापुर सैंट्रल जेल में रखा गया, जहां पर उन्हें शारीरिक और मानसिक रुप से प्रताणित किया गया। उन पर मुकदमा चलाया गया और २७ फरबरी १९३२ को कम उम्र होने के कारण फांसी की सजा न देते हुए काला पानी का दंड दिया गया। सन् १९३९ में उन्हें जेल से रिहा कर दिया गया।
जेल से रिहा होने के बाद वह अपनी पढ़ाई फिर से शुरू कर दी और एम बी (एम बी बी एस) की परीक्षा पास कर डाक्टर की डिग्री प्राप्त की। उन्होंने गरीबों और पीड़ितों के बीच जाकर उनका इलाज किया।
उस क्षेत्र में उनकी पहचान निस्वार्थ सेवा के रूप में बन गई। सन् १९४७ में उन्होंने ट्रेड यूनियन नेता प्रधोत कुमार से विवाह किया। १२ जनवरी १९८८ में उन्होंने अंतिम सांस ली।
स्वतंत्रता सेनानी, क्रांतिकारी भारतीय महिला सुनीति चौधरी को कैफे सोशल का शत् शत् नमन।