Satire

मुंबई लोकल और उसके यात्री एक हास्य व्यंग्य

एसी लोकल बनाम नॉन-एसी लोकल
मुंबई लोकल ट्रेन, जिसे ‘मुंबई की जीवनरेखा‘ कहा जाता है, असल में एक चलती-फिरती ‘जीवन पाठशाला‘ है। यहाँ आप हर तरह के लोग, उनके अजीबो-गरीब कारनामे और भारतीय रेलवे की अनोखी व्यवस्थाएं देख सकते हैं। अगर आप मुंबई लोकल में सफर कर चुके हैं, तो समझिए कि आपने जिंदगी का सच्चा अनुभव पा लिया है। आइए, इस हास्य व्यंग्य में झांकते हैं लोकल ट्रेन के यात्री और उनके नाटकिया रंग-ढंग पर।


सुबह की लोकल ट्रेन ऐसी होती है जैसे फ्री में बिरयानी बंट रही हो। हर कोई ट्रेन में घुसने की कोशिश करता है, जैसे वो ट्रेन ना हो, बल्कि स्वर्ग का दरवाजा हो।

यात्री ऐसे दौड़ते हैं जैसे ओलंपिक में गोल्ड जीतना हो। दरवाजे पर खड़े लोग ऐसे खड़े होते हैं जैसे वो ‘बाउंसर‘ हों। अंदर जगह कम हो या ना हो, धक्का-मुक्की में सबको अंदर खींच लिया जाता है।

अगर किसी को बैठने की जगह मिल जाए, तो समझो वो अगले दिन भगवान को प्रसाद चढ़ाएगा। खड़े यात्रियों की हालत ऐसी होती है, जैसे सरसों के तेल में डूबा हुआ समोसा। एक हाथ ऊपर पकड़कर और दूसरा मोबाइल चलाने में, उनकी ”योगा पोज“ देखकर बाबा रामदेव भी प्रेरणा ले लें।

मुंबई लोकल की सीटें किसी राजगद्दी से कम नहीं हैं। यहाँ हर यात्री की आंखें ऐसी होती हैं जैसे ‘सीट स्कैनर‘। ”अरे भैया, थोड़ा खिसक लो,“ कहकर लोग इतनी जगह पर बैठ जाते हैं कि दो इंच की सीट पर तीन लोग फिट हो जाएं।


एक और मजेदार चीज होती है ‘यात्रा का टाइमटेबल’। “भाईसाहब, आप कहाँ उतरोगे?”
“अंधेरी।”
“अच्छा, मैं उसके बाद बैठूंगा।”
बस फिर, टाइम गिनती शुरू। ऐसा लगता है जैसे लोग सीट पाने के लिए आईआईटी का एंट्रेंस दे रहे हों।
मुंबई लोकल सिर्फ सफर करने की जगह नहीं है, यह एक चलता-फिरता सर्कस भी है। यहाँ आपको गायक, भजन मंडली, और कभी-कभी झगड़ालू लोग भी मिल जाएंगे।

“भाईसाहब, गाना सुनिएः सुरमै अंखियों में नाना सा सपना…”। ऐसे गायक अपनी आवाज से आपको या तो मंत्रमुग्ध कर देंगे या फिर हेडफोन निकालने पर मजबूर कर देंगे।

फिर आते हैं लोकल के ‘चिकने चोर’- “अरे भाई, मेरा मोबाइल!” ये शब्द सुनकर सबकी जेबें चेक होने लगती हैं।
लोकल में भिखारियों का भी अलग जलवा है। “माँ-बाप का सहारा छूट गया, कुछ दान कर दो,” बोलते हैं, और अगले स्टेशन पर महंगे मोबाइल पर बात करते हुए दिखते हैं।


दुपहर की ट्रेन में आपको ‘टिफिन ग्रुप’ मिलेगा। ये लोग ना सिर्फ अपना खाना खाते हैं, बल्कि आसपास वालों को भी भूखा बना देते हैं। “भाईसाहब, इस पूड़ी की रेसिपी क्या है?” से लेकर “आपकी सब्जी में नमक थोड़ा ज्यादा है,” तक, ये लोग खाना कम और समीक्षा ज्यादा करते हैं।

लोकल ट्रेन की खिड़की वाली सीट वो सपना है जिसे हर यात्री देखता है। अगर किसी को ये सीट मिल जाए, तो वो ऐसा फील करता है जैसे उसने मुंबई की कुंजी पा ली हो।
खिड़की पर बैठने वाले लोग बड़े रोमांटिक होते हैं। हवा में उड़ते बाल और दूर तक फैले समुद्र को देखकर लगता है जैसे वो किसी फिल्म का हिस्सा हों।

लेकिन खिड़की के पास बैठने की कोशिश में जब कोई सिर बाहर निकालकर हवा खा रहा होता है, तभी रेलवे का “सर बाहर मत निकालिए” वाला एलान आता है। लगता है, ये सिर्फ उसी के लिए रिकॉर्ड किया गया है।

शाम की ट्रेन में लोग ऑफिस से लौटते वक्त ऐसे दिखते हैं जैसे युद्ध से लौटे हों। अगर किसी यात्री को बैठने की जगह मिल जाए, तो वो तुरंत सोने का एक्टिवेशन मोड ऑन कर देता है।

कुछ यात्री अपनी जिंदगी की समस्याएं जोर-जोर से फोन पर डिस्कस करते हैं, जैसे ट्रेन का हर यात्री उनका सलाहकार हो।

मुंबई लोकल में कुछ “अनलिखित नियम” हैंः
जो पहले चढ़ा, वो दरवाजे पर खड़ा रहेगा।
अगर भीड़ में आपका बैग किसी को लगे, तो वो उसे अपनी सीट मान लेगा।
ट्रेन में कोई प्राइवेट स्पेस नहीं है। आपका कॉल, आपकी बातचीत सबका मनोरंजन है।

एसी लोकल बनाम नॉन-एसी लोकल
अब सरकार सभी ट्रेनों को एसी में बदलने की योजना बना रही है। एसी ट्रेनें आरामदायक हैं, लेकिन इनका टिकट ऐसा लगता है जैसे किसी पांच सितारा होटल में सफर कर रहे हों।

नॉन-एसी लोकल में जो खुलापन था, जो हवा का ताजगी भरा झोंका था, वो एसी ट्रेनों में गायब है। और सबसे बड़ी बात, एसी ट्रेनों में आपको वो ‘मुंबई की खुशबू’ नहीं मिलेगी जो पसीने और लोकल के डिब्बे में मिलने वाले समोसे से आती थी।

मुंबई लोकल ट्रेन सिर्फ एक परिवहन का साधन नहीं, बल्कि मुंबईकरों के जीवन का हिस्सा है। यहाँ हर दिन नए अनुभव होते हैं, चाहे वो धक्का-मुक्की हो, सीट के लिए लड़ाई हो, या किसी गायक का गाया गाना।

अब जब नॉन-एसी लोकल्स की जगह एसी ट्रेनें लेने वाली हैं, तो वो सारे छोटे-छोटे पलों की यादें भी पीछे छूट जाएंगी। लेकिन जब तक ट्रेनें चल रही हैं, तब तक हर यात्री के पास कहने को एक नई कहानी होगी।

तो अगली बार जब आप मुंबई लोकल में चढ़ें, तो ध्यान से देखिएकृहो सकता है, आपकी यात्रा का हिस्सा किसी हास्य व्यंग्य का हिस्सा बन जाए!

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