भारत के गुमनाम नायक – लीला (नाग)राय
आज स्वतंत्र भारत की विकास यात्रा को देखते हैं तो हमें अनायास अपने स्वतंत्रता सेनानियों की याद आती है कि किस तरह से उन्होंने अपना सर्वस्व वलिदान कर दिया था देश को स्वतंत्र कराने में। इन वीर नायकों में से कुछ को छोड़कर अधिकांश को आज जानते भी नहीं है।इन गुमनाम नायकों के विना भारत की विकास यात्रा में राष्ट्रीयता की भावना अधूरी सी लगती है।
कैफे सोशल पत्रिका अपने हर संस्करण में इन्हीं गुमनाम नायकों को याद करते हुए देश के सामने लाने को प्रयासरत हैं।
इस संस्करण में हम एक ऐसी क्रांतिकारी की कहानी लेकर आए हैं जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के साथ स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माण के साथ भारतीय समाज को शिक्षित बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
वो थी लीला (नाग)राय जी
लीला जी का जन्म ०२ अक्टूवर १९०० में असम के गोलपारा में हुआ था। उनके पिता का नाम गिरीश चंद्र नाग एवं मां का नाम कुंजलता नाग था। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा के बाद ढाका के ईडन हाईस्कूल में शिक्षा ली। हाईस्कूल में अच्छे नंबर प्राप्त करने के बाद छात्रवृति मिली और आगे की पढ़ाई के लिए कलकत्ता के बेथ्यून कालेज से सन् १९२१ में अंग्रेजी में बी.ए आनर्स किया, जिसमें उन्हें स्वर्ण पदक भी मिला था। इसके बाद ढाका विश्वविद्यालय से सन १९२३ में मास्टर डिग्री प्राप्त की।उस समय वह उस विश्वविद्यालय की पहली महिला थीं जिन्हें यह डिग्री मिली थी। उनका विवाह क्रांतिकारी अनिल राय के साथ हुआ था
ढाका में शिक्षा प्राप्त करते हुए वे मुक्ति संघ संगठन के सम्पर्क में आई।इस संगठन के साथ मिलकर काम करते हुए उन्होंने महिलाओं एवं लड़कियों को शिक्षित करने के लिए दीपाली संघ नाम से एक अलग संगठन बनाया।इस संगठन के अंतर्गत दीपाली स्कूल, नारी शिक्षा मंदिर, शिक्षा भवन एवं शिक्षण निकेतन नाम से कई शाखाएं खोली। धीरे धीरे इन्हीं लड़कियों को गुप्त रुप से क्रांति की शिक्षा एवं प्रशिक्षण देने लगी। पुलिस की नजर से बचते हुए उन्होंने मुक्ति संघ और श्री संघ के माध्यम से गुप्त गतिविधियों का संचालन करने लगी। ऐसा कहा जाता है कि ढाका के पुलिस महानिरीक्षक लोमैन की हत्या के पीछे लीला जी और उनके पति की योजना से गुप्त रुप से कराई गई थी। पुलिस को जानकारी मिली तो वह इन दोनो का पीछा करने लगी और अंततः सन् १९३१ में गिरफ्तार कर लिया गया। सन् १९३७ में जेल से रिहा हुई और उसके बाद राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल होकर देश सेवा में लग गई।
सन् १९२३ में दीपाली संघ संगठन के माध्यम से महिलाओं को सामाजिक, राजनीतिक और नेतृत्व के लिए प्रशिक्षित किया। इसके लिए उन्होंने गांधी जी जैसे नेताओं की आलोचना भी की थी क्योंकि वो चाहते थे कि सार्वजनिक जीवन में महिलाओं की भूमिका सीमित रहें जबकि लीला जी चाहती थी कि महिलाएं स्वतंत्रता आंदोलन में भाग ले और शराब जैसी दुकानों पर धरना आदि देकर आगे आए। नेता जी सुभाष चन्द्र बोस से प्रेरित होकर वह फारवर्ड ब्लॉक की केंद्रीय कार्यकारी समिति की सदस्य बनीं। सन् १९२६ में वह हेमचंद्र घोष और अनिल राय के नेतृत्व वाली क्रांतिकारी संगठन श्री संघ में शामिल हुई। इससे पता चलता है कि वह भारत के राजनैतिक परिदृश्य के क्रांतिकारी और उदारवादी दोनों ही पंथों से जुड़ी हुई थी। उन्होंने फारवर्ड ब्लॉक वीकली में संपादकीय पद भी संभाला था। जब सुभाष चन्द्र बोस कांग्रेस से निष्कासित किए गए तो उन्होंने उनका साथ दिया और मरते दम तक उनके साथ रही।
दिसंबर १९४६ में वो बंगाल से संविधान सभा के लिए चुनी गई। लेकिन भारत विभाजन के विरोध में उन्होंने इस्तीफा दे दिया। इस्तीफा देने के बाद भी वह सामाजिक एवं राजनैतिक कार्यों में लगी रही। कलकत्ता में उसी समय हुए दंगों के पीड़ितों की मदद की ओर नोआखली में बचाव एवं राहत कार्य के लिए राष्ट्रीय सेवा संस्थान की स्थापना की। स्वतंत्रत भारत में भी वह राजनीतिक जीवन में रही। सन् १९६० में फारवर्ड ब्लॉक और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के विलय से बनी पार्टी की अध्यक्ष बनीं। सन् १९६२ में उन्होंने सक्रिय राजनीति से संन्यास ले लिया।
११ जून १९७० को कलकत्ता में उन्होंने अंतिम सांस ली।
देश की महान शिक्षाविद और क्रांतिकारी लीला (नाग) राय जी को कैफे सोशल की और से विनम्र श्रद्धांजली।