फादर्स डे
”डैडी, मेरे प्यारे डैडी कब आ रहे हैं? घर का इन्टीरियर पूरा होने वाला है। सुबह -सुबह सोनी चहकती आवाज में फोन पर बोली
तू बता कब आऊँ, मैं तो तेरे फोन का इन्तजार कर रहा हूँ? महेन्द्र फोनपर उत्तर देते हुए बोले।
”डैडी अगले हफ्ते ही आजाइये क्योंकि स्कूल खोलने वाले हैं, नया फ्लैट, नयी जगह और मेरा भी कॉलेज हो जाएगा इसलिए मुझे आपकी मदद की जरूरत है। आप रहेंगे तो सारी प्रॉब्लम सॉल्व हो जाएगी। आप घर बाहर दोनों मैनेज कर लेते। औौर हाँ डैडी इस बार फादर्स डे नये फ्लैट में सेलीब्रेट करूँ गी। तभी आपको फादर्स डे का गिफ्ट दूँगी।“
अरे बेटा तूने पिछले वर्ष ही तो मुझे गिफ्ट दिया था। मैं उसी मोबाइल से तो तुझ से बात कर रहा हूँ।
अरे तो क्या हुआ डैडी, आप मेरे स्पेशल डैडी हैं। मैं पी .एच. डी. आपके कारण ही कर पाई हूँ।आपने बहुत मेहनत की है। मेरे प्यारे डैडी, कितने घंटे मेरे लिए गाड़ी में इन्तजार करते थे।
”ठीक है, ठीक है, बेटा, मैं अगले हफ्ते ही पहुँच जाऊँगा। चिंता मत कर, सब संभाल लूँगा। तुझे क्या क्या मंगाना है? बता देना।“
महेंद्र ने फोन रख दिया और सोचने लगे कि बिटिया इतनी बड़ी हो गई है, दो बच्चों की मां बन गई फिर भी बचपना नहीं गया। हर पल मुझको याद करती है। छोटी थी तब भी खाना मेरे हाथ से खाती थी, स्कूल जाती थी तो बाल मुझसे ही कढ़वाती थी। अगर उसकी मम्मी बाल कभी बाल काढ़ना चाहती थी तो मना कर देती थी नहीं आप मत काढ़िए, मैं डैडी से ही कढ़वा ऊँगी।
स़ोनी दो भाइयों की इकलौती बहन और महेंद्र बाबू की लाड़ली थी।
जब उसका जन्म हुआ तो महेन्द्र खुशी से चहक उठे थे, कहने लगे कि वह चिंटू – मिंटू को राखी बांधने के लिए बहन आ गई है, सचमुच अब हमारी बगिया में बहार आ गई है और उन्होंने उसका नाम राखी रख दिया फर प्यार से उसको सोनी या सोनू कहते थे ।सोनी जब भी परीक्षा देकर आती तो अपने डैडी को पेपर दिखाती कि डैडी मेरे इतने मार्क्स (अंक) आयेंगे और उसके हमेशा उसके आसपास ही अंक आते।
सोनी कहीं भी जाती, हर जगह अपने डैडी के साथ जाती, परीक्षा देना हो, इंटरव्यू देना हो या सहेली के यहाँ जाना हो।सोनी ने बैंक में सर्विस की तो रोज शाम को महेन्द्र ऑफिस से बैंक जाते और उसे लेकर आते। कभी-कभी काम अधिक होता तो घर जाकर वापस रात को उसे लेने आते। संडे को पहले ही बोल देती कि डैडी कल मुझे फ्रेंड के यहाँ जाना है आप तैयार हो जाना। उसकी माँ सुधा कहती कि अब तू बड़ी हो गई है बेटा खाना बनाना सीख ले।
एक सन्डे मिलता है, और वो भी तू सहेली के यहाँ चल देती है। महेंद्रजी सुधा को समझाते ”अरे घूम लेने दो, एक सन्डे ही तो मिलता है उसे। जब शादी होगी तो उसे खाना बनाना सिखा देना।“ शादी हुई तो इतनी जल्दी कि बैंक के आफिसर का ही रिश्ता आया और महीने भर में फटाफट शादी हो गई और सोनू मुंबई चली गई। लेकिन फिर भी हमेशा अपने डैडी को याद करती थी। एक साल बाद उसके बिटिया हो गई तो उसने बैंक की नौकरी छोड़ दी और उसने ठ.म्क, ड.म्क किया और पी.एच.डी. इंदौर से की।
उनके दामाद ने इंदौर में ही अपना ट्रांसफर करवा लिया था। महेंद्र रिटायर हो गए थे कॉलेज लाने, ले जाने का, उसकी बिटिया को संभालने का काम खुशी-खुशी करते थे। पी. एच. डी. की थीसिस प्रिंट करवाना है, कॉलेज में जाकर के कोई जानकारी लेना है उसकी गाइड मैडम को पेपर देना है, ये सारे काम वही करते थे।
यहां तक कि पी.एच.डी. में जब उसका वायबा हुआ तो उस समय उसकी प्रोफेसर ने कहा कि राखी की पी.एच.डी. में उसके डैडी का बहुत बड़ा योगदान है। उस समय महेंद्र हर्ष से भाव विभोर हो उठे और उन्होंने हाथ जोड़कर सभी का अभिवादन किया।
सुधा चाय लेकर आ गई और बोली अरे आप कहाँ खो गए हैं?
”कहीं नहीं सोनू का फोन आया था, बुला रहीहै“
”अरे हाँ फादर्स डे आने वाला है ना इसलिए आपको याद कर रही होगी।“ सुधा बोली
”अरे नहीं-नहीं उसका फ्लैट तैयार हो गया है न इसलिए बुला रही है। तुम भी चलोगी न।“
हाँ-हाँ चलूंगी न, जब तक उसको नौकरी नहीं मिल जाती है तब तक खाने का काम तो मैं ही देखूंगी न।
हां ठीक है, ठीक है चलने की तैयार शुरू करो।