FictionGeneral

ज्ञान की अनंतताः सृष्टि के सागर का अद्भुत रहस्य

सृष्टि के प्रारंभ में परब्रह्म परमात्मा अकेले ही स्थित थे, उसके बाद उन्होंने सृष्टि की रचना की।
हमारे सनातन धर्म के हजारों कथानको में सदैव ही यह वाक्यांश आता है कि सृष्टि की रक्षा के उद्देश्य से भगवान ने ऐसा किया।
सृष्टि की रक्षा के उद्देश्य से ही हिरण्याक्ष का संहार किया गया, और भी बहुत से दैत्य दानवों तथा राक्षसों को नष्ट करने के पीछे यह कथानक आता है कि जिस किसी ने भी सृष्टि के नियमों का उल्लंघन किया, उसे नष्ट किया गया।

प्रश्न यह आता है कि सृष्टि की रचना का उद्देश्य क्या है?

इसका उद्देश्य प्रारंभ से ही स्पष्ट किया गया है कि ईश्वर ने यह इच्छा की कि वह एक हैं और और बहुत से हो जाएं, इसलिए सृष्टि की रचना की गई।

सृष्टि की रचना उसी प्रकार से की गई जैसे कि पूर्व में की गई थी और इसके लिए वेद का अर्थात प्राचीन ज्ञान का उपयोग किया गया। इसीलिए वेद अनादि और अनंत है, क्योंकि ज्ञान बहुत ही प्रारंभिक समय से चला रहा है और उसी ज्ञान का उपयोग सृष्टि की रचना के लिए किया गया।

यह आवश्यक नहीं है कि जो हम जानते हैं, वही सब कुछ हो। बहुत सा ज्ञान ऐसा भी है जिसे हम नहीं जानते या जिस तक हमारी पहुंच नहीं है। अभी विज्ञान के अनंत सागर में कुछ बूंदें प्राप्त कर ही विज्ञान के क्षेत्र में इतनी प्रगति हुई है, जो कल्पनातीत लगती है। यदि आज से 100 वर्ष पूर्व कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति से यह कहता कि वह मध्य प्रदेश के किसी एक गांव में खड़े रहकर अमेरिका के किसी शहर के किसी आदमी से उसका चेहरा देखते हुए अर्थात वीडियो कॉलिंग से बात कर सकता है तो उसे लोग मूर्ख ही कहते, किंतु आज की तिथि में यह संभव है। इसी प्रकार जिस ज्ञान तक हमारी पहुंच नहीं है या जिसे हम नहीं जानते उसी ज्ञान से सृष्टि की रचना हुई है।

पुराणों में यह कथानक आता है कि जब हिरण्याक्ष ने वेद चुरा लिए, तब पितामह ब्रह्मा ने भगवान विष्णु से यह प्रार्थना की कि वेदों के बिना सृष्टि की रचना का कार्य रुक गया है और अब वे सृष्टि की रचना कैसे करें,और जब भगवान विष्णु ने वाराह अवतार के रूप में हिरण्याक्ष का वध कर पुनः भगवान ब्रह्मा को वेद वापस लौटाएतो सृष्टि की रचना पुनः प्रारंभ हुई।

यदि हम सृष्टि की जटिल संरचना को देखेंगे तो यह स्पष्ट होता है कि वेद अर्थात प्राचीन ज्ञान सृष्टि की रचना के लिए क्यों आवश्यक है।शरीर के अंग जिस प्रकार से काम करते हैं और जिस प्रकार से एक कोशिका के लगातार विभाजन और इसके विभिन्न प्रकार के संयोजन से शरीर के विभिन्न अंगों का निर्माण होता है और जिस प्रकार से एक कोशिका उसके अंदर की गई प्रोग्रामिंग के कारण केंचुए में या कुत्ते में आदमी में या हाथी में परिवर्तित हो जाती है, वह सामान्य प्रोग्रामिंग नहीं है। जींस जिस प्रकार से एक निश्चित तथा पूर्व निर्धारित तरीके से काम करते हैं, वह जटिल प्रोग्रामिंग डार्विन के विकासवाद के बस की बात नहीं है, वस्तुतः यह निश्चित तौर पर किसी परम बुद्धिमान व्यक्ति के द्वारा की गई जटिल प्रोग्रामिंग के कारण ही हो सकता है।
प्रारंभ में शरीर के विभिन्न अंगों में वृद्धि होती है जीवो के शरीर के बल में वृद्धि होती है और एक निश्चित समय के उपरांत पुनः नए प्रकार के जींस सक्रिय होते हैं जो शरीर के इन्हीं अंगों को कमजोर बनाते हैं और धीरे-धीरे जीव की मृत्यु हो जाती है। ऐसा सभी जीव धारियों के साथ होता है और इसका कोई भी अपवाद नहीं है।

यद्यपि अमीबा को यह कहा जाता है कि वह लगातार जीवित रहता है किंतु उसमें भी मूल कोशिका के विभाजित होने के उपरांत जो नई दो कोशिकाएं बनती हैं, वही जीवित रहती हैं मूल कोशिका का अस्तित्व तो विभाजन के उपरांत समाप्त ही हो जाता है ।इसी प्रकार अन्य जीवधारी भी जैसी ही अपनी संतानों का उत्पादन कर लेते हैं या संतान उत्पादन की उम्र पार कर लेते हैं, उनके शरीर में नष्ट होने के जींस सक्रिय हो जाते हैं। एक गेहूं का पौधा बीज से उत्पन्न होकर बड़ा होता है और जैसे ही गेहूं की बालियां आकर पक जाती हैं उस गेहूं का पौधा सूख कर नष्ट हो जाता है।

इसी प्रकार जो जीवधारी जितनी कम उम्र में अपनी संतानों का उत्पादन करते हैं उतनी ही जल्दी वे नष्ट होते हैं। शेर कुत्ते या दूसरे जानवर 6-7 साल की उम्र के उपरांत संतान उत्पादन करने लायक हो जाते हैं और इसके उपरांत4 से 6 बार संतान उत्पादन के बाद ही उनके शरीर की क्षमताएं समाप्त हो जाती हैं और वह वह मृत्यु और बढ़ने लगते हैं। मनुष्य के शरीर की क्षमता भी 25 से 30 साल तक अधिकतम होती है इसके उपरांत संतान उत्पादन करने या संतान उत्पादन की आयु के समाप्त हो जाने के उपरांत अर्थात 50 वर्ष के बाद शरीर की क्षमताएं घटने लगती हैं और धीरे-धीरे विभिन्न कारणों से लोग मृत्यु की ओर बढ़ने लगते हैं और अंततः मृत्यु को प्राप्त होते हैं।

यह कहानी सभी जीवो में दोहराई जाती है चाहे वह केंचुआ हो या कॉकरोच, कुत्ता हो अथवा आदमी, हाथी हो या खरगोश।
एक कोशिका के विभाजन से उत्पन्न हुआ शरीर विभिन्न अंगों से परिपूर्ण जीव के रूप में परिवर्तित होता है, संतान उत्पादन करता है और अंततः नष्ट हो जाता है ताकि उसकी संतानों के लिए स्थान खाली हो सके ।

यह माना जाता है कि देवता अमरहै किंतु देवताओं की पत्नियां देवताओं से संतान उत्पन्न नहीं कर सकती इसलिए यदि देवता मृत्यु को प्राप्त नहीं होते तो उनकी संतानें भी इसीलिए नहीं होती क्योंकि लगातार आने वाली संतानों के लिए कहीं पर भी असीमित स्थान उपलब्ध नहीं हो सकता। यदि संतानों के लिए स्थान खाली करना है या संतान उत्पादन करना है तो व्यक्ति को मरना ही होगा। मनुष्य अथवा दूसरे जीव जो संतान उत्पादन करते हैं, इसलिए मरण धर्मा है, देवता संतान उत्पादन नहीं करते इसलिए वे अमर हैं। संभवतः इसलिए ब्रम्हचर्य को आयु की रक्षा करने वाला माना जाता है।

प्रश्न यह उठता है कि संसार के जीवो के संसार में आने और उनके उत्पन्न होकर नष्ट होने के पीछे उद्देश्य क्या है या उनका क्या उपयोग है।

वस्तुतः सृष्टि का मूल उद्देश्य सृष्टि को बनाए रखना है। सृष्टि के सभी जीवधारी इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए लगातार काम करते हैं। जब कोई बच्चा छोटा होता है तो वह आने वाले जीवन के लिए अपने आपको तैयार करता है। मनुष्यों के बच्चे पढ़ लिखकर या विभिन्न काम धंधा सीख कर अपने आपको इस योग्य बनाते हैं कि वह अपने लिए आजीविका जुटा सके, इसके उपरांत वे संतान उत्पादन के योग्य अपने साथी की खोज करते हैं और उनका मुख्य उद्देश्य होता है कि वह अपने लिए उपयुक्त वर या वधू की तलाश कर सकें ।उस समय पर उनका सर्वाधिक ध्यान अपने लिए एक उपयुक्त साथी की खोज में होता है और प्रेम तथा रोमांस चलता है।

यह रोमांस संतान उत्पादन के लिए उपयुक्त साथी की खोज के अलावा और कुछ नहीं है रोमांस और सारे प्रेम का अंत अंततः सृष्टि के इसी मूल उद्देश्य की पूर्ति में होता है।

विवाह के उपरांत पति और पत्नी की संतान के उत्पन्न होने के उपरांत उनका सारा ध्यान अपनी इस संतान को बड़ा करने, उसे सुरक्षित करने और उसके पालन-पोषण में लग जाता है। इसके उपरांत वे अपना सारा जीवन इन्हीं संतानों को बड़ा करने उन्हें आजीविका अर्जित करने तथा संतान उत्पादन के लिए योग्य बनाने और फिर उनका विवाह कर उन्हें पुनः उसी काम में संलग्न कर देने में लग जाता है, जिसके लिए वह उत्पन्न हुए थे।

केंचुआ या कॉकरोच के बच्चे भी भी इसी प्रकार से उत्पन्न होकर अपनी आजीविका या जीवन रक्षा के उपाय सोचते हैं बड़े होकर अपने लिए साथी खोजते हैं। प्रेम अथवा रोमांस उनमें भी होता है वह भी अपने साथी को रिझाते हैं संतान उत्पन्न करते हैं और उन्हें बड़ा होने देते हैं।

इसी प्रकार से मनुष्यों की ही भांति कुत्ते या बिल्ली गाय या शेर भी अपनी संतानों को उत्पन्न करके उन्हें इस योग्य बनाते हैं कि वह अपनी आजीविका अर्जित कर सकें और संतान उत्पादन कर सृष्टि के चक्र को बनाए रखें। वे रोमांस या प्रेम को लेकर कविताएं नहीं लिखते किंतु वे रोमांस अथवा प्रेम नहीं करते, ऐसा नहीं कहा जा सकता। इस मामले में सभी जीव एक जैसे ही हैं। पौधे या वनस्पतियां भी इसी प्रकार से उत्पन्न होकर बड़ी होती हैं उनमें फूल और फल लगते हैं जोकि नई संतानों को जन्म देने के लिए उन्हें योग्य बनाते हैं और इन बीज या फलों के उत्पादन के उपरांत अपने जीवन के मूल उद्देश्य को पूरा करते हैं। जैसे ही यह जीव संतान उत्पादन कर लेते हैं और उन्हें अर्थात अपनी संतानों को संतान उत्पादन के लिए योग्य बनाने का अपना उद्देश्य पूरा कर लेते हैं, वैसे ही उनके शरीर में बीमारी, कमजोरी तथा मृत्यु के जींस सक्रिय होते हैं जो इन सभी जीव धारियों को मृत्यु की ओर ले जाते हैं। सभी जीवधारी सृष्टि के मूल उद्देश्य की पूर्ति में संलग्न बने रहें इसके लिए ही ईश्वर ने काम अथवा प्रेम की सृष्टि की। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए जीवो में परस्पर आकर्षण होता है, प्रेम होता है।

इस आकर्षण या प्रेम के वशीभूत होकर जाने या अनजाने में संसार के सभी जीवधारी सृष्टि की रचना तथा उसे बनाए रखने के कार्य में संलग्न रहते हैं यही वह वस्तुतः माया है जो मनुष्य को बांधे रहती है और न केवल मनुष्य को बांधे रहती है बल्कि संसार के समस्त जीवधारियों को भी बांधे रहती है।

संसार का प्रत्येक जीवधारी इसी उद्देश्य से काम करता है। गुबरैले अपने बिलों में गोबर की ढेली इकट्ठे करते हैं, चीटियां अनाज के कण, मधुमक्खियां मधु, चूहे अनाज की बालियां और मनुष्य घर जमीन जायदाद इकट्ठा करते हैं किंतु सब का मूल उद्देश्य वही सृष्टि को बनाए रखना है।

इसीलिए मेरा यह मानना है कि सृष्टि का मूल उद्देश्य सृष्टि को बनाए रखना है और सृष्टि के सभी जीवधारी इसी मूल उद्देश्य की पूर्ति के लिए लगातार अनवरत तौर पर यंत्रवत काम में लगे हुए हैं और इन सभी जीवधारियों को इस प्रकार से यंत्र वत काम में संलग्न करने का काम ईश्वर के अतिरिक्त और कौन कर सकता है।

बृजेश शरण शुक्ला 
अपर आयुक्त ,सहकारिता

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button