शूरवीरो की गाथा

भारत के गुमनाम नायक  – डॉ उषा मेहता

                          अपने देश भारत को अंग्रेजी हुकूमत की गुलामी के चंगुल से मुक्त करने के लिए भारत माता के अनेकों वीर सपूतों ने स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होकर अपने प्राणों को दांव पर लगाकर आजादी दिलाई थी।      स्वतंत्रता आंदोलन में पुरुष, महिला और बच्चों ने सक्रिय भूमिका निभाते हुए देश को आजाद कराया था।इस स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल कुछ को छोड़कर अधिकांश नायकों को भुला दिया।

         कैफे सोशल अपने हर संस्करणों में उन गुमनाम नायकों को याद कर रहा है जिन्होंने इस आंदोलन में भाग लिया था।

   इस संस्करण में हम उस वीर नायिका की बात करने जा रहे हैं जिन्होंने अंग्रेजी सरकार के खिलाफ अपनी आवाज से आंदोलन को गति दी थी।

    डॉ उषा मेहता एक ऐसी वीर महिला थी जो स्वतंत्रता आंदोलन में तो सक्रिय रही थी तथा देश स्वतंत्र होने के पश्चात् महिलाओं के उत्थान के लिए अपनी अंतिम सांस तक काम करती रही।

    उषा मेहता जी का जन्म 25 मार्च 1920 को गुजरात राज्य में सूरत के पास सरस गांव में हुआ था। कम उम्र में ही उनके बाल मन में देश भक्ति की भावना जागृत हो गई थी।वे जब मात्र 8 वर्ष की थी तब उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर  एक जुलूस निकाला जिसमें सभी बच्चे भारतीय झंडा लेकर चल रहे थे। अंग्रेजों को यह पसंद नहीं आया और पुलिस ने बच्चों को तितर बितर करने के लिए बल प्रयोग किया जिसके कारण वह झंडे के साथ नीचे गिर गई। जब इसकी सूचना बच्चों के परिवार को लगी तो उन्होंने अपने बच्चों को झंडे के रंगों के कपड़े पहनाकर उसका विरोध किया। शुरू में तो उनके पिता उन्हें इस तरह के आंदोलन से दूर रखने का प्रयास करते थे क्योंकि वह अंग्रेजी सरकार में एक न्यायाधीश थे। जब वह रिटायर हुए तब उषा जी की उम्र 12 वर्ष की हो गई थी और तब उन्हें स्वतंत्रता आंदोलन में जाने की अनुमति दे दी।

     उन्होंने बंबई विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में स्नातक की पढ़ाई की और आगे कानून की पढ़ाई करने लगी। इसी समय देश में भारत छोड़ो आंदोलन चला तो वह पढ़ाई छोड़कर उसमें भाग लेकर उससे जुड़ गई। भारत छोड़ो आंदोलन के समय उन्होंने अपने अन्य सहयोगियों के साथ 14 अगस्त 1942 को खुफिया कांग्रेस रेडियो प्रारंभ किया। इस रेडियो का पहला प्रसारण उनकी आवाज में ही हुआ था। रेडियो प्रसारण में उस समय के देश के प्रमुख नेताओं के रिकॉर्ड किए गए संदेश प्रसारित किए जाने लगे। उन्होंने महात्मा गांधी, मौलाना आजाद, सरदार वल्लभभाई पटेल और जवाहरलाल नेहरू जैसे प्रमुख स्वतंत्रता सेनानियों के भाषणों को लेकर रेडियो स्टेशन से हिंदी और अंग्रेजी में समाचार दिया करती थी। उन्होंने ही गुप्त स्टेशन से ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा की गई अपमानजनक घटनाओं की भी सूचना देशभर को दी थी। उनकी रेडियो प्रसारण ने हर वह संदेश को भेजने में मदद की जिसने ब्रिटिश राज के खिलाफ माहौल बने। यह रेडियो हर दिन नई जगह से प्रसारण करता था ताकि अंग्रेज इसे पकड़ ना सके। इस रेडियो स्टेशन को प्रमुख नेताओं ने अपना सहयोग दिया था। 1942 का आंदोलन उषा मेहता की वजह से देखते-देखते ही जन क्रांति बन गया था और देश में अंग्रेजों के विरुद्ध अच्छा खासा माहौल तैयार हो गया था। अंग्रेजी हुकूमत इससे बौखला गई और उन्हें पकड़ने की कोशिश करने लगी। आखिर कार 12 नवंबर 1942 को उषा जी एवं अन्य साथियों को 3 माह के प्रयासों के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया। 6 माह की पूछताछ के बाद कुछ नहीं बताने पर तब अंग्रेजों ने डॉ मेहता को लालच दिया कि यदि वह अपने अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के बारे में पूरी जानकारी देती हैं तो उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए विदेश भेज दिया जाएगा लेकिन उन्होंने अंग्रेजों का यह प्रस्ताव ठुकरा दिया। उन्हें 4 वर्ष की सजा हुई और  पुणे के यरवदा जेल में भेज दिया गया।

 जब वह जेल से रिहा हुई तब तक देश स्वतंत्र हो गया था। स्वतंत्रता के बाद उन्होंने गांधी जी के सामाजिक एवं राजनीतिक विचारों पर पी.एच.डी की। बंबई विश्वविद्यालय में वह अध्यापन कार्य करने लगी। उन्हें गांधी स्मारक निधि का अध्यक्ष चुना गया तथा गांधी शांति प्रतिष्ठान की सदस्य भी रही। भारत सरकार ने सन् 1998 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया। अंतिम समय तक वे गांधीवादी विचारधारा और दर्शन की प्रमुख प्रचारक रही। उन्होंने केवल खादी के कपड़े पहनकर सभी प्रकार की शानोशौकत और विलासिता से दूर रहकर गांधीवादी जीवन शैली को अपनाया था। डॉ उषा मेहता का निधन 11 अगस्त 2000 को हुआ।

    कैफे सोशल भारत की इस वीर साहसी और अंग्रेजों के खिलाफ अपनी आवाज से भयभीत करनी वाली डा उषा मेहता जी को विनम्र श्रद्धांजली अर्पित करता है।

संजीव जैन
संपादक – मंडल
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