हम मूर्ख नहीं है बल्कि बुद्धिजीवी हैं !
आजकल बुद्धिजीवी शब्द बहुत अधिक चर्चा में हैं, जहाँ देखो वहाँ बुद्धिजीवियों की फसल या यूँ कहें कि खरपतवार फैली हुई है। हमको लगता है कि ये बुद्धिजीवियों का स्वर्णिम काल चल रहा है। जितने बुद्धिजीवी इस काल में दिख रहे हैं, उतने शायद कभी नहीं देखे गए होंगे। कम से कम ऐसा इतिहास में देखने को तो नहीं मिलता है।
इसका कारण यह भी हो सकता है कि शायद सामाजिक संचार माध्यमों अर्थात् सोशल मीडिया के कारण से उनकी उर्वरता काफी बढ़ गई है। इतनी कि जैसे जलकुंभी और गाजर घास बढ़ती है।
अब प्रश्न उठता है कि कौन हैं ये बुद्धिजीवी और कहाँ से आते हैं? आगे बढ़ने से पहले हम शब्दकोश में बुद्धिजीवी की परिभाषा देखते हैं। शब्दकोश के अनुसार बुद्धिजीवी दो तरह के होते हैं-
१) विचारशील
२) बुद्धि से जीविका चलाने वाला
पहला अर्थ आज के संदर्भ में प्रासंगिक नहीं दिखता है क्योंकि इस श्रेणी में आने वाले बुद्धिजीवी या तो अब रहे नहीं और यदि हैं भी तो स्वप्रचार न कर पाने की वजह से नैपथ्य में पड़े हुए हैं। लेकिन दूसरी श्रेणी बहुतायत में पाई जाती है। इनकी संख्या इतनी अधिक है कि वायुमंडल और सियाचीन में जीवनदायिनी ऑक्सीजन शायद नहीं मिले लेकिन बुद्धिजीवी जरूर मिल जाएँगे।
जैसा कि परिभाषा में लिखा है कि इस श्रेणी के प्राणी बुद्धि से जीविका चलाने वाले होते हैं। अच्छी विपणन रणनीति (मार्केटिंग) की वजह से समाचार पत्रों-पत्रिकाओं और टीवी चैनल में आसानी से स्थान पा जाते हैं। चूँकि हम इनको अपने पसंदीदा टीवी शो, समाचार पत्रों, टॉक शो और रेडियो में देखते सुनते हैं तो हम इनको विचारशील समझ लेते हैं जबकि ये लोग हम आम लोगों की तरह बुद्धि से रोजी-रोटी कमाने वाले ही होते हैं और हमारी तरह ही व्यवसाय और नौकरी के नियमों में बँधे रहते हैं और हम इनको निष्पक्ष समझते हैं पर इनसे हम हर विषय पर बेबाक और निष्पक्ष राय की उम्मीद रखते है।
महान आचार्य चाणक्य के कथन के अनुसार निष्पक्ष राय देने वाला आपका मित्र नहीं हो सकता है और जो मित्र होता है वो निष्पक्ष राय दे नहीं सकता।
इसी प्रकार निष्पक्ष विचार रखने वाला बुद्धिजीवी (विलुप्त प्रजाति) किसी भी दल, समाज और विचारधारा का प्रिय नहीं होता है, इसलिए उसको मूर्ख समझा जाता है या यूँ कहें कि आज के युग में निष्पक्षता को मूर्खता समझा जाने लगा है।
आपको लगता है कि हमारे आज के बुद्धिजीवी कोई मूर्ख थोड़ी हैं, वह बहुत ही ईमानदारी से अपने धंधे के उसूलों का पालन करते हुए अपने पालनहार के निर्देशों के अनुसार कुछ विषयों पर खुल कर बोलते हैं और कुछ विषयों पर चुप्पी साध लेते हैं।
इस मामले में प्रसिद्ध अभिनेता आमिर खान की बेबाकी तारीफ के काबिल है, जब उनसे पूछा गया कि आप दो धर्मों की एक समान सी समस्याओं पर अलग दृष्टिकोण क्यों रखते तो उनका जवाब था, ये हमारा अधिकार है कि हमें कब बोलना और कब नहीं बोलना है।
अन्य शब्दों में कहें तो वो बुद्धिजीवी है और हम लोग मूर्ख हैं जो उनसे निष्पक्ष राय की उम्मीद रखते हैं।
बुद्धिजीविता के कुछ चर्चित उदाहरण तो आपको चकित कर देंगे जैसे-
१) कठुआ कांड पर कथित बुद्धिजीवियों का प्रलाप और वो जघन्य अपराध जो दिल्ली के अल्पसंख्यक धार्मिक स्थल या फिर उन स्थानों पर हुए हों जहाँ उनके पालनहार लोगों की सरकार हो वहाँ पर उनकी चुप्पी।
२) कश्मीरी पंडितों के पलायन पर चुप्पी, लेकिन कश्मीर में धारा 370 हटने बाद लगी इंटरनेट की पाबंदी पर दिन-रात प्रलाप
३) लखीमपुरखीरीं में ३ हत्याओं पर प्रलाप लेकिन उसी जगह पर ५ हत्याओं और कश्मीर में पहचान पत्र देख कर हुई हत्याओं पर चुप्पी।
ऐसे अनगिनत उदाहरण मिल जायेंगे। लेकिन गलती उनकी नहीं है बल्कि हमारी है जो हम उनसे उम्मीद करते हैं कि ये बुद्धिजीवी निष्पक्ष राय रखेंगे। अरे ! वो तो उस आदमी के अनुसार अपने विचार व्यक्त करते हैं जो उनके लिए रोजी-रोटी का इंतजाम करता है या फिर मानसिक रूप से उनकी आत्मा को तृप्त करता है। ऐसे बुद्धिजीवी आपको टीवी एंकर, विश्लेषक, अर्थशास्त्री, इतिहासकार, शिक्षक, अभिनेता या अधिकारी जैसे भाँति-भाँति के रूप में दिखाई दे रहे भी हैं । इन सबका विषय अलग हो सकता हैं लेकिन आत्मा से सब एक ही है अर्थात बुद्धिजीवी ।
बेदाग नहीं कोई, यहाँ पापी सारे हैं,
न जाने कहाँ जाएँ हम बहते धारे हैं।
अर्थात् जो इनकी धारा को मोड़ दें उसी के मटके माफ कीजिए एक्वागार्ड का स्वाद देते हैं।
तो फिर आज के बाद अगर आप किसी बुद्धजीवी से निष्पक्षता की उम्मीद करते हैं तो आप अव्वल दर्जे के मूर्ख है और उनसे ऐसी माँग रखना तो मानसिक दिवालियापन की निशानी ही समझी जायेगी।
क्योंकि हम बुद्धिजीवी हैं, मूर्ख नहीं है!
(लेखक बुद्धिजीवी होने का दंभ नहीं भरता है लेकिन मूर्ख भी नहीं है इसलिए निष्पक्षता की उम्मीद स्वयं के जोखिम पर करें)