वीरांगना लिली चक्रवर्ती – संजीव जैन
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देश को स्वतंत्र कराने में अनेकों वीर सपूतों ने क्रांति की मशाल अपने हाथों में लेकर अपना योगदान दिया।इन वीर सपूतों की शौर्यगाथाओं को याद कर उनके द्वारा उस समय किए गए कार्यों को समझने का अवसर प्राप्त होता है। किंतु अफसोस इस बात का है कि इन्हीं स्वतंत्रता सेनानियों में से कुछ ऐसे भी थे जिन्हें ना तो संघर्ष के समय देश ने पहचाना और ना ही उनकी मौत के बाद याद रखा गया।
इन्हीं गुमनाम शहीदों में से एक वीरांगना थी श्रीमती लिली चक्रवर्ती जी।
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लिली चक्रवर्ती ने अपने पति हेमेंद्र नाथ चक्रवर्ती के साथ स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था। सन 1931 में शादी के मात्र सात दिनों के बाद ही अपने पति के साथ आंदोलन की मशाल थाम ली थी। अभी उनकी शादी को मात्र सात दिन हुए थे कि उनके पति को अंग्रेजी सरकार ने अरथावाडी मेल एक्शन कांड में गिरफ्तार कर कई सालों तक विभिन्न जेलों में बंद रखा और अंत में काले पानी की सजा सुना दी। पति के गिरफ्तार होते ही लिली जी ने आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लेना शुरू कर दिया। सन् 1941 में उन्हें चटगांव में हुए शस्त्रागार लूट कांड में गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें जेल में रखा गया। उनकी गिरफ्तारी के 6 साल बाद ही भारत स्वतंत्र हो गया था मगर 1952 तक लिली चक्रवर्ती बोरीशाल जेल में ही रही। उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं था और ना ही उनको आजाद किया गया था। बाद में भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने उनको रिहा कराया। रिहाई के बाद वह अपने पति के साथ झुमरी तलैया झारखंड में रहने लगी थी। उनके पति को लकवा हो गया था क्योंकि उन्हें जेलों में काफी यातनाएं दी गई थी। अपने बीमार पति की देखभाल और भरण-पोषण के लिए उन्हें विभिन्न परेशानियों का सामना करना पड़ा।इन्हीं समस्याओं का सामना करते हुए वह एक स्कूल में पढ़ाने लगी थी। सन 1986 में उनके पति हेमेंद्र नाथ चक्रवर्ती का निधन हो गया तब वह बिल्कुल अकेली रह गई थी। चूंकि उनकी अपनी कोई संतान नहीं थी इस वजह से अपनी मृत्यु के होने तक जीवन अकेले ही व्यतीत किया। देश में किसी ने भी अपनी इस वीरांगना की सुध नहीं ली। यह कैसा दुर्भाग्य है अपनी मृत्यु तक गुमनामी में ही जीती रही और गुमनामी में ही चली गई।देश के लिली जैसे स्वतंत्रता सेनानियों को स्वतंत्र भारत के नीतिकारों और इतिहासकारों ने भुला ही दिया। लिली चक्रवर्ती ने अपना जीवन देश की आजादी के लिए समर्पित कर दिया था ।उनके निधन पर देश में कहीं भी चर्चा नहीं हुई । लिली जी की मृत्यु भी जिंदगी की तरह गुमनाम रह गई। अंतिम वर्षों तक उनसे मिलने ना तो कोई नेता आया, ना ही कोई अधिकारी। अंतिम समय में वह बहुत बीमार रही थी। उनके और उनके पति के स्वतंत्रता आंदोलन में किये गये योगदान के प्रति आभारी होना तो दूर उनके गृह राज्य कोडरमा के प्रखंड कार्यालय पर अंकित स्वतंत्रता सेनानियों के नाम में उनके पति का नाम भी नहीं है। क्या सोचा होगा इन सपूतों ने क्रांति की मशाल अपने हाथों में थाम कर? कैफे सोशल लिली चक्रवर्ती और उनके पति के चरणों में नमन करता है। तथा देश के लोगों से आह्वान करता है कि इन वीर वीरांगनाओं की स्वर गाथाओं को पढ़ें,सुने और जाने।
शत् शत् नमन