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मोक्षस्थली गया जी में पितृमुक्ति महापर्व का अनूठा नजारा

पितृपक्ष के मौके पर मोक्षस्थली गया जी में पितृमुक्ति महापर्व का अनूठा नजारा देखने को मिल रहा है। फल्गु नदी में रबर उम बन जाने के बाद यहां पानी की उपलब्धता होने तथा स्टील का पुल बन जाने के बाद देवघाट से सीताकुण्ड तक आसान पहुँच होने के कारण तीर्थयात्रियों व पिण्डदानियों को काफी सुविधा हो गई है। गयाजी में अपने पूर्वजों को पिंडदान करने सपत्निक पवारे उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ भी व्यवस्था से प्रभावित हुए और उन्होंने डीएन त्यागराजन को यहां के विकास केलिए प्रोजेक्ट बनाकर भेजने को कहा।
देश का सबसे बड़ा रबर डैन बिहार के गया में बना है। इसकी लंबाई 411 मीटर और चौड़ाई 95 मीटर है। इस पर 312 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। हैदराबाद की एनसीसी लिमिटेड नाम की कंपनी ने इसे तैयार किया है। पितृपक्ष के दौरान पिंडदान के वक्त फल्गु नदी में पानी नहीं रहने से काफी दिक्कतें होती थी. इस समस्या को दूर करने के लिए रबर जैन को राज्य सरकार की और से बनवाया गया है।

बिहार के जल संसाधन मंत्रालय की ओर से बनवाये गए रबर डैम की रात की तस्वीर लोगों को बरबस ही अपनी और आकर्षित करती है और
रबर उम देखकर नया संदेश लेकर जाएंगे पिंडदानी।
फल्गु नदी में रबर डैम की जरूरत क्यों?


धार्मिक पर्यटन के लिहाज से गया काफी महत्वपूर्ण शहर है। 1 हर वर्ष लाखों हिंदू बौद्ध और जैन श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। इनमें बड़ी संख्या उन श्रद्धालुओं की होती है जो अपने पितरों को मोक्ष दिलाने की कामना लिए पिंडदान, स्नान और तर्पण के लिए आते हैं। विश्व प्रसिद्ध विष्णुपद मंदिर के पास मोक्ष दायिनी फल्गु नदी में सतही जल का प्रवाह बारिश के मौसम को छोड़कर बाकी दिनों में नहीं रहता है। इसी समस्या के समाधान के लिए रबर डैम बनाया गया। अब विष्णुपद मंदिर के पास फल्गु नदी में साल भर जल रहेगा। पूजा-पाठ व पिंडदान करनेवालों को अब परेशान होने की जरूरत नहीं है।

फल्गु नदी को मां सीता ने क्यों दिया श्राप ?
विभिन्न पुराणों के अनुसार हिंदू धर्म में मान्यता है कि मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति तीन कृत्यों से होती है, ये हैं श्राद्ध, पिंडदान और तर्पण पिंडदान और तर्पण के लिए गया को सबसे पवित्र भूमि माना जाता है। पुराणों में बताया गया है। कि :-


गयाजी में मृत्यु के पूर्व व्यक्ति स्वयं का तथा गोहत्या से मुक्ति केलिए भी श्राद्ध कर सकता है। पौराणिक कथाओं व आख्यानो में इस बात का बहुतेरे उल्लेख मिलता है। कि गयाजी तीर्थ में स्वयं भगवान श्रीराम अपने परिवार के साथ पिता दशरथ के पिंडदान करने आए थे। राम और लक्ष्मण श्राद्ध का सामान जुटाने गए, तभी माता सीता ने राजा दशरथ का श्राद्ध कर दिया। पुराणों में कहा गया है। कि दशरथ की चिता की राख उड़ते-उड़ते गया के फल्गु नदी के पास पहुंची। तब केवल माता सीता वहां मौजूद थीं। तभी आकाशवाणी हुई कि श्राद्ध का समय खत्म हो रहा है। ये सुन सीता माता ने फल्गु नदी की रेत से पिंड बनाए और पिंडदान कर दिया। उन्होंने फल्गु नदी, गाय, तुलसी, अक्षय वट और एक ब्राह्मण को साक्षी बनाया। श्रीराम और लक्ष्मण वापस आकर श्राद्ध के बारे में पूछा माता सीता ने पूरी बात बताई। राम ने जब इन चारों से पूछा कि पिंडदान हुआ या नहीं, तो फल्गु नदी ने झूठ बोल दिया। इसके बाद सीता ने फल्गु नदी को श्राप दे दिया । माता सीता के इसी श्राप के बाद से फल्गु नदी अन्तः सलिला हो गयीं यानि कि जमीन के नीचे बहने लगीं।

‘गयाजी’ रबर डैम निर्माण की कहानी:-
फल्गु नदी में हमेशा पानी रहे ताकि पिण्डदानियों व तीर्थयात्रियों को स्नान-ध्यान करके पिंडदान, तर्पण व
श्राद्ध करने की सुविधा हो इसी को ध्यान में रखकर

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 22 सितंबर 2020 को रबर डैम का शिलान्यास किया था। अक्टूबर 2023 में इसके निर्माण का लक्ष्य रखा गया। मगर बीच में नीतीश कुमार ने इसे सितंबर 2022 तक पूरा करने का निर्देश दिया। इंजीनियरों ने दिन-रात मेहनत कर इसे साकार कर दिया गयाजी डैम इसका नाम रखा गया है। फल्गु नदी में गंदे पानी और कचरे का ढेर लगा रहता था। रबर डैम बन जाने से इसे पॉल्यूशन से मुक्ति मिल गई। विष्ण पद देवघाट से पूर्वी तट पर बनी पिंडवेदी जाने की दूरी कम हो गई। पहले बाईपास होकर प्राइवेट गाड़ी से जाना पड़ता था। कुछ श्रद्धालु पैदल नदी पार करते थे। अब जैन के ऊपर स्टील पुल बन गया है। इससे श्रद्धालु देवघाट में कर्मकांड करने के बाद सीधे सीताकुंड पिंडवेदी पिउदान करने व दर्शन करने जाते हैं। इसका नाम मां सीता पुल रखा गया है। जबकि कनेक्टिंग रोड का नाम मां सीता पथ रखा गया है। इस पैदल पुल ने पहले की तीन किलोमीटर की दूरी मात्र डेढ़ किलोमीटर में समेट दी है। यही कारण है की पिण्डदानी व तीर्थयात्री इस बार गयाजी में काफी प्रसन्न दिख रहे हैं।

बुद्ध व पांडवों से भी जुड़ी है गया श्राद्धः

धार्मिक मान्यता, बौद्ध आख्यान व पुराणों में वर्णित तथ्यों के अनुसार सिद्धार्थ गौतम के पितामह अयोधन भी अपने पूर्वजा का श्राद्ध करने गयाजी आये थे । ढुंगेश्वरी पर्वत के पास अश्व किन्नरों ने भविष्यवाणी की थी की आपके खानदान का कोई यहा आएगा और घोर तपस्या कर कीर्ति स्थापित करेगा 1 और सचमुच सिद्धार्थ गौतम ने यहा घोर तप किया और ज्ञान प्राप्त कर बुद्ध कहलाये। बोधगया के वेस्टन वेदिकाओं पर यह घटना उत्कीर्ण है पांडवों ने भी मुक्ति के लिए धर्मराज युधिष्टिर के नेतृत्व में चातुर्मास यज्ञ किया था. वह स्थान आज धर्मारिन के नाम से विख्यात है।

लेखक डॉ. अमरनाथ पाठक,
वरिष्ठ पत्रकार, साहित्यकार, फिल्म कलाकार
व मगध विश्वविद्यालय, बोधगया में प्रशासनिक पदाधिकारी हैं।


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