फोन आया है: मुशर्रफ परवेज की कहानी
सर्दी का मौसम था। धूप की किरणें लग-भग अपने घर की ओर रवाना हो चुकी थी।विश्वविद्यालय मेट्रो स्टेशन के बाहर सड़क पर दोनों तरफ से गाड़ियाँ धाँय-धाँय करके अपनी-अपनी मंजिल की ओर जा रही थी।वहीं मेट्रो स्टेशन के बाहर लड़के-लड़कियाँ आपस में तरह-तरह की बातें कर रहे थें। कोई असाइनमेंट में कम अंक आने से, तो कोई सेमेस्टर की परीक्षा को लेकर चिंतित थे। लड़कियाँ जूस पी रहीं थीं तो कुछ लड़के अपने साथियों के साथ अपनी प्रेम कहानी का जिक्र कर रहे थें।वहाँ का माहौल तनाव से भरा हुआ मालूम दे रहा था। एक-दो चेहरों को छोड़कर अधिकतर चेहरों पर मायूसी का बादल छाया हुआ था।मेट्रो स्टेशन में घुसने के लिए लम्बी कतार थी क्योंकि सभी कॉलेजों की छुट्टियाँ एक साथ ही होती हैं।
मुहम्मद क़तार को देखकर बिल्कुल भी परेशान नहीं हुआ क्योंकि उसके लिए तो ये बात आम थी।वो क़तार के आख़िर में लग गया और अपनी बारी आने का इंतेजार करने लगा। और दिन के मुक़ाबले आज मुहम्मद जल्दी में है क्योंकि उसको अपने किसी मित्र के यहाँ जाना है। वो बार-बार गर्दन उठाकर आगे देखता है और अपने आगे वाले से कहता है कि अगर मैं चेक कर रहा होता तो कबका ये क़तार ख़त्म हो जाती। पंद्रह से बीस मिनट खड़े होने के बाद ही उसका नम्बर आ गया और वो राजीव चौक की ओर जाने वाली मेट्रो में बैठ गया।महिलाओं वाली आरक्षित सीट को छोड़कर वो बैठ गया और इंस्टाग्राम पर रील्स देखने लगा।जैसे ही मेट्रो कश्मीरी गेट स्टेशन पर रुकती है वैसे एक पुरुष उसके साथ में एक महिला और महिला के गोद में एक बच्चा है जो ठीक उसके सामने वाली सीट पर बैठ गई।
बच्चे को देखते ही पूरे डिब्बे के अंदर का वातावरण मासूमियत से भर गया। कोई बच्चे को देखकर मुस्कुरा रहे थे, कोई आँखों से बच्चे को प्यार देने की कोशिश कर रहे थे, कोई उसके गाल को छूकर स्नेह दे रहे थे तो कोई मन-ही-मन ही अपने बचपन की यादों में डूब चुके थे।इसी बीच बच्चा फर्श पर खेलते-खेलते अचानक से गिर जाता है और जोर-जोर से रोना शुरू कर देता है।
बच्चे के पिता किसी तरह बहला-फुसलाकर उसे चुप कराते हैं। इतना कुछ हो जाने के बाद भी मुहम्मद पर कोई असर नहीं हुआ वो अवाक होकर इन सारी चीजों को देखे जा रहा था। वो समझ नहीं पा रहा था कि आख़िर चल क्या रहा है? जैसे ही उसकी निगाह बच्चे की माँ पर गई उसको अपना बचपन याद आने लगा।
जब मुहम्मद बड़ा हो चुका था और बातों को समझने लगा था तब उसकी बड़ी बहन ने बताया था कि जिस दिन उसका जनम हुआ था, उस दिन का मौसम बहुत ही ख़राब था। इतनी बारिश हो रही थी कि घर के चारों ओर पानी जम गया था।रात-दिन बराबर मालूम हो रहा था। उसके जन्म लेने से पहले ही उसकी अम्मी बहुत दर्द में थी। इतना दर्द हो रहा था उनको कि वो बिस्तर पर ही दर्द के चलते लोट-पोट हो जा रही थी। घर के बड़े उनको यही कहते थे कि इस समय तो दर्द होता ही है थोड़ा बर्दाश्त करिए और हिम्मत रखिए। लेकिन दर्द ऐसा था जैसे कि उनका दम फटाक से निकल जाएगा।
दर्द इतना बढ़ता जा रहा था कि उनको डॉक्टर के पास ले जाने का बंदोबस्त होने लगा। इतनी बारिश हो रही थी और इतना भयानक मौसम था कि कोई गाड़ी वाला जाने को राजी हो ही नहीं रहा था। बहुत से गाड़ी वालों को फोन करने के बाद एक गाड़ी वाला जाने को तैयार तो हुआ लेकिन दस गुना अधिक पैसा लेने पर राजी हुआ। गाड़ी के अंदर भी वो छटपट ही कर रही थी। दर्द ने मानो ठान लिया था कि चाहे जो हो कम नहीं होंगे।अस्पताल पहुँचते ही डॉक्टर ने भर्ती ले लिया। ग्लूकोज और पानी का बॉटल चढ़ता गया लेकिन दर्द में कमी हो ही नहीं पा रहा था। हालात को देखते हुए डॉक्टर ने कहा कि अब कोई उपाय नहीं है इनका ऑपरेशन करके बच्चे को निकालना पड़ेगा। अगर देरी हुई तो दोनों में से किसी एक के जान के जाने का डर है। इतना सुनना था कि मुहम्मद के पापा ने ऑपरेशन करने की इजाजत दे दी। तुरंत और भी डॉक्टर को बुलाया गया और ऑपरेशन थिएटर का दरवाजा बंद हो गया। ऑपरेशन थिएटर के बाहर मुहम्मद की दादीमाँ, बुआ, चाची सब ख़ुदा से सही सलामत ऑपरेशन हो जाने की दुआ माँगने लगी। कई घंटों से ऑपरेशन चल रहा था और बाहर सभी लोग बेचौन हो रहे थे कि क्या हुआ जो इतना समय लग रहा है?
लगातार चार घंटे ऑपरेशन चलने के बाद दरवाजा खुला और डॉक्टर ने सभी को लड़के होने की शुभकामनाएँ दी तब जाकर सबके साँसों में साँस आया। जैसे ही मुहम्मद के पापा को पता चला कि उनको बेटा हुआ उनके आँखों से आँसू निकलने लगे।पूरे अस्पताल में उन्होंने मिठाइयाँ बँटवाई। वो बार-बार जाते और बेटे का मुँह देखकर ख़ुश हो उठते थे। ऑपरेशन के बाद मुहम्मद की अम्मी का शरीर इतना
कमजोर हो गया था कि पंद्रह दिनों तक उनको वहीं भर्ती रखा गया। अब भी वो न कुछ बोल पा रही थीं न खा पा रहीं थीं। वहीं मुहम्मद की स्थिति भी बहुत गंभीर थी जन्म के बाद से ही रोए जा रहा था।बच्चे को लगातार रोता देखकर घर के और लोग भी ठीक से नहीं खा पा रहे थे। खाना तो बनता था पर किसी के हलक से एक निवाला उतरता नहीं था। अस्पताल से आने के बाद भी वो कई महीनों तक अस्वस्थ ही रहीं। साल भर इलाज चलने के बाद उनकी स्थिति अच्छी हुई।
समय का पहिया चलता गया और मुहम्मद भी बड़ा हो गया। उसकी दोस्ती दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही थी। दिन-रात वो बाहर ही रहता बस सोने के समय घर आ जाता था। उसके पापा को गुस्सा तो बहुत आता था उसके चाल-चलन पर उसकी अम्मी उनको चुप करा देती थी। वो दसवीं कक्षा में तो था पर हरकतें बच्चों वाली ही थी। ऐसा कोई दिन नहीं था जब उसकी शिकायत घर पर नहीं आती थी।उसके पापा शिकायत सुन-सुनकर आजिज हो चुके थे। उसके इस बर्ताव से उसके पापा बहुत चिंतित रहते थे पर उसको कोई फर्क़ नहीं पड़ता था।उनकी यही सोच थी कि मुहम्मद जितनी जल्दी हो पढ़-लिखकर अपने पैरों पर खड़ा हो जाए क्योंकि भारतीय समाज में एक माँ-बाप के लिए इससे बड़ी कोई उपलब्धि नहीं होती है कि उनके जीते जी उनका बच्चा दो वक़्त की रोटी कमाने लगे।
दसवीं की परीक्षा सर पर थी पर उसको शरारत से फुर्सत नहीं थी। वो अपने आदत से बाज आने को राजी नहीं था। किसी तरफ द्वितीय श्रेणी से परीक्षा उत्तीर्ण किया। उसके पापा उसके अंक से थोड़े नाराज थे क्योंकि उनके और जो भी साथी थे सबके बच्चों को अच्छे अंक आए थे। मुहम्मद बचपन से ही डॉक्टर बनना चाहता तो उसके पापा ने उसका दाख़िला आकाश इंस्टिच्युट में करवा दिया। कल उसको आकाश में पढ़ने के लिए जाना है।
घर में तैयारियाँ चल रहीं थी, एक जोड़ा नया कपड़ा ख़रीदकर बैग में डाल दिया गया, काजू का भी एक पैकेट रख दिया गया, अम्मी नमकीन छान रही थी और छानते-छानते उनके आँखों से आँसू भी निकल रहे थे।वो सोच रही थी कि अब तक अकेले नहीं रहा वहाँ कैसे रहेगा, इतना लापरवाह है कैसे कपड़े धोएगा, कौन इसको समय-समय पर खाने को याद दिलाएगा? ये सारी बातें उनके दिल को कचोट रही थी क्योंकि माँ का दिल तो ममता का होता है।
मुहम्मद को खाने के समय उसके पापा समझा रहे थे कि अपने-आप से मतलब रखना, किसी अनजान से दोस्ती मत करना, काम से काम रखना, किसी से उलझना मत, दिन-जमाना बहुत ख़राब चल रहा और समय से रूम पर आना।अगले दिन सुबह-सवेरे ऑटो आकर हॉर्न मारने लगा।ऑटो में बैग और बाक़ी सामान रखा जा चुका था बस अब मुहम्मद के बैठने की देरी थी।
जैसे ही उसका एक पैर ऑटो पर जाता है कि उसकी अम्मी उसके हाथ में कुछ पैसे थमा देती हैं।अब वो हाथ छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था। उसे इतने ही देर में सब याद आने लगा कि अब वहाँ कौन अपने हाथों से खिलाएगी, कौन पैसे देगी? बीस घंटे के सफर के बाद वो हॉस्टल पहुँचा।वहाँ उसको एक नई दुनिया दिखी। एक ऐसी दुनिया जहाँ न कोई रोकने वाला, न कोई टोकने वाला। जिस आजादी को वो पाना चाहता था आज वो सारी आजादी उसके पास थी पर फिर भी उसका मन न जाने क्यों उदास था? इतने में घर से फोन आता है।
अम्मीः कैसे हो बेटा?
मुहम्मदः ठीक ही हूँ। (दबे स्वर में)
अम्मीः खाना खाया और कैसा लगा वहाँ का माहौल?
मुहम्मदः हाँ, ठीक-ठाक।
अम्मीः क्या खाया?
मुहम्मदः वही चावल, दाल और सब्जी।
इसी बीच उसकी अम्मी समझ जाती हैं कि वो अकेला महसूस कर रहा है और वो उसको समझाकर फोन रख देती हैं।
घर पर उसके अम्मी-अब्बू आपस में बातें करने लगे कि ठीक हुआ यहाँ से चला गया। यहाँ उसका संगत बिगड़ चुका था। वहाँ आराम से रहेगा और पढ़ाई करेगा। पर उनको क्या पता था कि उनके लाड़ले की हॉस्टल में भी खूब दोस्ती हो चुकी है। वो पढ़ाई कम करता था और घूमता ज्यादा था। घर से जब भी फोन जाता तो अपने दोस्तों को चुप कराकर कहता कि बस पढ़ ही रहा था। इतना सुनते ही उसके अम्मी-अब्बू ख़ुश हो जाते थे। वहाँ जाकर वो कुछ सीखा हो या न सीखा हो लेकिन झूठ बोलना अच्छे सीख गया।
पहले मासिक टेस्ट में एक सौ अस्सी अंक में से उसको आया सिर्फ चालीस अंक। जब टेस्ट के अंक का पता उसके पापा को पता चला तो उसने कहा कि पहली बार था और पैटर्न का पता नहीं था तो ऐसा हुआ लेकिन आगे से अच्छा करेंगे। उसके इस बात पर उसके पापा ने भी कहा ठीक है पर आगे उसका प्रदर्शन और बिगड़ता गया।मौज-मस्ती और घूम फिरकर उसने पूरा दो साल काट लिया। दो साल की पढ़ाई भी पूरी हो चुकी थी तो वो अब घर चला गया और वहीं से नीट की परीक्षा भी दे दि। वो दो साल बिल्कुल भी पढ़ा नहीं था तो परीक्षा बेकार जाना ही था।परीक्षा देकर आया और जब उसके पापा ने पूछा तो कहा कि अच्छा गया है। हो जाएगा कहीं-न-कहीं। लेकिन उसको तो पता था कि सौ अंक भी आ जाए तो गनीमत। ठीक ऐसा ही हुआ जब रिजल्ट आया। उसका अंक सौ का आँकड़ा भी छू नहीं पाया।
मुहल्ले, आस-पड़ोस, सगे-सम्बन्धी ने जब पूछा तो उसके पापा ने कहा कि बस कुछ अंकों से रह गया।वो झूठ बोलना नहीं चाहते थे लेकिन मजबूरी से बोले जा रहे थे।उनका सपना बेटे को डॉक्टर बनते देखने का टूटता हुआ दिख रहा था। रिजल्ट वाले ही रात को उन्होंने मुहम्मद को बुलाकर पूछा कि अब आगे क्या करना है? तो उसने कहा कि मुझे ग्रैजूएशन करनी है। वो चाहते थे कि ये फिर से तैयारी करे लेकिन उसके जवाब को सुनकर उन्होंने दिल पर पत्थर रखकर उसका दाख़िला करवा दिया।
अब वो हर दिन कॉलेज जाता है पर पढ़ाई अभी भी ठीक से नहीं कर रहा था। पहले वाला रवैया फिर से अपना लिया। बिना कारण के घूमना, दोस्तों के साथ इधर-उधर में व्यस्त रहना। उसके इस चाल-ढ़ाल को देखकर उसके पापा ने भी उसको बोलना छोड़ दिया था। कई महीनों तक ऐसा ही चलता रहा।एक दिन की बात है कि मूसलाधार बारिश हो रही थी। मुहम्मद पूरे दिन गायब था और रात होने पर भी नहीं लौटा। न तो अपनी अम्मी का फोन उठा रहा था न अपने पापा का।सब लोग परेशान हो रहे थे कि आख़िर है कहाँ? उसकी अम्मी का रो-रोकर बुरा हाल हो चुका था। उसके पापा पूरा गाँव और वो जहाँ-जहाँ जाता था हर एक जगह छान मार चुके थे पर उसका कोई अता-पता नहीं था। इंतेजार करते-करते एक बज चुका था।इतने में वो डोलता हुआ वहाँ पहुँचा।
उसके पहुँचते ही उसके पापा ने पूछना शुरू किया कि कहाँ था इतनी रात तक? तुम्हारी वजह से तुम्हारी अम्मी रो-रोकर मरी जा रही थी, बताता क्यों नहीं कहाँ था? बार-बार पूछने पर भी जवाब नहीं मिला तब उसके करीब जाकर उन्होंने पूछा तो उसके मुँह से दारू की बू आ रही थी। बू का आभास होते ही उनका गुस्सा आसमान पर चढ़ गया और उसी बारिश में उन्होंने उसको घर से निकाल दिया।
|घर से निकाले हुए मुहम्मद को पाँच साल हो चुके थे। उसकी अम्मी हर दिन किसी न किसी के नम्बर से फोन करती थी पर वो आवाज सुनते ही काट देता था। उसकी अम्मी उसके निकाले जाने के बाद किसी भी ईद पर नए कपड़े नहीं पहनती थी। ऐसा कोई दिन नहीं जब वो उसको याद नहीं करती। आज वो मेट्रो में उस माँ-बाप को जब बच्चे को सीने से लगाए हुए देखता है और देखते मात्र उसको भी अपने अम्मी-अब्बू की याद आ जाती है। मुहम्मद की आँखें नम होती जा रही थी इतने में उसने फोन उठाया और अपनी अम्मी को सलाम करते ही जारो कतार होकर रोने लगा।