पिता – बेटी और महावारी
*पिता-बेटी और महावारी*
पीरियड्स (माहवारी):-दुनिया का एक प्रकृतिक उपहार स्त्रियों के लिए ।।
आजकल शोशल साइट्स पर माहवारी की चर्चा बहुत जोड़ो से चल रही है ।।
जिसकी चर्चा पहले सोंच-समझ कर की जाती थी,जिसे बोलने में लोग कतराते थे,आज खुलेआम की जाती है ।।
कुछ सोंच कर मैं आज भावुक हो उठी,आज मुझे वो लड़की याद आ गयी जिसकी माँ अब इस दुनिया में नही थी,उसका इस दुनिया में बस पिता और कि 5 वर्ष के छोटे भाई के सिवाय कोई नही था ।।पिता काम को खेत पर निकल जाते थे ये घर का सारा काम निपटा कर अपने भाई के साथ विद्यालय पढ़ने को चली जाती थी ।।
आज गुड़िया स्कूल नही गयी,वह घर के एक कोने में चुपके से छिप कर बैठी थी,जैसे उसने कोई चोरी की हो।।पिताजी का खेत से वापस आने का समय हो चला था,गुड़िया घड़ी की ओर बार-२ देख रही थी जैसे वो चाह रही हो घड़ी का कांटा रुके जाये या फिर पिताजी आज देर से घर आये,बहरहाल,वो पल आ ही गया जिशका उसे इंतजार था,दरवाजे की कुंडी कोई खटखटाता है,गुड़िया की सांसे तेज चलने लगती है,धड़कन जोड़ो से धड़कने लगता है मानो पुलिस आयी हो चोर को पकड़ने ।।
दरवाजा खोलते ही वह पिताजी के लिए पानी लाने रसोई में(लंगड़ाते हुए) चली जाती है
पिताजी उससे पूछते है,गुड़िया आज तुम विद्यालय नही गयी,न घर साफ-सुथरा है,कल के बासी फूल भी पूजा घर में पड़ा हुआ है तुम ठीक तो हो न..??
गुड़िया नज़रे झुका कर कहती है जी पिताजी बस पेट में थोडा दर्द है,फिर वह खाना परोस कर एक तरफ आ जाती है ।।
खाना खाते -खाते पिताजी कहते हैं बेटा जरा आचार लाना,यह सुनते ही गुड़िया अचम्भ हो जाती है,और दौड़ते हुए घर के पीछे खेत के तरफ भाग जाती है ।।(क्योंकि आज वह पीरियड थी,उसकी सहेलियों ने उसे बता रखा था माहवारी के दिनों में आचार,नमक छूने से वह खराब हो जाते हैं,पूजा-पाठ भी नही किया जाता)
पिताजी भी खाना छोड़कर गुड़िया के तरफ दौड़ते है,अचानक उनके पैर रुक जाते है खेत में टँगे 2-3 पुराने कपड़े के टुकड़े थे जिस पर खून के धब्बे लगे हुए थे,जो हवा में लहराते हुए धूप की किरणों में सुख रहे थे ।। अब पिताजी सब कुछ समझ चुके थे,उनके आंखों से आँशु बहने लगे । अपने कदमों को पीछे मोड़कर वो बुदबुदाते हुए(मेरी बेटी बड़ी हो गयी) अपने कमरे में चले गयें,कमरे में एक पुरानी सी संदूक पड़ी थी,जिसे खोलकर वो एक समान निकालते है,(उनकी पत्नी आखिरी दम छोड़ते हुए उनके हाथों में एक समान दिया था,और कहा था जब मेरी बेटी बढ़ साल की हो जाये,उस दिन उसके हाथ में तुम यह दे देना,वह समान सैनेट्री पैड था),उसे ले कर वे गुड़िया के पास जाते है और समान देते हुए कहते है,ये लो तुम्हारी माँ ने तुम्हे देने को कहा था ।।
गुड़िया उत्साहित होकर जैसे ही उस समान को खोलती है,रोते हुए पिता के गले लग जाती है,गुड़िया की सारी लाज लज्जा जैसे बहती नदी में बह जाती है ।।
आज भी हमारे भारतवर्ष में लगभग 70% महिलाएं (सभी आयु वर्ग के) सैनेट्री पैड के इस्तेमाल के बारे में नही जानती,मासिक धर्म के समय वे पुराने कपड़े,राख आदि का इस्तेमाल करती हैं, जिस कारण देश में हर साल लाखों महिलाएं,”सवाईकल कैंसर” जैसे रोग से ग्रसित होकर मर जाती हैं,वे लोकलाज के डर से भी इससे दूरी बनाए रखती हैं ।।
आज हम सभी युवाओं को ग्राम-घरों में जाकर माहवारी के दिनों में पैड के इस्तेमाल के बारे में प्रचार करनी चाहिए,स्कूल-कॉलेज में जाकर छात्राओं को जागरूक करनी चाहिए ।।
“हम बदलेंगे तभी हमारा देश बदलेगा” ?
नाम-जुही कुमारी कर्ण