परमवीर ‘निर्मलजीत सिंह सेखों’
“शादी का जशन मनाने को, कोई चुनता है बाग बगीचे कोई चुनता है महल चौबारे बिरले ही होते हैं वो, जो शादी का जश्न मनाने को चुनते हैं जंग के गलियारे।”
ये सच है कि शादी का उत्सव हर युवा का एक अनोखा सपना होता है, वह अपने तरीके से बेहतरीन और आलीशान जगह पर अपने इस शगुन को होते देखना चाहता है। पर मैदान-ए-जंग जैसी जगह बिरले लोग ही चुनते हैं। जीता जागता नाम है, हमारे परमवीर निर्मल “जीत सिंह सेखों” का।
आज कहानी एक ऐसे ही फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों की।जिन्होंने अपनी शादी का जश्न मनाने के लिए मैदान-ए-जंग को चुना। साथ ही 1971 के युद्ध में पाक के कई लड़ाकू विमान नेस्तनाबूद कर भारत की जीत सुनिश्चित कर दी थी।
कभी सोचकर देखिए पत्नी के हाथों की मेहंदी भी न छूट पाए और सफर जंगका हो ।
कभी सोचकर देखिए उस दुल्हन की तरफ से जो हज़ारों सपने लेकर एक व्यक्ति की संगिनी बनकर सारा जीवन उसके साथ बिताने आती है, जिसके हाथों की मेहंदी की लालिमा भी फीकी न हुई हो।
‘मेहंदी भी कहाँ छूटी थी, घूंघट भी कहाँ उतरा था।
संगम था अभी अधूरा, फर्ज की खातिर साजन बिछुड़ा था।
लेकिन जब तक शौर्य का जज्बा मन में न हो, तब तक, इस तरह नई के दुल्हन से फर्ज की खातिर विदा लेना हर किसी बस की बात नही होती। निर्मलजीत सिंह जी का बचपन ही शौर्य की गाथा सुनकर बीता।
निर्मलजीत सिंह का बचपन
साल 1943, जुलाई महीने की 17 तारीख, लुधियाना के एक छोटे से गाँव रुरका में एक बच्चे की किलकारियों गूंजी। नाम रखा गया निर्मलजीत सिंह सेखों।
पिता तारलोचन सिंह सेखों भारतीय वायुसेना का हिस्सा थे, लिहाजा बचपन शौर्यता के किस्से सुनकर बीता। इसी बीच कब उनकी नन्हीं आँखों में एक भारतीय सैनिक बनने का सपना पलने लगा, उन्हें खुद भी पता नहीं चला।
युवावस्था और देश के प्रति लगाव
शौर्य की बातें सुनकर बचपन बीत चुका था, युवावस्था में कदम रखते ही सेखों के मन में देश के लिए कुछ करने की इच्छा जागृत होने लगी।
फिर क्या था वह अपना सपना पूरा करने के लिए निकल पड़े और 1967 में पायलट अफसर बनकर उसे पूरा किया। नियुक्ति के करीब चार साल बाद सेखों के अच्छे कार्य ने उन्हें पलाइंग अफसर के पद पर पहुँचा दिया। इसी बीच मंजीत कौर नाम की एक लड़की उनकी जिंदगी में आई और उनकी पत्नी बन गई शादी को महज छ ही दिन हुए थे। सेखों शादी के जश्न में डूबे हुए थे।
वो मंजर भी सेखों की तरह उतना ही वीर था जिसमें नई दुल्हन (पत्नी) की भावनाएं भी पति (निर्मल सिंह जीत. सेखों) को कमजोर नकर पाई।
छुट्टियों कहाँ बिताई जाएँ, इस पर बात चल रही थी। इसी दौरान 3 दिसम्बर 1971 को खबर आती है कि पाकिस्तान ने भारत के साथ जंग छेड़ दी है। फिर क्या था ताकाल सेखों ने तय किया कि वह ग संभालेंगे। जामतीर पर यह आसान नहीं होता। जरा सोचिए किसी की पत्नी के हाथों की मेहंदी भी न छूटी हो और उसे ऐसे सफर पर निकलना हो, जहाँ से वापसी की गारंटी न हो।
वह तो सेखों का देश प्रेम बाकि पत्नी की भावनाएँ भी उन्हें कमजोर न कर पाई। समय रहते ही उन्होंने अपनी पोस्ट श्रीनगर एयर फील्ड में रिपोर्ट की। साथ ही 18 नेट स्क्वाइन विमान के साथ दुश्मन को मार गिराने की रणनीति तैयार की। उधर पाकिस्तान अपने सेवर जेट फाइटर प्लेन 86 के साथ भारत पर हवाई हमले के लिए उड़ चुके थे।
हुआ सफर शुरू, शूरवीर की आसमानी उड़ान का।
लिए दिल में देश प्रेम, परवाज के हौसलों की मचान का।।
यहीं से शुरू हुई निर्मलजीत सिंह सेखों के परमवीर बनने की उड़ान जिसमें साथी घुम्मन ने राह को आसान बना दिया।
सुबह का वक्त था श्रीनगर एयरबेस धुंध से पटा दिखाई पड़ रहा था। ऐसे में मुश्किल यह थी कि सेखों अपने विमान को टेक ऑफ कैसे करें, परिस्थितियाँ एकदम विपरीत थी।
पर कहावत हैं जहाँ चाह होती है वहाँ राह होती है की रणनीति के तहत फ्लाइंग लेफ्टिनेंट घुम्मन ने 18 नेट स्क्वाइन फाइटर प्लेन के साथ पहली उड़ान भरी घुम्मन, निर्मलजीत सिंह सेखों के साथी और एक सीनियर पायलट थे। उन्हें जी-मैन के नाम से जाने भी जाना जाता है।
साथी घुम्मन के रवाना होते ही वीर निर्मलजीत सिंह ने अपने विमान से साथी घुम्मन को कवर दिया। दुश्मन भी कमजोर नहीं था। उसने तेज हमले शुरू कर दिए। निर्मलजीत सिंह ने जल्दबाजी नहीं की और पहले अपने टारगेट को खोजा जल्द ही उन्हें पाकिस्तान के दो विमान नजर आगए।
वह उनके पीछे लग गए। ताकि मौका मिलते ही उन्हें गिरा सकें।
शुरू हो गई थी यहीं से, टूटनी दुश्मन की कमर,
इस कदर शोले बरसाता, जज्बा निर्मल का देखकर।
वहीं दूसरी तरफ उनके साथी घुम्मन पहले से ही दुश्मन के एक विमान के पीछे लगे हुए थे। फिर वो मौका आया, जिसकी निर्मलजीत सिंह को तलाश थी मजबूत स्थिति में पहुंचते ही निर्मलजीत ने पाकिस्तान के उन दोनों विमानों को मार गिराया, जिनका वो पीछा कर रहे थे। वह यहीं नहीं रुके।
उन्होंने अपना विमान पाक के उस विमान की तरफ घुमा दिया, जो लगातार एयर बेस पर बमबारी कर रहा था। दुश्मन को समझ आता इससे पहले ही उन्होंने उसके इस विमान को भी धराशायी कर दिया।
अब तक वह इस तरह पाकिस्तान के फाइटर प्लेन नेस्तनाबूद कर चुके थे। पर अभी तिरंगा लहराना बाकी था। इसलिए वह आगे बढ़ चले निर्मलजीत सिंह अपनी रफ्तार के कारण दुश्मन के निशाने पर आ गए। पाकिस्तानी सेना को समझ आ गया था कि अगर इस जंग में उन्हें आगे बढ़ना हैए तो उन्हें भारत के तूफान निर्मलजीत सिंह को खत्म करना होगा।
शुरू हो चुका था सफर, दुश्मन से लोहा लेने का।
रख शोले दिल में अथाह सेखों के परमवीर बनने का।
निर्मलजीत सिंह सेखों बेकौफ होकर वीरता के साथ दुश्मन से लोहा ले रहे थे। तभी उनका विमान हमले का शिकार हुआ और बडगाम पास गिर गया। उस समय निर्मलजीत सिंह सेखों घायल थे परंतु उनमें अभी जान बाकी थी हौसला उनमें अभी भी कम न था। वह अपने विमान से निकलने की कोशिश कर रहे थे। ताकि कुछ और दुश्मनों को मार सकें। पर अफसोस कि वह नहीं निकल सके और अमर होकर वीरगति को प्राप्त हो गए। निर्मलजीत सिंह सेखों की पत्नी को भरोसा था कि उनके पति लौटकर जरूर आएंगे और वह आए भी मगर वर्दी में नहीं भारत की शान तिरंगे में लिपटकर।
इंतज़ार था उन कोमल आँखों को साजन के लौटने का।
देखा तो तिरंगे में लिपटकर परमवीर आ गया।
जी हाँ तिरंगे को पहनकर वो आसमान में उड़ान भरकर दुश्मनों के छक्के छुड़ाने वाले जाबांज निर्मलजीत सिंह सेखों शहीद हो चुके थे। मगर जाते जाते उन्होंने पाकिस्तानी सेना का इतना बड़ा नुकसान कर दिया था कि वह आगे युद्ध में खड़ा ही नहीं हो पाया। उसे 16 दिसंबर को ही भारतीय सेना के सामने अपने घुटने टेंकने पड़े। यही नहीं इस युद्ध के परिणाम स्वरूप पूर्वी पाकिस्तान आजाद हुआ, साथ ही बांग्लादेश के रूप में विश्व को एक नया देश मिला।
होकर अमर दे गए विश्व को बांग्लादेश।
लिपटकर तिरंगे में दे गए पत्नी को सम्मान अनेक।
छोटी उम्र 28 साल के वीर निर्मलजीत सिंह सेखों को मरणोपरांत सेना के सबसे बड़े सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। उनकी पत्नी और पिता ने गर्व से यह सम्मान स्वीकार किया। वे वायु सेना के इकलौते ऐसे अधिकारी हैं, जिन्हें यह सम्मान मिला।
परमवीर निर्मलजीत सिंह सेखों के इस अद्भुत पराक्रम एवं शौर्य को” कैफे सोशल ” का कोटि-कोटि नमन।