परमवीर चक्र विजेता सूबेदार मेजर राइफलमैन संजय कुमार
3 दिसम्बर 1976 को हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले के कलोल बकैन गाँव में जन्मे संजय कुमार सेना में भर्ती होने से पहले दिल्ली में टैक्सी ड्राइवर का काम किया करते थे।
उनके युद्ध-कौशल को देखने जानने वालों को यह जानकर हैरानी हो सकती है कि सेना में अंततः भर्ती होने से पहले वे तीन बार असफल हुए थे। संजय कुमार का सेना के प्रति आकर्षण स्वाभाविक था क्योंकि वे सैनिकों के परिवार से संबंध रखते हैं। उनके चाचा ने 1965 का भारत-पाक युद्ध में हिस्सा लिया था। उनके एक भाई भारत-तिब्बत सीमा बल (भातिसीब-आईटीबीपी) में सिपाही हैं।
कारगिल युद्ध – मश्कोह घाटी की हैरतअंगेज लड़ाई
कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना द्वारा हड़प ली गयीं महत्त्वपूर्ण हिमालयी पहाड़ियों को आज़ाद कराने के उद्देश्य से भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन विजय’ नामक अभियान चलाया। मश्कोह घाटी बिंदु पर शत्रु की स्थिति इतनी सुदृढ़ थी कि इस बिंदु से राष्ट्रीय राजमार्ग पर न केवल नजर रखी जा सकती थी, बल्कि शत्रु इस राजमार्ग से निकलने वाले किसी भी वाहन को अपना निशाना बना सकता था। दुश्मनों की इस स्थिति के कारण लेह से भारतीय संपर्क कटने का डर था, डर यह भी था कि यदि समय रहते पाकिस्तानी सेना के कब्जे से इस बिंदु को खाली नहीं कराया गया तो लद्दाख जाने वाली आपूर्ति पूरी तरह से ठप हो जाएगी। अब फ्लैट टॉप प्वाइंट पर अपना कब्जा वापस लेना भारतीय सेना के लिए अनिवार्य हो गया था।
‘ऑपरेशन विजय’ अभियान के अंतर्गत 4 जुलाई 1999 को जम्मू-कश्मीर राइफल्स की 13वीं बटालियन के सदस्य के रूप में संजय कुमार के नेतृत्व में उनके साथियों को मश्कोह घाटी बिंदु 4875 के एरिया फ्लैट टॉप को शत्रु से पुनः वापस लाने का जिम्मा दिया गया। संजय कुमार ने देश के लिए दी गयी इस जिम्मेदारी को निभाया और खूब निभाया। इस सैनिक की शूरवीरता की दास्ताँ अगर एक कहानी की तरह कहनी हो तो उसका चित्र कुछ इस तरह का बनेगा
भारत का अकेला एक सैनिक अपनी जान की परवाह किए बिना शत्रु के बंकरों को निशाना बनाते हुए हिमालय की पहाड़ियों में आगे बढ़ रहा है। वह जानता है कि शत्रु बंकरों से लगातार की जा रही गोलीबारी से उसके साथी अपने लक्ष्य की ओर नहीं बढ़ पा रहे हैं। उसे बखूबी एहसास है कि हज़ारों मीटर की खड़ी चढ़ाई कर ऊपर बैठे विरोधी को मार भगाना है। यह विकट परिस्थिति है जब उसके देश की संप्रभुता दाँव पर लगी हुई है इसलिए वह निश्चय करता है कि एक साहसी नेतृत्व अपने साथियों को दिया जाए। दुर्गम बर्फानी पहाड़ियों के बीच रेंगता हुआ वह शूरवीर शत्रु बंकर पर अपनी स्वचालित बन्दूक से गोलियों की बारिश कर देता है।
इसी बीच उसके सीने और कलाई में शत्रु की गोलियाँ लगती हैं, पीठ और पैर भी छलनी हो चुके हैं और तेजी से बहती रक्त की धाराएँ हिमालय की सफ़ेद पहाड़ियों को लाल करने लगती हैं। इन सबके बावजूद वह सैनिक शत्रु बंकर की तरफ आगे बढ़ता जाता है। तीन शत्रु सैनिकों से वह जबर्दस्त हाथापाई करता है और उन्हें मौत की नींद सुला देता है। गोलियों के घाव और बहते हुए खून को भूलकर देश का वह वीर सपूत शत्रु की छोड़ी गयी मशीन-गन को उठाता है और दूसरे बंकर पर हमला कर देता है। इस अचानक किए गए हमले से भागते हुए कई शत्रु मारे जाते हैं। इस अद्भुत और अकल्पनीय साहस से प्रेरित होकर सैनिक के बाकी साथी भी आगे बढ़ते हैं और रणनीतिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण उस क्षेत्र को अपने नियंत्रण में वापस ले लेते हैं। देश का तिरंगा हिमालय की उन पहाड़ियों में लहरा उठता है।
पुरस्कार और सम्मान
वीरता की इस विलक्षण घटना के फलस्वरूप राइफलमैन संजय कुमार को 15 अगस्त 1999 को भारतीय स्वतंत्रता दिवस पर भारत के सर्वोच्च सैन्य पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। वे अपनी यूनिट से परमवीर चक्र प्राप्त करने वाले दूसरे सेनानी हैं। उनके अलावा उनकी यूनिट से कैप्टन विक्रम बत्रा को मरणोपरांत इस पुरस्कार से अलंकृत किया गया। इसके अतिरिक्त संजय कुमार के पराक्रम के लिए उन्हें कई अन्य पुरस्कारों से भी सम्मानित किया गया है, जिनमें प्रमुख हैं – ऑपरेशन विजय पदक,
- पराक्रम पदक,
- स्वतंत्रता की 50वीं वर्षगाँठ पदक,
- सैन्य सेवा पदक, विशेष सेवा पदक,
- विदेश सेवा पदक आदि।
2 जुलाई 2014 को संजय कुमार पदोन्नत होकर नायब सूबेदार बने और इस प्रकार भारतीय सेना के जूनियर कमीशंड अधिकारी भी रहे। हाल ही में फरवरी 2022 में उन्हें सूबेदार से मेजर के पद पर प्रोन्नति दी गयी।
लोकप्रियता
2003 की हिन्दी फिल्म ‘एलओसी कारगिल’ में संजय कुमार और उनके साथियों को आधार बनाकर मश्कोह घाटी के अद्भुत संघर्ष को पर्दे पर बड़ी सुंदरता से दिखाया गया। इस फिल्म में संजय कुमार का चरित्र अभिनेता सुनील शेट्टी ने निभाया। वर्ष 2020 में प्रसिद्ध टीवी शो कौन बनेगा करोड़पति में शो के प्रस्तोता अमिताभ बच्चन के विशेष आमंत्रण पर संजय कुमार साथी परमवीर चक्र विजेता कैप्टन योगेंद्र सिंह यादव के साथ शामिल हुए तथा जीती गई पूरी राशि सेना कल्याण कोष में दान कर दी। इसके अलावा संजय कुमार के ‘सबसे बहादुर जीवित भारतीय’ नाम से कई सोशल मीडिया फैन क्लब बने हुए हैं जो उनकी वीरता और लोकप्रियता के संकेत मात्र हैं।
भारतीय सेना की आधिकारिक वेबसाइट पर सूबेदार मेजर संजय कुमार के परमवीर चक्र पुरस्कार संबंधी जो उद्धरण दिए गए हैं, उनमें इस पंक्ति पर ध्यान दिया जाना आवश्यक है – “राइफलमैन संजय कुमार ने शत्रु के सामने असाधारण रूप से उच्च क्रम के कर्तव्य के प्रति सबसे विशिष्ट वीरता, शांत साहस और समर्पण का प्रदर्शन किया।” सबसे ऊँचे पहाड़ी क्षेत्रों पर युद्ध के सबसे ताजा उदाहरणों के रूप में मश्कोह घाटी के अद्भुत संघर्ष और पराक्रम को बारम्बार याद किया जाता है। विकट परिस्थितियों में जब देश की प्रतिष्ठा और उसकी अखंडता दाँव पर लगी हो, साथी सैनिक वीरगति प्राप्त कर चुके हों, बुरी तरह घायल हो चुके हों और बिल्कुल सामने खड़ा शत्रु बेहद मजबूत स्थिति में हो, ऐसे समय में तुरंत निर्णय लेने और साहसिक नेतृत्व कर पाने की क्षमता सभी के बस की बात नहीं होती। संजय कुमार इस बात का जीवंत उदाहरण हैं कि ऐसी भीषण और विकराल परिस्थितियों में भी अपने प्राणों की आहुति के लिए तैयार रहते हुए कैसे खुद को और साथियों को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। साहस, समर्पण, नेतृत्व, दूरदर्शिता, जीवटता और जिजीविषा आदि कई गुणों से ओतप्रोत संजय कुमार का व्यक्तित्व निश्चय ही आने वाले कई पीढ़ियों को लोमहर्षक प्रेरणा देता रहेगा। कई घावों को लेकर युद्ध-भूमि में बारम्बार उतरने वाले राणा-सांगा की तरह बुरी तरह घायल संजय कुमार के दुश्मनों को मारते और तिरंगा फहराते हुए दृश्य-चित्रों की स्मृतियाँ युगों-युगों तक जनता के मनों में कौंधती रहेंगी। ऐसे वीरों को भारत की धरती नमन करती रहेगी।