दृष्टि है तो सृष्टि है शरीर का सबसे महत्वपूर्ण अंग हमारी आंखें हैं जिनके बिना जीवन की कल्पना एक घनघोर अंधेरी गुफा में दिशाहीन डोकर भटकने जैसी है। आंखें ईश्वर का दिया वो अनमोल उपहार है जिसकी कद्र वहीं जानता है जो इनसे वंचित है. नेत्रहीन व्यक्ति ही आंखों की महत्ता समझ सकता है।
किंतु भारत में लगभग एक करोड़ पच्चीस लोग दृष्टिबाधित है. अर्थात हर मिनट में एक बच्चा और हर पांच सेकंड में एक व्यक्ति रोशनी से वंचित हो रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार सम्पूर्ण विश्व में 18 करोड़ मरीज कॉर्निया की वजह से अंधकार के शिकार है। कॉर्निया आँख का वह भाग होता है जो की पारदर्शी होता है। इसके किसी कारण वश धुँधला जाने से यहां सफेदी आने से अंधत्व पैदा हो सकता है और इसका निवारण कॉर्नियल ट्रांसप्लांट से हो सकता है। यदि कोई व्यक्ति मरणोपरांत अपनी आँखें दान करता है तो उसका आगे का कार्निया वाला भाग दूसरे व्यक्ति की आंख में लगाया जा सकता है जिससे उसे व्यक्ति की आँखों की रोशनी वापस लाई जा सकती है। एक व्यक्ति के नेत्रदान से न केवल एक ही व्यक्ति बल्कि 6 से भी अधिक व्यक्तियों को लाभ हो सकता है। पर दुर्भाग्य वर्ष इतने करोड़ों व्यक्ति कॉर्नियल ब्लाइंडनेस से होने के बावजूद भी हम साल में कुछ 1000 ट्रांसप्लांट ही कर पाते हैं। इसका कारण कॉर्नियल ट्रांसप्लांट को लेकर लोगों के मन में फली भ्रांतियां है।
नेत्रदान से जुड़े कुछ सवाल
- नेत्रदान कौन कर सकता है?
नेत्रदान मरणोपरांत ही किया जाता है
हर उम्र का व्यक्ति नेत्रदान कर सकता है
नेत्रदान मृत्यु के 6 घंटे के भीतर किया जा सकता है
इसमें ब्लड ग्रुप आँखों के रंग साइज एसइट उम्र लिंग आदि से कोई फर्क नहीं पड़ता
डोनर की उम्र लिंग ब्लड ग्रुप को कॉर्नियल टिश्यू लेने वाले व्यक्ति से मैच करने की कोई आवश्यकता नहीं होती है।
अपने जीवन काल में आँखों का भले ही कोई ऑपरेशन करवाया हो वह भी नेत्रदान कर सकते हैं
नजर का चश्मा पहनने वाले मधुमेह अस्थमा उच्च रक्तचाप और अन्य शारीरिक विकारों जैसे सांस फूलना हृदय रोग शायर रोग आदि के रोगी भी नेत्रदान कर सकते हैं। - कौन नहीं कर सकते हैं नेत्रदान?
कई सारे गंभीर रोगों से पीड़ित व्यक्ति नेत्रदान नहीं कर सकते हैं। जसे एड्स, हेपेटाइटिस, पीलिया, ब्लड कैंसर रेबीज कुत्ते का काटना सेप्टिसीमिया गैंग्रीन ब्रेन टूमओर या जिन्हें खुद आँखों के आगे का काली पुतली की खराब हो। जिनकी जहर आदि से मृत्यु हो या इसी प्रकार के दूसरे संक्रामक रोग हो तो उन्हें नेत्रदान की मान्यता ही नहीं है। - नेत्रदान करने की प्रक्रिया
- जीवन काल में पंजीकरण किया हो या डोनर के परिवार वालों ने अगर मृत्यु के बाद 6 घंटे के भीतर आँखों का दान करने का निर्णय लिया हो. दोनों स्थितियों में निकटतम आँखों के डॉक्टर मेडिकल कॉलेज या आँख के बैंक की टीम को सूचित करना होता है। इसके बाद टीम कॉनिंआ निकलने की प्रक्रिया पूरी करती है।
- मृत शारीर जहाँ हो घर अथवा सब गृह में बुलाई हुई टीम द्वारा किया जा सकता है
यह प्रक्रिया 10 से 15 मिनट में पूर्ण हो जाती है और आपके नृत व्यक्ति की संस्कार प्रक्रिया में कोई बाधा नहीं डालती प्रक्रिया के बाद चेहरे पर कोई विकार नहीं आता
नियम अनुसार नेत्रदान करने वाले नेत्र देता और जिस मरीज की
आंख दी जाती है उन दोनों की पहचान गोपनीय रखी जाती है। अगर पूर्ण पंजीयन नहीं कराया हो तब भी रिश्तेदार अपने परिवार बालों का नेत्रदान कर सकते हैं।
जीवन है तो मृत्यु भी अवश्य संभावी है. आखिर एक दिन इस देह को जलकर खाक होना ही है तो क्यों ना अपने शरीर का कुछ अंग यदी छोड़ जाए. परोपकार से जीवन को सार्थक बना लें। नेत्रदान करके अपनी आंखों की रोशनी से कितने अंधेरे जीवन को रोशनी दे सकते हैं।
यूं तो हम जीवन में बहुत दान करते हैं पर नेत्रदान से बढ़कर दूसरा कोई दान नहीं. तो आइए मानवता का फर्ज निभाएं और नेत्रदान का पंजीकरण कराकर कुछ अंधरे जीवन में उजाला भर दें।
बुझ गए जो चिराग आंधी में, रोशनी देकर वो जला जाएं,
जिन आंखों से समेटी खुशियां हमने, वो खुशी उन्हें भी दे जाएं।