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में दिल-ए-बैंक बोल रहा हूँ

में बैंक (ठंदा) का दिल बोल रहा हूँ, उसी बैंक का जिससे आपका वर्षों का नाता रहा है और जिसके साथ आपने हर छोटी बड़ी खुशी और गम साझा किये है। आज आप मुझसे नाराज है और क्यों ना हो, गलती आपकी भी नहीं है। आपने तो मुझे सर आँखों पर बैठाया था और आज मैं…. (आँखों में आंसू) आपके लिए कुछ नहीं कर पा रहा हूँ, आपको लम्बी लम्बी लाइन में देख मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा लेकिन मैं क्या करूँ मैं मजबूर हूँ, मुझे अच्छा नहीं लग रहा है आपको परेशान देखकर, आपकी बेटी की शादी के लिए या फिर बच्चे की पढ़ाई के लिए या फिर आपकी वो दवाइयां!

सब तो पता है मुझे आप ही ने तो बताया था जब आप अपनी नन्ही बच्ची की धूमधाम से शादी करने के लिए छोटी रकम हर महीने जमा करते थे या फिर वो आपकी होनहार बेटी और बेटा जिसकी पढ़ाई के लिए आप अपना बोनस जमा करते थे।
मुझे आज भी याद है जब आपका जूता जरूरत से ज्यादा फट गया था और मैंने आपको नया जूता लेने के लिए बोला था तो आपने हँस कर मना कर दिया था क्योंकि आप अपनी लाड़ली के स्कूटी के लिए पैसे जमा करने आये थे।

कभी कभी तो आप ये सभी बातें सिर्फ मुझे ही बताते थे, वो आपका सेवानिवृति के बाद गाँव जाकर विद्यालय के लिए पैसा बचाना और निरीह जानवरों के लिए पानी की टंकी बनाना या फिर अपनी धर्मपत्नी के साथ तीर्थयात्रा पर जाना, सब तो याद है मुझे।

अब मैं क्या बताऊँ आपको, आंसू और पसीना आपका बह रहा है और दिल मेरा रो रहा है, हां एक बैंक का दिल रो रहा है.. क्योंकि मेरा और आपका रिश्ता सिर्फ बैंक और ग्राहक का नहीं था बल्कि विश्वास का था और मैं इस पर खरा नहीं उतरा।

मैंने तो हमेशा आपके विश्वास को कायम रखना चाहा, लेकिन मैं हार गया, मैं हार गया उन बेईमान प्रवर्तकों (च्तवउवजमते) से जिन्होंने अपने थोड़े से लालच और बेईमानी के लिए आपके विश्वास को बेच दिया, मैं हार गया उन बेईमान उद्यमियों से जिन्होंने छल कपट से उधार लेकर आपको परेशानी में डाल दिया। में उन स्वतंत्र निदेशकों (प्दकमचमदकमदज क्पतमबजवते) से भी हार गया, जो थे तो स्वतंत्र लेकिन सिर्फ उपहार लेने और गलत चीजों पर परदा डालने के लिए।

अब मैं आपको रेटिंग एजेंसीज (त्ंजपदह ।हमदबपमे) और हमारे लेखा परीक्षको (।नकपजवते) के बारे में क्या कहूं, ये वो लोग थे जिनको बेईमान प्रवर्तकों, निदेशकों और प्रबंधको के बारे में भारतीय रिजर्व बैंक और सरकार को बताना था पर इन्होंने अपने स्वार्थ के लिए ना केवल मूक दर्शक बने रहना पसंद किया बल्कि गलत जानकारी भी दी।

हाँ आपके बच्चों के भविष्य के लिए जो पैसा था वो ही लगा था इन बेईमान लोगों की कोठी में, आपके रिटायरमेंट के पैसे से ही महंगी शराबें परोसी जाती थी और आपका ही तो पैसा था जिससे ये लोग विदेशों में रंगरेलियां करते थे।

सरकार, सरकार को क्या दोष दे, वो तो अपने अधिकारियों, ऑडिटर्स और दूसरी संस्थाओं पर निर्भर रहती है, काश इन लोगो को पता होता कि जिस विश्वास से ये लोग खेल रहे है, उस विश्वास के ऊपर कितने मासूमों का भविष्य, कितने ईमानदार उद्यमियों के सपने और कितने कर्मचारियों का बुढ़ापा टिका हुआ है। काश इनको पता होता कि इनके इस कदम से मेरे और कई भाई लोगों का बैंको से विश्वास उठ जायेगा?

क्या इन्हें नहीं पता था कि इनकी कारगुजारियों का क्या परिणाम होगा या फिर इन्हें नहीं पता था कि इनको इनके कर्मों की सजा भी मिल सकती है?

में रो रहा हूँ… आपकी परेशानियों को देखकर लेकिन मुझे थोड़ी खुशी भी हो रही है कि इन बेईमानों को पकड़ा जा रहा है। भगवान करें इन्हें ऐसी सजा मिले जिससे ये भविष्य में मेरे और आपके बीच का विश्वास ना तोड़ सके।
मुझे खुशी हो रही है कि आपको परेशानियों से बचाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक और सरकार कोशिश कर रही है। मैं भी कोशिश कर रहा हूँ जिससे आपके विश्वास को फिर से जीता जा सके और फिर से सुन सकूँ वो लाड़ली की कहानी और विद्यालय की बनती हुई दीवाल।

विश्वास करे मैं फिर से वापस आऊंगा, में बैंक (ठंदा) का दिल बोल रहा हूँ…

pradeep sir
By….Pradeep Kumar Jain, Managing Partner of Singhania & Co. LLP

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