जीवन अमूल्य है
बात उन दिनों की है जब मैं बी०ए द्वितीय वर्ष का छात्र था। मैंने एन०सी० सी० भी लिया था तथा राजनीति शास्त्र, प्राचीन इतिहास और अंग्रेजी विषय का चयन किया था। हमारे दो विषयों की कक्षा दोपहर से पहले ही हों जाती थी लेकिन अंग्रेजी की कक्षा के लिए लगभग डेढ़ घंटे तक प्रतीक्षा करना पड़ता था अतः अधिकतर मैं अपने मित्रों के साथ उनकी कक्षा में चला जाता था या फिर पुस्तकालय में बैठकर किताबें पढ़ता था।
एक दिन मैं अपने महाविद्यालय नहीं गया था। दोपहर के दो बजे के आसपास मैं सड़क के उस पार बंधी अपनी गाय को घर लाने गया जो कि एक बड़ी रस्सी से बांध दिया जाता था ताकि वह हरे-हरे घास का आनंद ले। और जब भी उसकी रस्सी खोल दी जाती तो इधर-उधर भागने के जगह सीधे घर की ओर तेजी से आ जाती थी। आज जैसे ही रस्सी खोलने के लिए मैं उसके पास पहुंचा ही था ; तभी सड़क पर कुछ लोगों को दौड़ते हुए देखा। जहां पर मैं था वहां से लगभग 200 मीटर दूर भीड़ जमा हो गई थी। शायद कोई दुर्घटना हुई होगी जैसे कि हमेशा होता है चूंकि मेरा घर एक राष्ट्रीय राजमार्ग पर है और सड़क पर गड्ढों और तेज रफ्तार के कारण या लापरवाही से गाड़ी चलाने के कारण आये दिन ऐसी घटनाएं होती रहती है। तो मेरे लिए यह आम बात हो गई थी हालांकि मै हमेशा दुर्घटना स्थल पर दौड़कर अवश्य पहुंचता था लेकिन आज नहीं गया।
पहले मैं गौ माता को लेकर घर आया और छाये में बांधकर घटना स्थल पर पहुंचा। अब भीड़ कुछ कम थी। लोग आपस में बात कर रहे थे कि ” बहुत चोट लगा है । पढ़ने वाला लड़का था। बेचारा परीक्षा देने के लिए (आवश्यक) प्रवेश पत्र लेकर घर जा रहा था।
मैंने गांव के ही एक लड़के से पूछा, “ कहां का लड़का था? और उसके घर फ़ोन किया गया है या नहीं? कैसे चोट लगी ? किसकी गलती थी? “ जैसा कि सभी लोग पूछते है?
वह लड़का बोला – ” भैय्या वो जीप द्वारा कालेज से घर जा रहा था और जीप पूरी तरह सवारियों से भरी हुई थी। कुछ लोग पीछे लटकें हुए थे और यह बीच वाले सीट पर एक पैर बाहर निकाल कर बैठा था। दस से ग्यारह लोगों को बैठने के जगह में कम से कम पन्द्रह लोगों को बैठाने के बाद ही ड्राइवर गाड़ी आगे बढ़ाते है।“
सीट(जगह)से अधिक सवारियों को बैठाना उत्तर प्रदेश और बिहार में और ना जाने कितने राज्यों में आज भी होता है। यहां तक जीप या बसों के छत पर भी लोग बैठते हैं। यह घटना 2007 की है। अभी उत्तर प्रदेश में कुछ जगहों पर सुधार हुआ है। लोग लटककर तो नहीं आते जाते हैं लेकिन दो लोगों के जगह में तीन सवारी जरूर बैठता है।
इसके बाद वह आगे बोला- भैय्या! यही (मोड़ पर) अचानक एक ट्रैक्टर खेत से हल जोतने के बाद आ रहा था तो सड़क से नीचे उतार कर वह एकदम से पतले रास्ते पर ( तिराहे पर)मुड़ा और दुसरे तरफ़ से ट्रक आ रहा था तो जीप भी बाये तरफ कांटा (रास्ता दिया)। इतने में ही उस लड़के का पैर और टैक्टर के हल के सम्पर्क में आ गया! अब किसकी गलती बताये?
सब संयोग है बेचारे का बहुत अधिक खून बह रहा था। अभी उसको सरकारी अस्पताल में भेजा गया है। उसके साथ एक उसके गांव का लड़का था। उसके घर पर भी फोन लगाया गया है। भईया उसका प्रवेश पत्र गिर गया था जो मुझे अभी मिला। उसने प्रवेश पत्र मुझे दिखाया।
नाम लिखा था “नवीन कुमार, बी० ए० द्वितीय वर्ष”
मैंने कहा – यह तो मेरे साथ पढ़ने वाला लड़का है। मैं अभी चिकित्सालय जा रहा हूं। यह लड़का शायद एन० सी० सी० में भी मेरे साथ है । दो नवीन को मैं जानता हूं पता नहीं यह कौन-सा नवीन कुमार है? ऐसा कहकर मैं उससे प्रवेश पत्र लिया और अपने घर पहुंचा।
मां को जल्दी में इतना बताया कि ” मां! मेरे साथ पढ़ने वाले एक लड़के का एक्सीडेंट हुआ है और मैं चिकित्सालय उसे देखने जा रहा हूं। जल्दी से कुछ पैसे दो! उस समय मुझे 20 रुपए ही मिला। क्योंकि पिताजी घर पर नहीं थें और मां के पास केवल उतना ही पैसा था। पिताजी साईकिल से बाजार गये थे तो मैंने अपने पड़ोसी से साईकिल मांगी और चिकित्सालय के लिए निकल गया। घर से चिकित्सालय की दूरी लगभग 6 किलोमीटर था।
मेरे आंखों के सामने दोनों लड़कों का चित्र और पुरानी बातें याद आती रही। बार-बार मैं ईश्वर से प्रार्थना करता कि चाहे कोई भी हो बस ठीक हो जाएं उसे (नवीन को)कुछ भी न हो।
पिछले साल ही हमलोग (एन० सी० सी० ) शिविर में गये था। जिसमें लगभग बीस लड़के हमारे महाविद्यालय के थे ।जिनमें यह दोनों लड़के जिनका नाम नवीन कुमार था भी साथ गये थे । सब एक-दूसरे को नहीं जानते थे लेकिन अब दस दिन साथ में बिताना था ।
एक नवीन का व्यवहार बहुत ही अच्छा था। बहुत ही हंसमुख लड़का था। हमलोग साथ में खाना खाते थे। देर रात तक जागना और सुबह में चार बजते ही सीटी की आवाज़ पर उठना पड़ता था। नवीन के कारण ही दस दिन अच्छे से बीत गए।
रात में बहुत देर तक अंताक्षरी खेलना, चुटकुले सुनने और गाना गाना और एक दूसरे को परेशान करना , चिढ़ाना यही सब होता था क्योंकि लगभग 500 के आसपास कैडेट अलग अलग विद्यालयों से आये थे। वह बहुत सुंदर गाना गाता था। खासकर सोनू निगम के गाने और वैसे ही सुरीली आवाज था।
अब शिविर से आने के बाद जब भी मिलता तो वह देखते ही बोलता कि और मित्र! क्या हाल है?
मैं कहता- मैं ठीक हूं । अपना बताओ क्या हाल है? कुछ नया ताज़ा खबर हों तो सुनाओ।
तो कहता – ” कुछ नया नहीं है। सब ठीक—ठाक है। एक-एक दिन कट रहा है बस।”
यदि मैं कभी उसे देखता तो मैं ही बोल देता “और नवीन कहा भागे जा रहे । बड़ी जल्दी में हों देख भी नहीं रहे हो।“
समय रहता था तो साथ में चाय पीते थे। नहीं तो वह सीधे अपने कक्षा में जाता था। वह पढ़ने में भी अच्छा था। वह हमेशा बहुत जल्दी में रहता था । तेज गति से आगे देखते हुए जैसे नीचे देखता ही नहीं था। मुझे कभी कभार कहना पड़ता था कि अरे भाई कम से कम नीचे भी और अगल-बगल भी देखा करों।
वो बोलता- ” ठीक है यार। तेरे रहते मुझे क्या होने वाला?
मैं कभी भी उसका पूरा नाम पता नहीं पूछा! क्योंकि मुझे लगता कि शायद उसे बुरा लगे। साथ घुमते तो कभी पुस्तकालय में जाते। कभी-कभी तो प्रयोज्य आदि में अपने प्रयोगों में शामिल करता। चूंकि वो मनोविज्ञान और दर्शनशास्त्र पढ़ता था और मैं दोनों विषय नहीं पढ़ता था लेकिन फिर भी उसके साथ उसकी कक्षा में बैठ जाता था हम लोगो की मित्रता कुड़ाघाट, गोरखपुर कैम्प में हुई थी जब पहली बार घर से दस दिन दूर रहना पड़ा था।
अब दूसरा लड़का जो हमलोगो के साथ शिविर में था जिसका नवीन नाम था वह थोड़ा घमंडी लगता था, ज्यादा बात नहीं करता था किसी से भी। हालांकि मै उसे इंटरमीडिएट परीक्षा से पहले से जानता था। कैसे?
यह एक तरह से त्रिकोणीय प्रेम कहानी है।( सन् 2005 की)
मैंने इंटरमीडिएट विज्ञान वर्ग से तथा गणित विषय लिया था। और यह लड़का ( नवीन )कला विषय से था। मेरे एक मित्र विनय मिश्रा ने मुझसे अपने सैन्य विज्ञान के प्रायोगिक परीक्षा में मदद मांगी ।मैं चित्रकला अच्छा बना लेता था तो मुझे बुलाया। मैं अन्य कई लोगों की मदद किया जिसमें मुझे कुछ यातायात नियमों और कुछ शस्त्रों जैसे तलवार आदि के चित्र बनाने थे। कुछ लड़कियां भी थीं । जिन्होंने भी थोड़ी मदद करने का आग्रह किया उन से कुछ चित्र नहीं बन रहा था।
उन लोगों की पढ़ाई का अंतिम दिन था तो विदाई समारोह भी था। एक लड़की जो बहुत सुंदर थी जिसे मैं पहले से भी पसंद करता था तो आज़ मुझे अवसर प्राप्त हुआ कि थोड़ा बात कर लूंगा। सभी लड़के कार्यक्रम में व्यस्त थे मिठाई और समोसे प्लेट में परोस रहे थे। तभी मैं उससे उसका नाम और नंबर पुछने के लिए हिम्मत करके उसकी तरफ बढ़ा। उसके साथ एक और लड़की थी जो मुझे स्कूल के दिनों से जानती थी और आज मैंने कई लोगों की मदद भी किया था तो आज मैंने ठान लिया था कि आज बात करना है क्योंकि आज अंतिम दिन भी है और शायद आज नहीं तो फिर जिंदगी भर पछतावा रहेगा । खैर उसके पास पहुंचते ही वो लड़का नवीन मेरे पास आ गया और मुझसे पूछा “तुम कौन हों? और क्या बात है?
तभी उसके साथ जो लड़की थी उसने बोला – तुम चले जाओ! तुम क्यों बीच में आ रहे हों? तुम होते कौन हों यह पूछने वाले कि क्या बात है? यह मुझसे मिलने आया है और हमारा दोस्त है !
चलें जाओ! तो वह चला गया ! लेकिन दूर से देख रहा था।
मैंने धन्यवाद कहा। तो उसने कहा “ हमें तो आपको धन्यवाद देना चाहिए कि आप हमारी मदद किये। आप कुछ कहना चाहते हैं क्या?
मैंने कहा-” नही। मुझे आटोग्राफ चाहिए । मुझे आप दोनों का नाम और नम्बर चाहिए कहते हुए ही मैंने एक डायरी आगे बढ़ा दिया। उसमें एक-दो शायरी भी लिखने का अनुरोध किया। तो उसने लिखा –
1- “ दोस्ती एक ग़ज़ल है गुनगुनाने के लिए, दोस्ती एक नगमा है सुनाने के लिए।
यह वो जज्बा है जो सबको मिलता नहीं; क्योंकि हौसला चाहिए निभाने के लिए।।
2- यूं तो दुनिया में तुम्हें दोस्त कम ना मिलेंगे। मिल जाएंगे हम जैसे भी पर हम ना मिलेंगे।
इस शायरी के बाद तो मुझे हिम्मत मिली और मैंने अपने दिल की बात कह दिया “ प्लीज़ बुरा मत मानिएगा। मैं हमेशा आप को देखता हूं और आप मुझे बहुत अच्छी लगती हैं। क्या हम अच्छे दोस्त बन सकते हैं?”
तो उसने मुझे “प्रियंका ” नाम बताया और कहा कि मेरे पास मोबाइल नहीं रहता है अगर आप के पास नम्बर है तो दें दिजीए! तो मैंने तुरंत अपने घर का नंबर दे दिया। हालांकि अब डर लगा रहता कि न जाने कब फोन आएगा ? कहीं पापा या मम्मी फोन ना उठा ले ? फोन आएगा भी या नहीं ? जब बोर्ड परीक्षा नजदीक है और मुझे पढ़ाई करना चाहिए तो मैं ना जाने किन ख्यालों में खोया था ।
खैर एक हफ्ते बाद फोन भी आया और मेरी बुआ ने फोन उठाया और हमारी बात भी हुई और बात पूरे घर वालों को भी पता चलीं। मुझे बड़े प्यार से पापा मम्मी ने समझाया कि बेटा पढ़-लिख लो ! तुम्हारी शादी भी करवा देंगे लेकिन बोर्ड परीक्षा है थोड़ा पढ़ाई पर ध्यान दो।”
तो मैंने कहा। – ठीक है ! मुझे अभी शादी नहीं करना !
मम्मी ने मुझसे पूछा कि क्या वो तुम्हारे साथ पढ़ती है? क्या नाम है? मैंने कहा कि मेरे साथ नहीं लेकिन एक ही कालेज में है। मां ने समझाया- बेटा- अगर दोस्ती करना है तो लड़को से करो। लड़कियो से दूर रहना चाहिए । क्यों अपने साथ-साथ दूसरे की जिंदगी बर्बाद करना चाहते हों। अभी उस लड़की के घरवालों को पता चलेगा तो क्या वो अपने लड़की को पढ़ने भेजेंगे?
अभी पढ़ाई करों और जब कहोगे, जिससे कहोगे मैं तुम्हारी शादी करवा दूंगी। लड़की केवल ब्राम्हण होनी चाहिए।तुम मेरे बड़े बेटे हों मुझे एक पैसा दहेज नहीं चाहिए लेकिन एक वादा करो मुझसे कि कभी भी किसी को धोखा नहीं दोगे !
मेरे मां बाप ने कभी एक थप्पड़ नहीं मारा और एक मित्र जैसे हमेशा अच्छे-बुरे का फर्क समझाया। खैर एक छोटी सी प्रेम-कहानी का अंत हो गया। क्योंकि मैं कभी मां-बाप के खिलाफ जाकर घर नहीं बसा सकता था क्योंकि लड़की अन्य समाज से थी। मैंने यह बात कभी उस लड़की को नहीं बताई कि मेरे घर में सबको पता चल गया। वह सिर्फ मिस्ड कॉल करती तो फोन मम्मी या पापा मेरे पास भेज देते। एक दिन मैंने उसे समझाया कि अपने पढ़ाई पर ध्यान दें। वह गुस्सा गई और फोन आना बंद हो गया। उसने फोन करने से मना किया था तो मैंने किसी तरह दिल को समझाया।
इंटरमीडिएट परीक्षा उत्तीर्ण किया ऐसे समय पर ,जब कालेज में साथ पढ़ने वाले मेरे कई दोस्त फेल हुए हालांकि मैंने भी कुछ अच्छे अंक नहीं प्राप्त किया था। पचास प्रतिशत अंक प्राप्त हुए वो भी माता के पुण्य प्रताप के कारण क्योंकि अगर उन्होंने सही समय पर नहीं समझाया होता या मेरे पिताजी ने मुझे डांटते या मारा पीटा होता कि मैं तुम्हें पढ़ने भेजता हूं तुम्हारे लिए कोचिंग लगवाया हूं तो शायद मैं आत्महत्या कर सकता था।।
लेकिन पढ़ाई तो बर्बाद हो चुकी थी। मैं सोचता हूं कि आज तो बच्चों के पास मोबाइल भी है और वह भी एंड्रॉयड स्मार्टफोन।।
वापस कहानी पर आता हूं कि इंटरमीडिएट के आखिरी दिन के विदाई समारोह की घटना के कारण हम दोनों में खुलकर बात नहीं हुआ था। वो मुझसे चिढ़ता भी था क्योंकि कही ना कही मैं उन दोनों के बीच आया था। अगर हम दुबारा कैम्प में नहीं मिलते तो शायद मैं कभी भी नहीं जान पाता उसके बारे में। एक दिन उसने मुझे प्रियंका के बारे में पूछा “ क्या प्रियंका से तुम्हारी बातचीत होती है तो मैंने कहा- नहीं। फिर मैंने उससे पूछा कि तुम उसे कैसे जानते हों? तो उसने बताया कि मैं अपने घर वालों को भी कह चुका था कि मैं उसी से शादी करुंगा जहां मेरे भईया का ससुराल है वहीं पर उसका घर है। मैं बारीश में पैदल चलकर भी उससे मिलने पहुंचा हूं। हम दोनों रोजाना रात में घंटों फोन पर बातचीत होती थी। (आप को बता दूं उन दिनों रात मुफ्त कालिंग नहीं होता था) । उसे तीन साल से जानता था और बहुत प्यार करता था। मैंने उससे कहा-“मुझे नहीं पता था शायद मेरे कारण तुम लोग अलग हो गए।”। हम लोग भी मित्र बन गये।
दोनों नवीन के विषय में सोचते हुए मैं चिकित्सालय परिसर में प्रवेश किया।
जैसे ही मैं हास्पीटल पहुंचा मेरे होश उड़ गए। हे भगवान! लगभग एक घंटे से अधिक समय बीत चुका था और यह लड़का भर्ती नहीं लिया गया। स्टेचर पर लिटाया गया था जैसे ही उसने मुझे देखा – और मित्र आ गये! तुम्हें कैसे पता चला कि मैं यहां हूं? और बताओ?
हम ठीक है लेकिन तुम्हारी यह हालत ! मेरे ही गांव में तुम्हारा एक्सीडेंट हुआ था।
“अरे यार तुम्हें इतना चोट लगा है। कितना खून बह गया ! डॉ कहां है? तुम्हारा इलाज क्यों नहीं हुआ, बाहर क्यों हो?
घबराओ मत! कुछ नहीं बस थोड़ा-सा चोंट है। सब ठीक है यार। तेरे रहते मुझे क्या होने वाला।” नवीन बोला।
मैं उसका खून देखकर पागल – सा हो गया था। तभी उसकी मां भी रोते हुए पहुंची और घर वाले भी थे ।मैं डॉक्टर के और बाकी स्टाफ को डांट रहा था कि इसका इलाज और क्यों नहीं हो रहा है। सिर्फ एक पट्टी बांध दी और कितना खून बहा है आप लोगों को दिखाई नहीं देता है! तो डॉ साहब बोले – इन्हें तुरंत मेडिकल कॉलेज लें जाना पड़ेगा। पुलिस केस भी जरूरी है। लें जाइए जल्दी। एम्बूलैंस खड़ी थी! जिला अस्पताल 60 किमी दूर है जिसके लिए 1000 रुपए मांगे गए थे। मैं बाहर उसके पिता जी के पास आया उन्हें बताया। तो बोले अपनी गाड़ी आ रही है उसी से जाएगे।
उसकी मम्मी पापा रो रहे थी तो यह चुप करा रहा था उसके हिम्मत और साहस का जवाब नहीं था। बोल रहा था “चुप हो जाओ मम्मी ! इतने से चोट से मुझे कुछ नहीं होगा। मैं मरुंगा नहीं।“ अब मेरे भी आंसू छलक आए मैं खुद को रोक नहीं पाया मैं भी रोने लगा। यह कौन-सा किस्मत का खेल। बेचारे का सपना पूरा नहीं हो पायेगा वह सेना मे भर्ती के लिए सी सटिफिकेट में बी ग्रेड पाने के लिए तैयारी कर रहा था और उसका हौसला और साहस इतना अधिक था कि जब पैरासिंलीग के लिए मैदान में एक बार गिर गया दौड़ते हुए और हाथ छिल गया था फिर भी यह दुबारा से ज़िद कर के प्रयास किया और बाद में पट्टी बंधवाया। उसके बाद ही तो हमारी मित्रता हुई थी और आज एक बार फिर उसके साहस और धैर्य के आगे मैं नतमस्तक था।
लगभग साढ़े तीन बज चुके थे।अब उसका हिम्मत ज़बाब दें रहा था। दर्द से छुटकारा पाने के लिए वह बोल रहा था -“कोई इंजेक्शन दिला दो। मुझे बेहोशी की दवा दे दिजीए अब दर्द बर्दाश्त नहीं हो रहा है। मुझे बहुत देर से प्यास लगी है कोई पानी भी नहीं पिला रहा।”
एक बार मुझसे भी कुछ देर पहले पानी मांगा था तो मैंने कहा था कि चोट लगने पर पानी नहीं देते हैं।
अब उसकी हालत देखकर मेरा तो जैसे जान ही निकल रहा था। मैं फिर दौड़कर डॉ को बुलाया तो डॉ साहब नहीं निकले बाहर एक नर्स आई और बोली-“ इनको जो सूई इंजेक्शन देना था वो दें चुके हैं। पानी नहीं पिलाना है चाय पिला सकते हैं।“ मैं तुरंत चाय लाने गया । चाय लेकर आया तब तक गाड़ी आ चुकी थी। पहले चाय पिलाया गया फिर उसे उठाकर गाड़ी में लेटाया। घर वाले बैठ गये। हमसे भी चलने के लिए पूछा। गाड़ी में मेरे बैठने की जगह नहीं थी। फिलहाल मैंने चाचा जी से मोबाइल नंबर लिया। मेरा शर्ट ख़ून से लाल था। जेब में पैसे भी नहीं थे कि पैसे देकर कुछ मदद कर सकता। मैं स्वयं को लाचार महसूस कर रहा था। घर तक आने की भी हिम्मत नहीं हो रही थी। मैं पास के ही हनुमान मंदिर पर पहुंचा । भगवान को प्रणाम किया मन्नत मांगी कि मेरे दोस्त को ठीक करना प्रभु 🙏 मैं दर्शन करने आऊंगा नहीं तो मैं मंगलवार का व्रत छोड़ दूंगा और फिर कभी मंदिर नहीं आऊंगा। मेरे दोस्त को कुछ होना नहीं चाहिए। वह घर आ जाएगा तो फिर मैं दर्शन करने आऊंगा और कपूर, प्रसाद चढ़ाऊंगा।“
आज भी जब कोई भीड़ लगा देखता हूं तो वहीं खून से लथपथ नवीन का चेहरा सामने आ जाता है। तुरंत दौड़ पड़ता हूं कि किसी का फिर वैसा हाल न हो। ज्यादा खून बहने और संक्रमण के ख़तरे की वजह से नवीन का एक पैर कट गया और उसके देश सेवा का सपना भी पूरा न हो सका।
अंतिम बार फाइनल इयर की परीक्षा में देखा था। एक लड़का उसे बाईक से परीक्षा दिलाने लाया था। बैसाखियों के सहारे चलते देखकर मुझे बहुत दुःख हुआ लेकिन खुशी सिर्फ इस बात की थी कि वह अपने मां बाप के साथ है और जिंदा देखकर ईश्वर को धन्यवाद दिया और फिर मंदिर भी गया। फोन द्वारा ही हाल चाल होता था मैं उसके घर कभी नहीं गया। नवीन का पूरा नाम और पता मालूम नहीं है और अब नम्बर भी नहीं है।
जब भी बसों में और ट्रेनों में खचाखच भीड़ देखते हैं तो मन में एक बैचैनी सी होती है। मैं अतीत में खो जाता हूं चाहकर भी उस दुर्घटना को नहीं भूल सकता। लटककर या किसी तरह लोगों को घर पहुंचने की जल्दी को देखते हुए मन में एक ही बात आती है कि कैसे इन्हें समझाएं कि दुर्घटना से देर भली। समय अमूल्य है परन्तु यह जीवन उससे भी ज्यादा अमूल्य है।
दुर्गेश कुमार तिवारी