गुमनाम नायक- सेठ रामदास जी गुड़वाला
भारत माता को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराने में हमारे अनेक सपूतों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए थें। हर वीर सपूत अपने-अपने तरीकों से स्वतंत्रता संग्राम में अपना योगदान दें रहा था। किसी ने अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन, किसी ने गुरिल्ला युद्ध, बहुतों ने सामने से युद्ध तो किसी ने भामाशाह बनकर अपनी पूरी दौलत क्रांतिकारियों की मदद करने में लगा दी। इसी कारण इनको भी अपनी जान देनी पड़ी थी। इन्हीं भामाशाह मैं से एक थे सेठ श्री राम दास जी गुड़ वाला।
श्री राम दास जी का जन्म दिल्ली में अग्रवाल परिवार में हुआ था। आपके पूर्वजों ने दिल्ली में पहली कपड़ा मिल की स्थापना की थी। सेठ जी ने स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिवीर एवं दानवीर की भूमिका निभाई थी।भारत के अंतिम मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर भी आपका बहुत सम्मान करते थे, उन्होंने ही सेठ रामदास जी को “जगत सेठ” की उपाधि प्रदान की थी। बादशाह के दरबार में सेठजी के बैठने के लिए विशेष आसन की व्यवस्था की गई थी । सेठ रामदास जी दीपावली बड़ी धूमधाम से मनाते थे और उस अवसर पर जो कार्यक्रम आयोजित करते थे उसमें बहादुर शाह जफर भी उपस्थित होते थे। इस आयोजन में सेठ जी लाखों अशर्फियां बादशाह को भेंट किया करते थे।
सेठ जी के बारे में कहा जाता है कि उनके पास इतना सोना, चांदी, जवाहरात था कि उनकी दीवारों से वह गंगा जी का पानी भी रोक सकते थे।
१८५७ में शुरू हुई क्रांति की चिंगारी पूरे भारत में फैल चुकी थी और जब दिल्ली पहुंची तो बहादुर शाह जफर को सैनिक क्रांति का नायक घोषित कर अंग्रेजों से युद्ध किया गया। दिल्ली से अंग्रेजों की हार के बाद अनेक रियासतों की भारतीय सेना ने दिल्ली में डेरा डाल दिया उनके भोजन व वेतन की जब समस्या सामने आई तो बादशाह चिंतित हो गया क्योंकि उनका खजाना तब तक खाली हो चुका था।
जब सेठ जी को इसके बारे में पता चला तो वह बादशाह के पास गए और अपनी करोड़ों की संपत्ति बादशाह के सामने यह कह कर रख दी कि मातृभूमि की रक्षा होगी तो धन फिर कमा लिया जाएगा। जगत सेठ मातृभूमि को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराना चाहते थे इसलिए उन्होंने बादशाह की भरपूर मदद की ताकि एक विशाल सेना तैयार कर अंग्रेजों से लोहा ले सके।
उनकी संपत्ति और दानवीरता की खबर अंग्रेजों को लगी तब अंग्रेज अधिकारी उनसे मिलने गए और निवेदन करने लगे कि उन्हें भी आर्थिक सहायता की जरूरत है जिससे वह अपने सैनिकों और दिल्ली वालों की मदद कर सके लेकिन सेठ जी ने उन्हें यह कहकर वापस लौटादिया कि तुम लोग हमारे देश पर कब्जा कर बैठे हों और हमारे भाई-बहनों पर अत्याचार कर रहे हो हम तुम्हारी किसी भी प्रकार से मदद नहीं करेंगे।
कहा जाता है कि क्रांतिकारियों के द्वारा मेरठ में क्रांति का झंडा खड़ा करने में सेठ जी का प्रमुख हाथ था।
१८५७ की क्रांति में एक तरफ सेठ जी ने अपनी बहुत सी संपत्ति बादशाह को दें दी साथ में ही उन्होंने भी इस क्रांति में बढ़ चढ़कर भाग लिया। उन्होंने अंग्रेजों की सेना में कार्यरत भारतीय सिपाहियों को आजादी का संदेश भेजा और उनकी भरपूर आर्थिक मदद करने का वादा भी किया। सेठ जी ने उस समय एक गुप्तचर विभाग भी बनवाया था जिससे अंग्रेजों और भारतीय देशद्रोहियों के बारे में सूचना मिलती रहें।
सेठ जी ने खुफिया विभाग के संगठन के माध्यम से सारे उत्तर भारत में जासूसों के माध्यम से अनेक सैनिक छावनियों से गुप्त संपर्क कर उनके राजाओं को साथ लेकर बहादुर शाह जफर की मदद करने को तैयार किया। सेठ जी की संगठन शक्ति को देखकर अंग्रेज शासन एवं अधिकारी भी हैरान हो गए थे। कुछ समय बाद अंग्रेजों ने दिल्ली पर पुनः कब्जा कर लिया।तब भी सेठ जी चुपचाप नहीं बैठें उन्होंने चांदनी चौक की दुकानों के आगे जगह-जगह जहर मिश्रित शराब की बोतलों की पेटियां लगवा दी जिसे अंग्रेजी सेना उससे प्यास बुझाती और वहीं ढेर हो जाती थी। उस समय भारत सहित पूरे यूरोप में उनके बारे में चर्चा होती थी कि उनके पास अकूत संपत्ति हैं वह मुगल बादशाह से भी धनी थे।
जल्दी ही अंग्रेजों को समझ में आ गया यदि भारत में लंबे समय तक शासन करना है तो सेठ राम दास जी जैसे भारतीयों का अंत करना बहुत जरूरी है। उन्होंने चालें चल कर सेठ जी को धोखे से पकड़ लिया और जिस तरह उन्हें मारा गया वह क्रूरता की मिसाल थीं। पहले उन्हें शिकारी कुत्तों से नुचवाया गया उसके बाद लहूलुहान कर घायल अवस्था में चांदनी चौक की कोतवाली के सामने फांसी पर लटका दिया था। हमारे देश का यह महान देश भक्त हंसते हंसते फांसी पर झूल गया और इतिहास में अपना नाम अमर कर गया।
भारतीय इतिहास में जगत सेठ श्री रामदास जी गुड़ वाला का नाम उनकी अकूत धन दौलत की वजह से नहीं बल्कि स्वतंत्रता संग्राम में अपना सर्वस्व न्योछावर करने की वजह से अमर हो गया । अफसोस आज यही भी है कि हमारे देश में उनके द्वारा किए गए योगदान के बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं। क्या हम सेठ रामदास जी जैसे भामाशाह और इन जैसे तमाम क्रांतिकारियों की शहादत का कर्ज कभी चुका पाएंगे? कभी भी नहीं!
हम आने वाली पीढ़ियों को उनकी दानवीरता, बहादुरी की गाथाएं तो बता सकते हैं।
कैफे सोशल जगत सेठ श्री रामदास जी गुड़वाला के स्वतंत्रता संग्राम में किये गए अविस्मरणीय योगदान को याद करते हुए शत शत नमन करता है।