गुमनाम नायक – पार्वती गिरी
भारत को अंग्रेजों से आजाद कराने में हमारे अनगिनत स्वतंत्रता सेनानियों ने बढ़-चढ़कर भाग लेते हुए, तमाम तरह की यातनाओं को सहते हुए अपने प्राणों को भी न्यौछावर कर दिया था।इस स्वतंत्रता महायज्ञ में हमारे वीर, वीरांगनाओं के साथ साथ कम उम्र के बच्चों, बच्चियों ने भी अपना योगदान दिया था। इनमें से कुछ लोग ऐसे भी हुऐ जिन्होंने आजादी के बाद भी अपने देश के लिए अपना जीवन सामाजिक कार्यों में लगा दिया। ऐसी एक वीरांगना थी पार्वती गिरी।
पार्वती गिरी उन खुशनसीबों में से एक थी जिन्होंने भारत माता को गुलामी की जंजीरों से आजाद होते हुए अपनी आंखों से देखा था। पार्वती जी का जन्म 19 जनवरी 1926 को पश्चिमी ओडिशा के संबलपुर जिले में हुआ था। आपके पिता का नाम श्री धनंजय गिरी था। आपके पिता और चाचा श्री रामचंद्र गिरी स्वतंत्रता सेनानी थे,जो महात्मा गांधी द्वारा चलाए जा रहे आंदोलनों से जुड़े हुए थे। घर में आए दिन इन स्वतंत्रता सेनानियों की बैठक होती थी इसका प्रभाव आप पर बचपन से ही पड़ने लगा। मात्रभूमि के प्रति कुछ कर गुजरने की भावना जागृत हो गई। आप जब केवल 11 साल की थी तभी से गांधी जी की अगुवाई वाले आंदोलन से जुड़ गयी।जब आपकी उम्र 16 वर्ष थी तब से ही अंग्रेजी शासन के विरुद्ध आवाज उठाने और सरकार विरोधी नारे लगाने लग गई तथा स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लेने लगी।इन आंदोलनों के लिए आपको कई बार गिरफ्तार किया गया लेकिन हर बार पुलिस को छोड़ना पड़ा क्योंकि तब आप नावालिग थी।इन सबके बावजूद आप निरंतर आंदोलन करती रही। बरगर में एस डी ओ के कार्यालय पर हमला करने पर फिर से गिरफ्तार कर लिया।इस बार दो साल की कठोर कारावास की सजा मिली।1942 के बाद पार्वती जी ने देश में घूम घूमकर अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो आंदोलन अभियान चलाया।
आखिर कार जब देश को स्वतंत्रता मिली तब आजादी को अपनी आंखों से देखा। सन् 1950 में इलाहाबाद के प्रयाग महिला विद्यापीठ से अपनी शिक्षा पूरी की। स्वतंत्रता मिलने के बाद भी आपका लगाव देश व समाज की सेवा में लगा रहा। अब वह सामाजिक कार्यों के माध्यम से सेवा करने लग गई। देश में फैली हुई कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाने लगी। अनाथ बच्चों के लिए अनाथ आश्रम व वीर सिंह गढ़ में सेतरा बाल निकेतन आश्रम खोला। आपने बरगढ, पदमपुर, संबलपुर आदि जगहों पर ग्रामीणों को खादी कातना और बुनना सिखाया।संबलपुर जिले के गांवों में जा जाकर लोगों के स्वास्थ्य और स्वच्छता के लिए कार्य करने लगी। वाकी का जीवन इन्ही कार्यों के लिए समर्पित कर दिया। आपके कार्यों के चलते आपको सब पश्चिमी ओडिशा का मदर टेरेसा के रूप में मानने लगे।
संबलपुर विश्व विद्यालय ने आपको डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया। सन् 2016 में सरकार ने आपके सम्मान में मेगा लिफ्ट सिंचाई योजना का नाम पार्वती गिरी रखा। अपने जीवन को देश और समाज के लिए समर्पित करने वाली स्वतंत्रता सेनानी ने 17 अगस्त 1995 को अंतिम सांस ली।
.
कैफे सोशल ऐसी देशभक्त और समाज सेवी महान स्वतंत्रता सेनानी के चरणों में नमन करते हुए विनम्र श्रद्धांजली अर्पित करता है।
संजीव जैन