गरम हवाएँ –
हवाएँ बेहद गर्म हैं
चल रही है लू
कई बरसों से
सूख गए हैं तालाब
पोखर तड़ाग
मछलियाँ मर रही
छटपटा पटपटा कर
परिंदे पाँख घिसट
तोड़ रहे हैं दम
बदहवास मवेशी
दाग़ कर छोड़े गए
न एक बूँद पानी
न एक घूँट सांत्वना
न एक कण क्षमा
न एक पल करुणा
न एक पत्र छाँह
आबोहवा ऐसी
जैसे मर गया हो ईश्वर
जिसकी लाश
नोंच रहे हों गिद्ध कौए
भर रही हो सड़ाँध
पूरी क़ायनात में
पवित्र ग्रंथों को
चाल गए हैं दीमक
और काग़ज़ी भूसे के
ढेर पर बैठ
ख़ुद को घोषित कर दिया
ईश्वर
दीमकों ने
दंभ घृणा क्रूरता
पाखंड नीचता
स्थापित हो रहे
जीवनमूल्यों की जगह
सत्य करुणा दया
सौहार्द्र सज्जनता
घोर अपराध हैं
मूर्खता के अंधड़ में
विवेक और प्रज्ञा
सूखे पत्तों की तरह
उड़कर गड़ रहे हैं
निरीह आँखों में
किसके पाप
उतरे हैं आसमान से
सोचने का समय नहीं है
फ़िलहाल
बचाने हैं कुछ बीज
तेज़ झुलसती लू से
और करनी है प्रतीक्षा
बादलों की
ख़ुद को गलाकर
भाप बनाकर
उठना है आसमान में
जहाँ से उतरा है पाप
बरसना है वहीं से
धारासार
लू का जवाब
बारिश ही हो सकती है
आग नहीं
नफ़रत की आग तो
बिलकुल भी नहीं
-हूबनाथ