केदार का तिलक
केदार का तिलक
तेज बारिश की बूंदे कहीं अपनी थिरकन से मन को लय पर नाचने के लिए मजबूर कर देती हैं तो कहीं अस्त -व्यस्तता पसार देती हैं, यहाँ दूसरी स्थिति पर ज्यादा जोर था ।कैसे पहुंचेंगे ऊपर कोई साधन नहीं भीड़ ही भीड़, घर के बाकी सदस्यों को तो ऊपर जाने के लिए कंडिया मिल गई थी पर श्यामली प्रतीक्षारत थी कि कोई घोड़ा या कोई खाली कंडिया मिल जाए तो वह भी जल्दी से ऊपर पहुंच सके पहाड़ की चोटी पर जहां बैठे हैं ‘केदारनाथ’ ।
इतनी भीड़ देखकर लगा कि क्या आध्यात्मिक मनन- चिंतन यहां हो सकता है ! ईश्वर तो एकांत का स्वरूप है ,बुद्धि का विलास- वैभव अलग है पर श्रद्धा -भक्ति में जो आनंद है, रस है वह नितांत अलग ….।बौद्धिक विलास इसे अंधश्रद्धा के चश्मे से देखता है पर भक्ति विश्वास को जन्म देती है ,जीवन के प्रति आस्था को उपजाती है, केदारनाथ उसी श्रद्धा और विश्वास की उपज है । ….विचारों की इन्हीं उठती -गिरती तरंगों के बीच एक गोरा लंबा मुस्कुराता हुआ पहाड़ी चेहरा सामने आ खड़ा हुआ, श्यामली की विचार तंद्रा भंग हुई ।
“कंडिया में बैठोगी श्यामली ! ” सौरभ ने बड़े प्यार से पूछा। श्यामली को तो हां कहना ही था, आखिर बारिश और प्रतीक्षा से वह भी उकता चुकी थी। उकड़ू होकर किसी तरह श्यामली कंडिया में बैठी या कहूं कि उस लड़के की पीठ पर टंगी कंडिया में लद गई । ऊपर कुछ भी नहीं दिख रहा था क्योंकि कंडिया ऊपर पॉलिथीन से ढकी हुई थी, बारिश जो हो रही थी। प्रकृति का आनंद उस कंडिया के अंदर सिमट कर रह गया । कंडिया में बैठे-बैठे श्यामली की सोचने की प्रक्रिया फिर शुरू हो गई…’इतना कष्ट उठा कर जाने की क्या जरूरत ….भगवान भी कहां-कहां डेरा जमा कर बैठ जाते हैं और हम भी तो दर्शन के लिए दौड़े-दौड़े जाते हैं मानो सारा का सारा पुण्य इसी में मिलेगा ….भगवान तो सभी जगह हैं तो फिर यह आडंबर क्यों ..?’ श्यामली के मन में विचारों की लहरें उठापटक कर रही थीं। लगभग बीस साल पहले भी श्यामली केदारनाथ आई थी ,बारहवी में रही होगी , तब पैदल ही चढ़ाई की थी। रामबाड़ा तक का रास्ता पता ही नहीं चला था लेकिन उसके बाद यात्रा अत्यंत कठिन हो चली थी तब भी यही प्रश्न उठ गया था ‘ भगवान इतना ऊपर जाकर क्यों बैठ गए?’ उस समय बारिश में वह गिर भी पड़ी थी, अपनों से बिछड़ दी गई थी ,गिरने से हाथों में सूजन भी आ गई थी और तब केदारनाथ के दो चाय वाले लड़कों ने हाथ में तेल लगाते हुए कहा था “केदार बाबा सब ठीक करेंगे ” । उनकी सेवा परायणता, निश्छलता देखकर श्यामली की आंखें छलछला आईं थीं । उनकी केदारनाथ के प्रति आस्था श्यामली को भी विश्वास से भर रही थी । “दीदी !एक बात कहूं उस कंडिया वाले लड़के ने गला खाखारते हुए पूछा ।
श्यामा वर्तमान में आ गई” हां ,बोलो न!’
“दीदी! आप बहुत भारी हो उस कंडिया वाले लड़के ने हंसते हुए कहा ।श्यामली उस लड़के की स्पष्टता पर जोर से हंस पड़ी । यों वह मोटे लोगों की श्रेणी में नहीं आती पर पतली भी नहीं है ,यह श्यामा भली-भांति जानती थी “…..तो उतर जाऊं “श्यामली ने मुस्कुराते हुए कहा ।
“दीदी! थोड़ी देर के लिए बस….” वह कंडिया वाला लड़का हांफते हुए बोलता जा रहा था । श्यामली और वह लड़का एक दूसरे का चेहरा नहीं देख पा रहे थे ,दोनों की पीठ आमने-सामने थी लेकिन भाव एक दूसरे के बखूबी समझ पा रहे थे….. भाव तो अनुभवगम्य है उसी प्रकार ईश्वर पर आस्था भी अनुभूति का एक रूप है ,कर्मकांड उस अनुभूति में आनंद मनाने की प्रक्रिया।
श्यामली कंडिया से उतर पैदल चढ़ाई करने लगी ।
“दीदी ! लाओ अपना बैग दे दो “कंडिया वाले ने कहा
“नहीं !नहीं ! मैं अपना बैग लेकर कर चल सकती हूं” श्यामली ने कुछ संदेह के साथ कहा ।
” नहीं दीदी! हमें तो आदत है सामान के साथ लोगों को कंडिया में बिठाकर चलने की पर आपको थोड़ा परेसानी होगा” कंडिया वाला लड़का अपने पहाड़ी लहजे के साथ बोलता जा रहा था । ” ..मैं तो हर साल यहां आता हूं केदार बाबा का दर्सन भी होता है और खूब कमाई भी …” श्यामली पैदल चढ़ाई चढ़ते हुए उसकी बातें सुनती जा रही थी । यों श्यामली सामान्यतः जल्दी किसी से घुलती -मिलती नहीं पर उस कंडिया वाले की निश्छलता देखकर पूछ लिया –
“कहां के रहने वाले हो तुम ?”
” जी दीदी ! पिथौरागढ से आया हूं “
“घर में कौन-कौन है ?”
“दीदी! घर में मां – बाबा और एक बहन है।”
” पढ़ाई नहीं करते तुम !”
” करता हूं न दीदी ! बारहवीं की परीक्सा दी है ….पर कमाई भी करनी है, पिछले साल पचास हज़ार की कमाई की थी ”
“अरे वाह! ..” श्यामली कुछ आगे बोलती उससे पहले ही वह बोल पड़ा ” दीदी! अबकी न मैं कमाई करके घर जाऊंगा तो पुलिस में भर्ती होऊंगा।” बोलते हुए उसके मुख पर गरिमापूर्ण मुस्कान छा गयी थी।
श्यामली थक गई थी,वह एक चाय वाले के पास बैठकर सुस्ताने लगी, वहीं श्यामली के बच्चे भी मिल गए जो आगे की कंडिया में बैठे थे और परिवार के अन्य सदस्य भी मिल गए। बारिश अब भी मद्धम-मद्धम हो रही थी, ऐसे में गर्म चाय ने मानो जान डाल दी। श्यामली ने बाकी कंडिया वालों को भी चाय पिला दी । चाय पीते- पीते श्यामली ने अपने कंडिया वाले लड़के का चेहरा देखा ‘ गोरा ,छोटी -छोटी ,आंखें सौम्य सहज मुस्कान और कद काठी से लंबा ‘ …चाय पीते हुए श्यामली ने उससे पूछा
“तुम्हारा नाम क्या है?”
” तिलक” अपनी सौम्य निश्छल ,मुस्कान बिखेरते हुए उसने कहा
” बहुत सुंदर नाम…. केदार का तिलक ” …केदार की ऊंची ऊंची पहाड़ियों के उत्तंग शिखर के माथे पर लगा हुआ मानो कोई तिलक अपनी दिव्यता और पवित्रता के साथ “। जहां अकेले चलने भर से पैर थकने लगते हैं ,हम हांफने लगते हैं वही तिलक जैसे लोगों को अपनी पीठ पर लादकर सच्चाई ,ईमानदारी और परिश्रम के साथ केदारनाथ के दर्शन करवाते हैं ….सच पूछो तो असली पुण्य के अधिकारी तो यही हैं ‘ श्यामली के मन से पावन भाव की गंगा निसृत हो चली थी।
चाय पीने के बाद श्यामली ,बच्चे और परिवार के अन्य सदस्य कंडिया पर सवार होकर चल पड़े
” मैं अब भारी तो नहीं लग रही तुम्हे !” श्यामा ने मुंह बिचकाते हुए पूछा
” दीदी ! आप भारी तो हो” तिलक यों ही सहज भाव से बोल पड़ा । श्यामली ने आसपास जाती हुई कंडिया में बैठे लोगों को देखा जिसमें उससे ज्यादा मोटे लोग थे ……श्यामली को थोड़ा गुस्सा आ गया था ।
शाम होते-होते तिलक ने केदारनाथ पहुंचा दिया। वहां
अत्यधिक ठंडक थी । केदारनाथ में रहने के लिए अनेक धर्मशालाएं बन गयीं थी ,अनेक दुकानें स्थापित हो गई थीं। पहले से अधिक बदला हुआ था सबकुछ । केदारनाथ में पैर गले जा रहे थे । सांस लेने में भी तकलीफ हो रही थी पर विश्वास मनुष्य को हर कष्ट से लड़ने की क्षमता देता है । “दीदी! केदार बाबा के दर्सन अच्छे से करना ,मैं तो लगभग रोज ही करता हूं” तिलक चहक कर बोला ।श्यामली मुस्कुरा उठी ।
रात को ही सौरभ , बच्चे, उसके माता-पिता सबके साथ श्यामली ने केदारनाथ के दर्शन किए, मन अभिभूत हो गया । चारों ओर पहाड़ियों से घिरा केदारनाथ का मंदिर अलौकिकता का निदर्शन कर रहा था । ईश्वर साधारण आंखों से नहीं दिखता, उसके लिए श्रद्धा, भावुकता ,सहजता से भरी दृष्टि चाहिए जैसे उस तिलक की छोटी-छोटी आंखों में दिखाई पड़ती थी।
केदारनाथ में बहुत भीड़ दिख रही थी इतनी भीड़ पहले नहीं हुआ करती थी ,वहां कई दुकानें खुल गई थी चप्पल की भी। श्यामली की बेटी की चप्पल गिर गई थी ,श्यामली ने तुरंत वहां से चप्पल खरीदी। वहाँ जरूरत की लगभग सभी चीजें मौजूद थीं ।
केदारनाथ मंदिर को चढ़ती सीढ़ियां, ऊपर विशाल नंदी की प्रतिमा फिर अंदर गर्भ गृह में केदारनाथ का लिंग… रात्रि में केदारनाथ पूर्णतः सुसज्जित थे । श्यामली ने सपरिवार दर्शन किया फिर वे सब वापस धर्मशाला आगए । धर्मशाला के पंडो ने और सेवकों ने गरम- गरम खाना खिलाया ।कच्चे खाने में संभवत उनका अपार स्नेह मिश्रित था इसलिए खाना सबको बहुत स्वादिष्ट लगा। तिलक भी वहां रुका था।
” आज अचानक तेज बारिश कैसे शुरू हो गई? सौरभ बोले
“भैया! मुंबई का फैसन और केदारनाथ के मौसम के बारे में कोई कुछ नहीं कह सकता” तिलक ने अलसाते हुए कहा। सब उसकी बात सुनकर हंस पड़े ।
रात भर सांस लेने में सभी को कठिनाई होती रही। कपूर सूंघ -सूंघ कर सभी रात में सोने की कोशिश करते रहे । सुबह आसमान साफ था । बर्फ से ढकी श्वेत उज्जवल पहाड़ियां ,ऊपर झांकता हुआ नीला आसमान और उन सबके बीच केदारनाथ का मंदिर …..इस मनोहारी दृश्य को मानो श्यामली भर लेना चाहती थी । पिछली बार केदारनाथ के पीछे की हिमाच्छादित पहाड़ियां सूर्य की किरणों से सुनहरी दिख रही थी, श्यामा ने उस स्वर्गिक दृश्य को भी अपनी आंखों में कैद कर लिया था और आज यह दृश्य ……..तिलक की बात याद हो आई ‘ मुंबई का फैसन और केदारनाथ का मौसम कुछ कहा नहीं जा सकता’ ।
चाय पीकर पवन स्नान कर क्योंकि पानी से नहाने की हिम्मत किसी की नहीं थी , सब अपनी अपनी कंडिया में सवार होकर चल पड़े । सूर्य की किरणों ने थोड़ी राहत दी । सौरभ और श्यामली के पिता घोड़े पर थे । श्यामली के बच्चे, मां ,सासु मां धूप के कारण थोड़ा अच्छा अनुभव कर रहे थे ।
“दीदी ! आओ बैठो ” तिलक ने अपने चेहरे पर दो छोटी- छोटी आंखों को सिकोड़ते हुए कहा
“भारी तो नहीं लगूंगी मैं !” श्यामली ने भी चुटकी ली
” दीदी ! भारी तो आप हो ” तिलक जोर से हंस पड़ा श्यामली का चेहरा हल्के गुस्से से भर गया था ।आखिर वह भी एक स्त्री है और उसके सामने कोई उसकी बुराई करे…!
खैर ! श्यामली कंडिया में बैठ गई। ऊपर स्वच्छ भरपूर नीला आकाश, बीच-बीच में धवल बादल, पहाड़ ,ऊपर हरे- भरे पेड़ और उनके बीच में एक सफेद बर्फ से ढकी चोटी और उस पर पड़ती हुई सूर्य की किरणें..अद्भुत अवर्णनीय दृश्य! प्रकृति की छटा श्यामा को मंत्रमुग्ध किए हुई थी । थोड़ा ही चले थे कि श्यामली को लगा कि वह तिलक को भारी लग रही है और वह पहाड़ से पैदल तो बिना किसी कठिनाई के उतर ही सकती है…
” तिलक ! मुझे उतार दो मैं पैदल ही चलूंगी ”
“अरे नहीं दीदी ! मैं आराम से आपको लिए हूं”
” नहीं- नहीं उतार दो मुझे” श्यामली जिद करके उतर गई
“अच्छा दीदी! अपना बैग दे दो ” तिलक ने अपनी सहज मुस्कान बिखेरते हुए कहा। श्यामली ने इस बार बेझिझक अपना बैग तिलक को दे दिया क्योंकि इस बार विश्वास के बंधन ने उसे बांध दिया था।
“दीदी !यहां केदार बाबा सबकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं, सबका घर परिवार केदार नाथ बाबा के आशीर्वाद से चलता है, मैं तो यहां हर बार आता हूं ” तिलक बोलता जा रहा था ।
“पढ़ाई भी करो” श्यामली अपने शिक्षक भाव- भंगिमा को धारण करते हुए बोली
” पढ़ता हूं न दीदी ! यहां से एक डेढ़ महीने के बाद जाकर पढता ही हूँ “तिलक कुछ गंभीर हो चला था ।
श्यामली पैदल उतरते -उतरते भी थकने लग गई थी ,तिलक ने यह भांप लिया था ।
” अब बैठ जाओ दीदी ! मैं जल्दी से आपको गौरीकुंड पहुंचा दूंगा ”
कंडिया में बैठते ही श्यामली की पलकें झुकने लगी। आगे- पीछे उसकी प्यारे- प्यारे बच्चे मां ,सासू मां भी थी। श्यामली को नींद आ गई ,जब आंख खुली तो नीचे गौरीकुंड में थी।
” दीदी ! उतरो आ गया गौरीकुंड” तिलक ने अपनी चिर-परिचित मुस्कान के साथ कहा। हां अब वह मुस्कान श्यामली के लिए चिर परिचित ही थी। श्यामली कसमसाते हुए कंडिया से उतरी और तिलक को पैसे पकड़ाए।
” दीदी! फिर आना” तिलक ने पैसे को सर पर लगाते हुए कहा । श्यामली मुस्कुरा दी ,उसका मन किया कि तिलक की फोटो खींच ले पर सोचती ही रह गई लेकिन तिलक की छवि जो श्यामली की आंखों में बस गई थी वह फोटो से अधिक सजीव और जीवंत थी । तिलक अपनी कंडिया पीठ पर लादकर हंसता -मुस्कुराता अपनी धुन में मस्त अपनी राह हो चला । श्यामली के मन में आया कि जोर से चिल्लाए ‘ ए कांचा……’ पर यह आवाज उसके भीतर ही सिमट कर रह गयी ।
श्यामली और उसका परिवार केदारनाथ के बाद बद्रीनाथ का दर्शन कर कृतार्थ हो अपने गंतव्य की ओर प्रस्थान कर गए ।
घर पहुंचकर श्यामली ने केदारनाथ की यात्रा को सहेजते हुए धीरे-धीरे बिखरे घर को व्यवस्थित करना शुरू कर दिया । सौरभ अपने ऑफिस के चक्कर से घिर गए श्यामली का भी कॉलेज खुल गया ,बच्चों के स्कूल शुरू हो गए । सब कुछ नियमित दिनचर्या में सिमट गया ।बीच-बीच में केदारनाथ की कठोर यात्रा और तिलक का चेहरा यादों के झरोखों से झांक जाते ‘दीदी ! आप बहुत भारी हो ……..’
फिर एक दिन ऐसा लगा मानो सहेजा हुआ सब बिखर गया । एक स्तब्धता और शून्यता से मन- मस्तिष्क भर गय….. केदारनाथ में भयंकर तबाही…. मंदिर को छोड़कर सब ध्वस्त ……सामने सामने घर मकान पानी में गिरते जा रहे थे …..बाढ़ ,भूस्खलन से सब कुछ नष्ट भ्रष्ट हो चुका था,….. 16 जून की वह भयंकर त्रासदी टीवी पर देख- देख कर श्यामली और सौरभ की आंखों से आंसू छलके पड़ रहे थे……अभी एक सप्ताह पहले ही वे सब वहीं थे ……केदारनाथ का दर्शन ,वह धर्मशाला, रामबाड़ा की चाय, गौरी कुंड का सनान ,केदारनाथ की वह चप्पल की दुकान जहां से बेटी के लिए चप्पले खरीदी थी…… और वह मिठाईवाला जहां सुबह-सुबह गरम जलेबी खाई थी …..सब ध्वस्त कुछ भी शेष नहीं….. यह कैसा मंजर …..हजारों लोग मारे गए ,कुछ पानी के बहाव के साथ बह गया तो कोई बिना मां का….. तो किसी का बच्चा नहीं ,कुछ लोग आपदा में फंसकर भूख -प्यास से दम तोड़ रहे ……..हम वहां होते तो यह कल्पना कर श्यामली का मन सिहरा जा रहा था,. …. .. श्यामली का मन चीत्कार कर उठा ‘ हे ईश्वर! ऐसा तांडव क्यों ?? हम पर तो कृपा की. … पर उन्हें बढ़कर तुमने क्यों नहीं बचाया…. वह भी तो तुम्हारे दर्शन को गए थे। हे केदारनाथ ! तुम वहां पर बैठे बैठे यह दर्दनाक नजारा देखते रहे …..’ श्यामली का हृदय छलनी हुआ जा रहा था।
हर दिन टीवी पर केदारनाथ का भयावह दृश्य मन को आतंकित किये रहता ।श्यामली के बच्चे भी यह सब देख-देखकर रोने लगते ।
केदारनाथ के आगे जो विशाल नंदी की प्रतिमा थी वह धंसकर आधी रह गई थी ,मंदिर की सीढ़ियां भी मलबे में दब चुकी थीं। गौरीकुंड का रास्ता जहां घोड़े और कंडिया वाले रहते थे ,एक विशाल गड्ढे में बदल गया था । श्यामली के मन में आस्था और विश्वास डगमगाने से लग गए …’आखिर इतनी कठिनाई से सब ऊपर चढ़कर तुम्हारे दर्शन के लिए जाएं …..और तुम उन्हे बचा भी न सके ,तुमने आगे बढ़कर अपने हाथों से उन्हें थाम क्यों नहीं लिया’…… अचानक श्यामली के आगे तिलक का चेहरा घूम गया …..’तिलक बचा होगा न… वह तो हर साल केदारनाथ जाता है, केदारनाथ का आशीर्वाद और सैकड़ों लोगों की दुआएं हैं उसके साथ….!’
केदारनाथ की उस भयंकर त्रासदी में लोगों को बचाने के लिए सेना के अनेक जवान अपनी जान की परवाह किए बिना कूद पड़े, उन्हें देखकर श्यामली की आंखें भर आईं और उसकी दृष्टि आसमान की ओर टिक गयी . .कुछ ढूंढने की कोशिश में ।
उस त्रासदी के पीछे अनेक कारण सामने आने लगे ।आवश्यकता से अधिक लोगों का केदारनाथ में होना, उस क्षेत्र में सत्तर से अधिक बांधो का बनना ,आवश्यकता से अधिक इमारतों का होना, प्राकृतिक संपदा का अत्यधिक दोहन ….इन सब ने प्रकृति को असंतुलित कर दिया और उन्हीं सब का दुष्परिणाम थी केदारनाथ की हृदय विदारक त्रासदी …….श्यामली यह सब देखते हुए जानते हुए भी ईश्वर को पूर्णतया निर्दोष नहीं साबित कर पा रही थी, बहुत गुस्सा भर गया था श्यामली के भीतर भगवान के लिए ….लेकिन उसी सर्वशक्तिमान ईश्वर के आगे गुस्से से वह रो-रोकर मन ही मन कह रही थी’ हे ईश्वर क्यों किया तुमने …क्यों किया …आखिर क्यों भगवान ….आखिर क्यों ,उस प्रार्थना में यह भी स्वर उभरा ‘तिलक ठीक हो ‘ ।
इस घटना को पूरे एक साल बीत गए। ” श्यामली!देखो जल्दी आओ” सौरभ ने श्यामली को पूरी आवाज से बुलाया। श्यामली टीवी देखकर अवाक रह गई ,केदारनाथ पूरी तरह सज -धज कर तैयार था , तमाम फूलों से सजा था मंदिर। उस त्रासदी में तो सब कुछ नष्ट भ्रष्ट हो गया था पर शेष रहा था आस्था का प्रतीक केदारनाथ । हजारों तीर्थयात्री तैयार थे केदारनाथ के दर्शन के लिए। इस बार उन्हें एक साथ हजार -हजार के समूह में भेजा जा रहा था । वास्तव में होना भी ऐसा ही चाहिए था जिससे प्रकृति का संतुलन न बिगड़े नहीं तो यूं ही प्रकृति अपना विकराल रूप दिखाती है। श्यामली के मन की परतें खुलती जा रही थी ,आध्यात्मिकता जीवन में बहुत जरूरी है पर उसमें विज्ञान का भी समन्वय होना चाहिए इन दोनों के ही समन्वय से आस्था का जन्म होता है और आस्था से जीवन का इसलिए पिछले वर्ष मृत्यु का तांडव देखने के बाद भी हजारों लोग केदार बाबा के दर्शन के लिए तत्पर थे अपार जीवनी शक्ति और ऊर्जा के साथ, उसी विश्वास की गूंज में एक आवाज श्यामली के मन में गूंजी “दीदी! आओ बैठो पर आप बहुत भारी हो ” …… हां केदार का तिलक होगा जरूर होगा ।
लेखिका
डॉ जया आनंद
प्रवक्ता, स्वतंत्र लेखन
प्रवक्ता (सीएचएम कॉलेज ,मुम्बई)
स्वतंत्र लेखन -विवध भारती, मुम्बई आकाशवाणी,दिल्ली आकाशवाणी, लखनऊ दूरदर्शन, अहा!जिंदगी, समावर्तन, पुरवाई, अभिदेशक, सोच- विचार,, अट्टहास, हिन्दुस्तानी ज़बान, रचना उत्सव, विश्वगाथा,अटूट बंधन,अरुणोदय ,परिवर्तन, हस्ताक्षर,साहित्यिकडॉट कॉम ,matrubharti, प्रतिलिपि ,हिंदुस्तान टाइम्स,पंजाब केसरी आदि में रचनाओं का प्रकाशन
अनुवाद -‘तथास्तु’ पुस्तक (गांधी पर आधारित) ,संस्थापक – विहंग एक साहित्यिक उड़ान (हिंदी मराठी भाषा संवर्धनाय)।
प्रकाशित साझा उपन्यास– हाशिये का हक
प्रकाशित साझा कहानी संग्रह– ऑरेंज बार पिघलती रही
प्रकाशित साझा अनूदित कहानी संग्रह- The Soup
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