हिंदी प्रतियोगिता
कहानी – हत्यारा कौन?
हत्यारा कौन?
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दिवाली का दिन था। सभी घर दियों की रोशनी से जगमग चांद सितारों की भांति चमक रहे थे।लेकिन पास में एक घर ऐसा भी था जहां एक अभागन के ममतत्व का दिया बुझ चुका था। उसका चांद सितारा उसका राजकुमार उस दिन हमेशा के लिए चला गया था।नन्हीं किलकारियों की गूंज पटाखों के शोर तले दब गई थी। तपता हुआ शरीर ठंडा पड़ गया था और शांति अपनें गोद में लिए बच्चे को सुन्न अवस्था में बैठी थी।
डेढ़ वर्ष पहले शांति के खुशी का ठिकाना न था जब उसने अमित से प्रेम विवाह किया था। कुछ वर्षो का प्रेम ढेर सारी उम्मीदों की गठरी लेकर भविष्य की राह तलासने निकल पड़ा था। प्रेम विवाह अपने जन्म से ही विरोध का सामना करता रहा है। विरोध और भी तीव्र हो जाता है जब दोनों भिन्न जाति के हों। शांति और अमित के साथ भी ऐसा ही हुआ घर परिवार सब त्यागना पड़ा। समाज का संतुलन बिगड़ने से बच गया। समाज पर जो बोझ था वह थोड़ा हल्का हुआ। किसी ने सहारा नहीं दिया। अंत में बड़ी बहन रूपा ने सहारा दिया और उस जरा से सहारे को पाकर शांति का जीवन संभलने लगा। संघर्ष और सफ़लता शायद दोनों ने एक साथ ही पैदा लिया था। अमित शांति से दूर काम की तलाश में जुटा रहा और अंततः काम पा ही गया । तनख्वाह कुछ पंद्रह हजार महीने की थी। पांच हजार एडवांस अमित के हाथों में था। फ़ोन से शांति को सूचित किया तो बेचारी खुशी से रो पड़ी। सोचा कि मां और पिता से बात करे लेकिन कड़वाहट ने जैसे उन्हें जड़ बना दिया था। शांति ने पूछा – दीदी! क्या सच में मैं उनके लिए मर गई हूं?
रूपा – पता नहीं रे !
शांति – लेकिन मुझे पता है। वे लोग आपसे भी बात नहीं करते है। हम सबको दुश्मन समझते है। मैं अब आपको और कष्ट नहीं दे सकती। कल ही हम चले जायेंगे।
( २)
सबेरे अमित और शांति ने वहा से विदा लिया। थोड़ी सी सफलता ने उनके कदमों में उमंग पैदा कर दी थी। कुछ ही पल में रूपा के आंखों से ओझल हो गए। प्रेम अपना आकार लेने वाला था। अब किसी का भय नहीं था। दोनो ने अपने सुखद अनुभव को याद करते हुए पूरा सफ़र तय किया। अपने नए ठौर पर पहुंचकर उन्होंने चैन की सांस ली। घर छोटा था लेकिन दो लोग आराम से रह सकते थे।
शांति ने पूरा मोर्चा संभाला और सभी चीजों का बंदोबस्त कम से कम रुपए में किया। सुखद जीवन का आरंभ हो चुका था। दिन प्रति दिन उनका प्रेम प्रगाढ़ होता जा रहा था। एक दिन अमित काम से घर लौटा तो शांति हंसते हुए बोली – अपना मुंह मीठा कर लो, तुम बाप बनने वाले हो!
अमित – (खुशी से उछला) सच… तुम सच कह रही हो न?… वाह वाह!( नाचते हुए)…
शांति ( निराश भाव से) – सोचती हूं , मां को ख़बर कर दू।
अमित का उत्साह फीका पड़ गया । बोला – कोई फायदा नहीं होने वाला। हमारी बात कोई सुनने वाला नहीं है।
शांति ने खूब प्रयास किया लेकिन बच्चे की ख़बर सुनकर भी उनका दिल नहीं पिघला। शायद समाज के तानों से उनका दिल पत्थर हो गया था।
( ३)
शांति को बच्चा हुआ। अमित फूले न समाया । दोनों प्रेमी की यात्रा अपने शिखर पर थी। जीवन अपना जादू दिखा रहा था। सब कुछ वैसा ही हो रहा था जैसा उन्होंने सोचा था। घर खुशियों से भर गया था। सारा दिन शांति बच्चे में उलझी रहती थी। दो तीन महीने बड़े आराम से गुजरे। उन दिनों महामारी की खबरें सभी जगह से आ रही थी। लोग अपने काम-धाम सब बंद करके घर में दुबके थे। अमित जहां काम करता था वह कारखाना भी कुछ ही दिनों में बंद हो गया। सारे कर्मचारी और मजदूर बेरोजगार हो गई। शांति के जीवन में भूचाल सा आ गया। आर्थिक स्थिति ख़राब होने लगी।प्रेम अर्थ की कमी बर्दास्त ना कर सका। परिणाम यह हुआ कि सारे वादे धीरे – धीरे विवादों में परिवर्तित होने लगे। आर्थिक तंगी को देखते हुए अमित काम की तलाश में शहर से दूर चला गया। इधर इस दुर्दिन में भी अपनों ने साथ नहीं दिया। रूपा थोड़ा बहुत सहायता कर देते थी। लेकिन उसकी आर्थिक स्थिति भी कमज़ोर होने लगी। शांति ने भी उससे मदद लेना अस्वीकार कर दिया। अपना भविष्य उसे अंधकारमय लगने लगा था।…
(४)
अमित काम की तलाश करते करते थक गया लेकिन कहीं भी काम ना मिला। कुछ दिनों तक फ़ोन पर एक दूसरे
को सांत्वना देने का सिलसिला चलता रहा। लेकिन दुर्दिन का समय उसे भी निगल गया। अब तो अमित का कोई पता ठिकाना नहीं था।शांति बेचैन थी। लगातार बहते आसुओं से आंखे धसने लगे थे। इधर बच्चे को तीव्र ज्वर हो गया। सहारे के नाम पर बस रूपा का ही ख्याल आया। भागती हुई वहां गई। रूपा अकेली थी, हालत बिगड़ता देख पिता को टेलीफोन किया। दिवाली का दिन था पिता और उसका भाई जब वहां पहुंचे तब तक बहुत देर हो चुकी थी। शांति सुन्न बैठी थी। पिता को देखकर गला फाड़ कर रोने लगी।पिता करूणा दिखाने के बजाए क्रूरता से पेश आया। गालियां बकते हुए अमित के बारे में पूछने लगा। शांति कुछ जवाब न दे सकी। पिता और भाई आक्रोश में थे। लोग तरह- तरह के प्रश्न पूछेंगे ये चिंता उन्हें खाइए जा रही थी। थोड़ी देर बाद बच्चे को दफनाने के लिए शांति को लेकर कहीं चले गए। पिता अपनी भड़ास निकालते हुए शांति को जी भर के गालियां भी देते गए – बेहया ! तूने हमारा जीना मुस्किल कर दिया है। कुतिया ! तू भी क्यों नहीं मर गई।….
शांति तब भी अपने बच्चे को अपने हाथों में लेने का निष्फल प्रयास कर रही थी।….
(५)
कई दिनों तक उनका कोई समाचार नहीं मिला। कुछ दिनों तक आस-पड़ोस में तरह- तरह की बाते चलती रही। फिर हर बार की तरह लोग अपने-अपने कार्य-व्यापार में जुट गए। तकरीबन दस दिनों के बाद सुबह अखबार देखा तो सुन्न हो गया। खबर का शीर्षक कुछ यूं था: समाज को शर्मसार करने वाली वारदात:- पास के जंगल में नाले के पास एक बच्चे और थोड़ी दूरी पर एक औरत की मिली लाश ! ख़बर का सार यह था कि जंगल का चौकीदार निरीक्षण के दौरान देखा कि एक बच्चा कपड़े में लिपटा हुआ पड़ा था और कुछ दूर पर एक औरत जिसके शरीर को जंगली जानवरों ने नोंच डाला था। पुलिस की तहकीकात हुई और पता चला कि वे दोनों कोई और नहीं थे बल्कि शांति और उसका छः महीने का बच्चा ही था। पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आई , लिखा था :- The woman was Brutally raped and murdered.
आस- पड़ोस में ये खबर आग सी फैल गई। समाज में ये चिंतन का विषय हो गया। कुछ लोग बाप और भाई को पापी बता रहे थे।कोई कह रहा था:- जैसे को तैसा । बहुत से लोग लड़की और बच्चे की हत्या पर संवेदना व्यक्त करते हुए कह रहे थे कि :- घोर कलयुग है। युवा वर्ग की मंडली आपस में बाते कर रही थी ; एक ने हंसते हुए कहा :- उसका भाई चौकीदार बना हुआ था और बाप ने काम तमाम कर दिया। मंडली में ज़ोर के ठहाके लगे। औरतों की सभा में उनके चरित्र के बारे में चर्चाएं चल रही थी।…
यह सब सुनकर मैं मन ही मन अमित के बारे में सोचते हुए दुखी हो रहा था। सोच रहा था कोई पिता और भाई इतना क्रूर कैसे हो सकता है? अंतर्मन में एक ही प्रश्न बार बार घुमड़ रहा था कि – पापी कौन? हत्यारा कौन?
उसी समय कहीं किसी घर में बज रहा एक गीत सुनाई दिया-
ये इशांँ के दुश्मन समाजों की दुनिया
ये दौलत के भूखे रिवाजों की दुनिया
ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है….
थोड़ी देर तक इन्हीं सब बातों का मन में विचार आता रहा। फिर मैं भी औरों की तरह अपने कार्य-व्यापार में जुट गया…..
परिचय :-
नाम – अमरेंद्र कुमार
( छात्र)
पता : आरा बिहार।
मोबाइल नंबर – 7870505703