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एक रुका हुआ फैसला – चित्रगुप्त 

चित्रगुप्त 

अवैतनिक अधिकारी | धर्मराज के लेखपाल का हमनाम

हमारे समाज में भ्रष्टाचार भी ईश्वर की तरह सर्वव्यापी है फिर भी हर आदमी अपने आपको ईमानदार बोलता है | समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार और पाखंड पर चोट करती हुई व्यंग्य श्रृंखला का तीसरा भाग

गतांक से आगे…

अगली गवाही के लिए “पत्रकार आम्रपाली” अदालत में आए।

सूर्य पूर्व से उदय हो अपनी यात्रा पर निकल चुका था जैसे उसे भी मामा मारीच के मुकदमे को खत्म करने की जल्दी हो स्वप्नलोक के सभी अखबारों के मुख्य पृष्ठों तथा स्वप्नलोक के लोगों क की जुबान पर मामा मारीच का मुकदमा ही था। मामा मारीच के पक्ष में भी कुछ लोग अब कानाफूसी करने लगे थे, सभी लोग बेसब्री से न्यायालय खुलने और अगले गवाह का इंतजार कर रहे थे लोगों को अगले गवाह के बारे में बहुत जिज्ञासा थी क्योंकि उनका नाम न्यायालय में गुप्त रखने की प्रार्थना की गयी थी।

नियत समय पर न्यायमूर्ति धर्मराज एवं न्यायमूर्ति दक्ष ने न्यायालय में प्रवेश किया और अपना स्थान ग्रहण करने के साथ ही न्यायालय की कार्यवाही प्रारम्भ करने का और अगले गवाह को बुलाने का आदेश दिया।

जैसे ही गवाह का नाम पुकारा गया तो लोग हतप्रभ रह गए। अगला गवाह और कोई नहीं बल्कि प्रसिद्ध महिला पत्रकार आम्रपाली थी। जिनकी पहुँच शासन में काफी अंदर तक थी। अब लोगों को यकीन हो गया था कि मामा मारीच को सजा जरूर होगी, क्योंकि

आम्रपाली अपनी पहुँच के साथ साथ अपनी खोजी पत्रकारिता के लिए भी प्रसिद्ध थी। पत्रकार आम्रपाली ने गीता पर हाथ रख शपथ ली और मामा मारीच के प्रश्नों के उत्तर देने के लिए आगे आयी।

मामा मारीच: आपका नाम क्या है, तथा आप किस व्यवसाय से संबंध रखती है?

आम्रपाली: मेरा नाम आम्रपाली है, में पत्रकारिता में परास्नातक हूँ तथा पत्रकारिता ही मेरा व्यवसाय है।

मामा मारीच: इसका अर्थ यह हुआ कि पत्रकारिता ही आपकी रोजी रोटी का साधन है ? 

आम्रपाली (क्रोधित होते हुए): आप पत्रकारिता को रोजी रोटी का साधन कह कर इसका अपमान कर रहे हैं। यह लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है और बड़ा ही महान काम है। हम आम लोगों की तरह रोजी-रोटी के लिए काम नहीं करते बल्कि लोकतंत्र की रक्षा के लिए अपना जीवन भी दांव पर लगाते हैं और जनता को जागरूक भी करते हैं। 

मामा मारीच: क्षमा कीजिये मेरा किसी व्यवसाय को नीचा दिखाने का कोई उद्देश्य नहीं था। मैं सिर्फ यहीं जानना चाहता हूँ कि आप अपना भरण-पोषण कैसे करते हैं?

आम्रपाली: वो वो (हकलाते हुए) वो हमको वेतन मिलता है, इस काम के लिए। 

मामा मारीच: आम्रपाली जी भरण-पोषण और रोजी रोटी एक ही चीज है। खैर जाने दीजिए आप ये बताएं कि क्या आप कह सकती हैं कि आपने अपना काम पूरी ईमानदारी से किया है ?

आम्रपाली: जी ही मैंने अपने जीवन में पत्रकारिता का काम पूरी ईमानदारी से किया है।

मामा मारीच: आप एक बार फिर से सोच लीजिये क्योंकि ये मुकदमा मेरे ऊपर है ना कि आपके। इसलिए आप अभी भी यहाँ से जा सकती हैं।

आम्रपाली: नहीं मुझे अपने ऊपर पूरा विश्वास है और आप जैसे कैंसर को समाज से निकालने के लिए मैं आपके हर प्रश्न का उत्तर भी दूंगी और आपको बंदीगृह में भी भिजवाऊँगी।

मामा मारीच: में आपके साहस की प्रशंसा करता हूँ और में भी एक समय पर आपकी पत्रकारिता का प्रशंसक रहा हूँ। आपकी इसी पत्रकारिता के चलते ही तो आपको राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ है। है ना?

आम्रपाली: हाँ मुझे मेरी सेवा के लिए ‘कमलश्री’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

मामा मारीच: अद्भुत मैने सुना है कि एक समय राजतंत्र में आपका काफी दबदबा था, आपके कहने पर कोई भी खबर छपती भी थी और हटाई भी जाती थी क्या यह सही है ?

आम्रपाली: ऐसी कोई बात नहीं है जब आपका नाम किसी क्षेत्र में हो जाता है तो लोग सम्मानवश आपकी राय को मान लेते हैं, अब आप इसको दबदबा नहीं कह सकते है।

मामा मारीच: मैं समझता हूँ कि स्वप्नलोक के संविधान के अनुसार किसी अमात्य मंत्री का विभाग तय करना प्रमुख अमात्य (प्रधानमंत्री) का काम है और मैंने यह भी सुना है कि आप किसी भी अमात्य का विभाग तय कर सकती थीं। क्या ये शक्ति भी इसी सम्मान का परिणाम था?

आम्रपाली: नहीं ऐसा कुछ नहीं था वो तो यूँ ही थोड़े बहुत सम्बन्ध थे सत्ता दल के अध्यक्ष से

मामा मारीच: मैने सुना है कि आपका दूरभाष भी पकड़ा गया था. जिसमें आप किसी पद के लिए मोलभाव कर रही थी और बता रही। थी कि किसको कौन सा पद दिलवा सकती है?

आम्रपाली: (झेंपते हुए) वो दो, मैंने इस प्रकरण में ६ बड़े-बड़े पत्रकारों की परिषद् के सामने अपनी सफाई दे दी थी और उन्होंने मुझे बाइज्जत बरी भी कर दिया था। आपको इस बात को मानना पड़ेगा कि मैंने पत्रकार परिषद् का सामना किया था और ये काफी है लोकतंत्र के लिए।

मामा मारीच: (माननीय न्यायालय से) श्रीमान, आम्रपली जी की बात का संज्ञान लिया जाए।

मामा मारीच: जब दुर्लोक ने चोरी से स्वप्नलोक पर आक्रमण किया था तब आपने युद्धक्षेत्र से सीधा चित्र प्रसारण किया जिससे हमारे देश के सैनिकों को काफी नुकसान उठाना पड़ा था ?

आम्रपाली: वो मेरी पत्रकारिता का एक हिस्सा था।

मामा मारीच: जब दुर्लोक के १० आतंकियों ने मायानगरी पर हमला किया तब भी आपने सीधे चित्र दिखा कर आतंकियों के आकाओं की मदद की जिससे हमारे जवानों को नुकसान उठाना पड़ा।

आम्रपाली:  मैंने किसी भी कानून का कोई उल्लंघन नहीं किया। मेरे विरुद्ध किसी भी अधिकारी ने कोई शिकायत दर्ज की है क्या ? 

मामा मारीच: आप ने हिमनगर के आतंकी के मारे जाने पर भी उसकी तारीफ में कुछ लिखा था, सोचते हुए) वो क्या लिखा था….?

आम्रपाली: मैंने लिखा था कि वो आतंकी एक अध्यापक का बेटा था। तो क्या मैंने गलत लिखा, वो अध्यापक का बेटा था और हर घटना का एक मानवीय पहलू भी होता है, बस हमने उसी को लिखा या दिखाया तो इसमें क्या गलत है?

मामा मारीच: आपने कभी अपने जवानों के बारे में नहीं लिखा ?

आम्रपाली: मुझे क्या लिखना है और क्या नहीं ये मेरा अधिकार है। 

मामा मारीच: आप चुन चुन कर खबर लिखती हैं। खासकर तब अब आपको विदेशी पत्रकारों के लिए लिखना हो तो स्वप्नलोक की छवि को खराब करने वाली खबरों में अतिश्योक्ति अलंकार का काफी प्रयोग करती हैं। लेकिन विदेशों से आने वाली उन्हीं खबरों पर चुप्पी ऐसा क्यों?

आम्रपाली: में आपकी बात का जवाब देने के लिए बाध्य नहीं हूँ।

मामा मारीच: आपको जवाब देना पड़ेगा। 

आम्रपाली: आपको ऐसा लगता है क्या कि में सेना की गाया लिखूँगी तो मुझे अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार मिलेंगे ? मैं स्वप्नलोक के गुण गाऊँगी तो मुझे विदेशों में सम्मान मिलेगा? अगर आप ऐसा सोचते हैं तो ये आपकी भूल है।

 मामा मारीचः (माननीय न्यायालय से श्रीमान, आम्रपाली जी की आप ईमानदार कह सकते हैं क्या ?

इससे पहले न्यायालय कुछ बोलता, जनता की आवाज आने लगी “नहीं” “नहीं” “कभी भी नहीं’

न्यायमूर्ति धर्मराजः स्वप्नलोक में लोकतंत्र है और सबको बोलने और अपने व्यवसाय को करने की स्वतंत्रता है। लेकिन फिर भी हर स्वतंत्रता की एक मर्यादा भी होती है, खासकर उन लोगों से जो समाज के लिए प्रेरणा स्त्रोत होते हैं, और उनसे अपेक्षा की जाती है कि उनका व्यवहार उच्च हो ऐसी कोई भी स्वतंत्रता जिससे देश के सम्मान को ठेस लगे या फिर आतंकियों को मदद मिलती हो उसको ठीक नहीं ठहराया जा सकता है। इसलिए आम्रपाली के कुछ कार्यों को नैतिक रूप से सही नहीं ठहराया जा सकता है और मामा मारीच को इनके आचरण के आधार पर सजा नहीं दी सकती है।

इसके साथ ही न्यायालय ने कार्यवाही को भोजनावकाश तक स्थगित कर दिया।

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