15 नवंबर 1956 को जन्में “प्रोफेसर संत प्रसाद गौतम” जाने माने पर्यावरणविद हैं और केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड दिल्ली के अध्यक्ष हैं। डॉ संत प्रसाद गौतम विज्ञान और साहित्य के क्षेत्र में एक बड़ा नाम है।ये जाने माने पर्यावरणविद भी हैं और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड दिल्ली के भी अध्यक्ष हैं। आज प्रदूषण संबंधी समस्या से जूझते भारत को इनके जैसे वैज्ञानिक की आवश्यकता भी है। महानगर ही नहीं छोटे छोटे शहरों में प्रदूषण के कारण बढ़ती धुंध ने जनजीवन को जटिल कर दिया है।
एक प्रसिद्ध पर्यावरणविद् ने विज्ञान और साहित्य को आम जनता को अधिक सुलभ बनाकर सफलतापूर्वक जोड़ा है।
दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में भारतीय शहरों का लगातार दबदबा इस बात की याद दिलाता है कि भले ही हमने एनसीएपी और अन्य जैसी नीतियों के निर्माण के माध्यम से स्वच्छ हवा की ओर बढ़ना शुरू कर दिया है, लेकिन नीतियों और उत्सर्जन मानकों के निर्माण में एक बड़ा अंतर है। और जमीन पर उनका वास्तविक कार्यान्वयन। जब तक हम उत्सर्जन भार सीमा और कमी के दृष्टिकोण पर नहीं जाते और जीवाश्म ईंधन, यानी कोयला और पेट्रोलियम उत्पादों के दहन को सीमित नहीं करते, तब तक नागरिकों को सांस लेने योग्य हवा उपलब्ध कराना असंभव होगा और हमारे शहर सबसे प्रदूषित शहरों की ऐसी सूची में शामिल होते रहेंगे।
विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट 2021: पृथ्वी पर 100 सबसे प्रदूषित स्थानों में 63 भारतीय शहर है। भारत का वार्षिक औसत PM2.5 स्तर 2021 में 58.1 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर (μg/m3) तक पहुंच गया, 2019 में पूर्व-संगरोध सांद्रता पर वापस लौट आया। ऐसे में इनके लागातार प्रयास आम लोगों के लिये अति महत्वपूर्ण साबित हो रहे हैं।
गंगा , जिससे भारत की संस्कृति जुड़ी है और जिसे देवी का दर्जा दिया गया है, आज इसका जल स्तर भी कम हो रहा है तथा कल कारखानों एवं लोगों की लापरवाही के कारण गंगाजल भी दूषित हो रहा है। यह वही गंगा हैं, जिनके दो घूँट जल में व्यक्ति के उद्धार की शक्ति हुआ करती थी। आज वही जल पीने योग्य नहीं रहा।इस बात से गौतम जी बेहद चिंतित हैं और अध्यक्ष, प्रोजेक्ट मूल्यांकन समिति, राष्ट्रीय मिशन स्वच्छ गंगा, दिल्ली की हैसियत से निरंतर गंगा की स्वच्छता और पवित्रता को लेकर कार्यरत हैं। पर्यावरणविद होने के कारण इन्होंने बहुत सारे वृक्ष भी लगाये हैं और व्यक्तिगत रुप से साफ सफाई पर भी ध्यान देकर स्वच्छ भारत मिशन को आगे बढ़ाने पर जोर दिया है।
“आदर्श, अनुशासन, मर्यादा, परिश्रम, ईमानदारी और उच्च मानवीय मूल्यों के बिना किसी का जीवन महान नहीं बन सकता।” • स्वामी विवेकानंद
कई अतिलोकोपयोगी पुस्तकों के ये रचयिता हैं। “ वन्देविशुद्धविज्ञानो रामचरितमानस ” और ” श्रीरामचरितमानस की वैज्ञानिक टीका ” पुस्तक में इन्होंने तुलसीदास को एक कवि ही नहीं अपितु वैज्ञानिक भी सिद्ध किया है। इनकी दोनों पुस्तकों से वे सूत्र निकाले जा सकते हैं, जिससे मानव कल्याण हेतु नये आविष्कार किये जा सकें।
इनकी सभी पुस्तकें हिन्दी और अंग्रेजी में हैं। इन्होंने चित्रकूट जाकर वहाँ के लोगों के बीच में रहकर नैतिकता की शिक्षा दी और एक बड़े समूह को अनैतिकता तथा कुविचारों से बचाया।
कहते हैं कि विज्ञान और साहित्य दो अलग अलग धारायें हैं और ऐसा विरले ही होता है कि विज्ञान और साहित्य का सटीक रुप में संगम देखने को मिले, श्रीरामचरितमानस की वैज्ञानिक टीका का मुखपृष्ठ ही यह प्रमाणित करने को पर्याप्त है कि विज्ञान और साहित्य का अन्योन्याश्रित संबंध है।
साहित्य और विज्ञान को जोड़कर इनकी अद्भुत व्याख्या देखिये। तुलसीदास के शब्दों में – ग्यान अखंड एक सीतावर।माया वस्य जीव सचराचर।। अर्थात एक सीतापति श्रीराम ही अखंड ज्ञानस्वरुप हैं और जड़ चेतन सभी जीव माया के वशीभूत हैं। अब इसकी वैज्ञानिक व्याख्या देखिये – इस संसार में सभी चर अचर ऊर्जा पर आधारित हैं, क्योंकि उनके देह निर्माण से प्रारंभ कर उसका पालन पोषण तथा समस्त जैविक क्रियायें ऊर्जा पर आधारित हैं और ऊर्जा के पूरण बस या नियंत्रण में है। ऊर्जाधारक श्रीराम, जो ऊर्जा श्रोत हैं, अखंड हैं। यही एकमात्र ज्ञान के प्रकाश श्रोत भी हैं।
इनकी स्वयं की शिक्षा अद्भुत है। एम- एस.सी, पीएच.डी. , एफ.आई.बी.एस, एन.पी.डी.आर.एफ (यू.एस .ए), आई.आई.टी.सी ( पुर्तगाल) और बी.ओ.ए ( यू.एस.ए )।ये रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय, जबलपुर के कुलपति रहे और मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग के अध्यक्ष भी रहे। इनके दर्जनों वैज्ञानिक पेटेंट्स हैं और 125 से अधिक शोधपत्र प्रकाशित हैं ।
इनके नेतृत्व में बहुत सारे वैज्ञानिक प्रकल्प सफलतापूर्वक पूर्ण हुये हैं। 30 शोधार्थियों ने इनके निर्देशन में पीएच.डी . की उपाधि ली है।इन्होंने ने पर्यावरण रक्षण के लिये विभिन्न देशों में भारत का प्रतिनिधित्व किया है। इन्हें भारत सरकार ने पीतांबर पंत राष्ट्रीय फेलोशिप एवार्ड एवं इंदिरा गांधी प्रियदर्शिनी एवार्ड से सम्मानित किया है तथा ये भारतीय हिन्दी परिषद से भी सम्मानित हैं।
इनका कहना है कि किताबी ज्ञान की तुलना में व्यवहारिक ज्ञान का अधिक महत्व है। देशहित का आधार लोककल्याण है। जो लोगों के दुःख दर्द में बराबर का शरीकेदार है, वही सच्चा देशभक्त है।
नई दिल्ली
गौतम जी ने एक शिक्षक और एक समाजसेवक के रुप में अपनी भूमिका का सफल निर्वाह किया है। इन्होंने कई बार विदेशों में जाकर भारतीय संस्कृति को वहाँ प्रचारित करने का कार्य किया। राम संस्कृति की नयी व्याख्या करने वाले कदाचित ये प्रथम वैज्ञानिक साहित्यकार हैं। भगवत्गीता पर भी इन्होंने अद्भुत कार्य किया है। बड़े बड़े पदों पर रहने के बावजूद इन्होंने सभी को ईश्वर का अंश मानकर सभी के साथ समान बर्ताव किया। इनका जीवन अनुकरणीय है।
भारत की ऐसी महान् विभूति को कैफे सोशल की तरफ से बारंबार नमन।