गुमनाम नायक – अनंत लक्ष्मण कान्हेरे
ब्रिटिश हुकूमत के द्वारा भारतीयों पर किए जा रहे जुल्म और अत्याचारों से भारत माता को स्वतंत्र कराने के लिए अनगिनत भारतीयों (पुरुष, महिलाएं, बच्चों) ने स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होकर अपने प्राणों को वलिदान कर दिया था। इस स्वतंत्रता महायज्ञ में हर उम्र के भारतीयों ने बढ़चढ़ कर भाग लिया था। आज हम एक ऐसे वीर नवयुवक को याद कर रहे हैं जिसे कम उम्र में ही फांसी पर लटका दिया गया। आज अधिकांश भारतीय उसके वारे में जानते तक नहीं है।
अनंत लक्ष्मण कान्हेरे एक ऐसे सपूत थे जिन्हें १९ वर्ष की आयु में फांसी दे दी गई थी। कान्हेरे जी का जन्म ७ जनवरी १८९२ को हुआ था। महाराष्ट्र राज्य के औरंगाबाद में आपने पढ़ाई की थी।
देश में ब्रिटिश हुकूमत के द्वारा भारतीयों के ऊपर अनेकों तरह से अत्याचार किए जा रहे थे।उस समय नाशिक में कलेक्टर जैक्सन था। जैक्सन स्वतंत्रता सेनानियों के द्वारा किए जा रहे कार्यों को जानता था। उसने भारतीय नागरिकों के साथ घुलना मिलना शुरू कर अपनी एक अलग पहचान जन हितैषी अधिकारी के रूप में बना ली, उसने लोगों को बताया कि वे पिछले जन्म में एक वैदिक साक्षर ब्राह्मण थे इसलिए उन्हें भारत के लोगों के प्रति स्नेह है।उसे संस्कृत भाषा का भी ज्ञान था,वह स्थानीय लोगों से मराठी में बात करता था।इसी ने बाबा राव सावरकर को गिरफ्तार किया और मुकद्दमा चलाने में मदद की। बाबा साहब का दोष सिर्फ इतना ही था कि उन्होंने कवि गोविंद की कविताओं की एक पुस्तक का प्रकाशन करवाया था।
देश को अंग्रेजी हुकूमत से स्वतंत्र कराने के लिए उस समय दो तरह की विचारधाराएं चल रही थी।एक तरफ कांग्रेस अपने प्रस्तावों के द्वारा भारतीयों के लिए अधिक से अधिक अधिकारों की मांग कर रही थी वहीं दूसरी ओर क्रांति की मशाल जलाएं जावांज क्रांतिकारी कुछ अलग करने की सोच रहे थे।उनका मानना था कि सशस्त्र विद्रोह से ही अंग्रेजों को देश से बाहर किया जा सकता है।
महाराष्ट्र में युवकों ने “अभिनव भारत” नाम से एक संगठन बनाया जो कि अखाड़ों के माध्यम से लोगों में एक अलख जगाने का कार्य कर रही थी।इस संगठन के प्रमुख व्यक्ति वीर विनायक दामोदर सावरकर और उनके भाई गणेश सावरकर थे। अभिनव भारत के साथ साथ लोकमान्य तिलक जी द्वारा शिवाजी जयंती, गणेशोत्सव एवं विजयदशमी त्योहार धूमधाम से मनाए जाते थे। इन सब में स्थानीय युवक बढ़-चढ़कर भाग लेते थे। विजयादशमी पर कालिका मंदिर में पूजा के समय युवकों ने योजना बनाई कि इस बार सब बंदे मातरम को उद्घोष करते हुए चलेंगे।यह बात जैक्सन को पता चली तो उसने इस पर प्रतिबंध लगा दिया।
अनंत लक्ष्मण कान्हेरे वीर सावरकर से प्रभावित होकर उनके संगठन में शामिल होकर कार्य करने लगे।इस समय कान्हेरे की उम्र १७ वर्ष थी।
१९०५ में जब अंग्रेजों ने हिंदू-मुसलमान में अलगाव कर बंगाल का विभाजन कर दिया। गणेश सावरकर ने अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में एक लेख लिखा जिस पर उन्हें आजीवन कारावास की सजा मिली। सावरकर के लंदन प्रवास के समय उनके परिवार पर बहुत जुल्म किए गए।वकील वामन सखाराम स्वतंत्रता सेनानियों के मुकद्दमें निशुल्क लड़ते थे तो जैक्सन ने उनकी डिग्री जब्त कर जेल भेज दिया। इस पर क्रांतिकारियों का खून खोल उठा और कृष्णा जी कर्वे के नेतृत्व में क्रांतिकारियों के एक समूह ने जैक्सन को खत्म करने की योजना बनाई।
उसी समय १९०९ में जैक्सन को मुंबई के आयुक्त पद पर पदोन्नत किया गया। कर्वे जी, विनायक देशपांडे जी और अनंत कान्हेरे ने स्थानान्तरण से पहले ही जैक्सन को मारने का फैसला किया। नाशिक के विजयानंद थिएटर में जैक्सन का विदाई कार्यक्रम था। कान्हेरे ने मन ही मन में फैसला किया कि वह पहले उसे गोली मारेंगे उसके बाद अंग्रेजों की कैद से बचने और अपने अन्य साथियों को बचाने के लिए आत्महत्या कर लेंगे। और यदि उनका प्रयास सफल नहीं हुआ तो फिर देशपांडे और फिर कर्वे गोली मारेंगे।सबके पास हथियार थे।
२१दिसम्वर १९०९ को जब जैक्सन थिएटर में पहुंचा तो कान्हेरे ने एकाएक सामने आकर उस पर चार गोलियां चला दीं जिसके परिणामस्वरूप जैक्सन तुरंत ही मर गया। अचानक हुए इस घटनाक्रम से वहां उपस्थित कुछ भारतीय अधिकारियों ने डंडों से हमला कर दिया और मौजूद लोगों की मदद से उन्हें पकड़ लिया गया।यह सब इतनी जल्दी से हुआ कि कान्हेरे जी को खुद पर गोली चलाने या जहर खाने का अवसर नहीं मिल सका।इस समय कान्हेरे मात्र १८ वर्ष के थे।जब उन्हें न्यायाधीश के सामने लाया गया तब उसने जैक्सन की हत्या करना स्वीकार कर लिया। मुंबई के न्यायाधीश ने उन्हें दोषी माना और फांसी की सजा सुनाई।
१९ अप्रैल १९१० को ठाणे जेल में कर्वे, देशपांडे के साथ अनंत को फांसी दे दी गई। फांसी के समय तीनों के परिवार और रिश्तेदारों में से किसी को भी शव नहीं दिए गए और समुद्र में फेंक दिए।
जिस उम्र में हम सब खेल कूद और भविष्य बनाने में रहते हैं उसी उम्र में भारत माता का यह सपूत अपने जीवन का सर्वोच्च बलिदान हंसते हुए कर देता है।
देश के लिए समर्पित आपका जीवन हम भारतीयों के लिए एक संदेश देता है कि हमको हमारे देश ने सब कुछ दिया है,जब भी समय आए देश की सेवा के लिए तो हमारे कदम पीछे न हटें।
अनंत लक्ष्मण कान्हेरे सही मायने में वीर थे,आपकी वीरता और बलिदान के लिए कैफे सोशल आपको शत् शत् नमन करता है।