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इनबुक फाउंडेशन द्वारा आयोजित – राजभाषा हिंदी का सम्मान प्रतियोगिता 2022 – “प्रथम पुरस्कार” विजेता कहानी “अधिकार”

डॉ भावना एन. सावलिया, राजकोट गुजरात
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रह साल से अपने जीवन-संघर्ष से खेलने वाली एक ४८ वर्षीया हेन्डीकैप्ड अविवाहिता महिला अध्यापिका डॉ. साधना पटेल अपने रेगुलर पे स्केल का अधिकार प्राप्त करने के लिए उच्च शिक्षण कमिश्नर श्री को, अग्र सचिव श्री को, शिक्षण -मंत्री श्री को, मुख्यमंत्री श्री को असंख्य बार मिली थी और सौ से अधिक अपनी अर्जियाँ दे चुकी थी । फिर भी  उसे अपने रेगुलर पे-स्केल का अधिकार नहीं मिला। वह एक बार फिर-से उसी फाइल के सिलसिले में मिलने के लिए गाँधीनगर पहुँची ।

उच्च-शिक्षण-कमिश्नर श्री के ऑफ़िस पर की नेम प्लेट बदल गई थी, श्री सी.पी.व्यास की जगह पर एन. सी. नागराजन, (I.A.S)  लिखा हुआ था । चपरासी ने डॉ. साधना की मुलाकात की चिट्ठी कमिश्नर श्री के टेबल पर रख दी थी । थोड़ी ही देर में घंटी बजी । चपरासी कमिश्नर श्री की ऑफ़िस में गया – “जी साहब।“  कमिश्नर श्री ने कहा – “ डॉ साधना को बुलाओ।“  चपरासी ने डॉ साधना से कहा-“ आइए मैडम!” डॉ साधना-“ मैं अंदर आ सकती हूँ साहब!” कमिश्नर आवाज़ सुनकर फाइल में- से अपनी नज़र हटाकर बोले – “यस मैडम,आइए।“ डॉ. साधना ने दोनों हाथ जोड़कर नमस्कार किया। कमिश्नर श्री ने उसे बैठने के लिए इशारा किया। डॉ साधना –“ शुक्रिया साहब ।“ कमिश्नर श्री ने आने का कारण पूछने पर डॉ साधना ने जवाब दिया-“ साहब  मैं डॉ साधना पटेल। श्री पटेल महिला कॉलेज राजकोट में हिन्दी विषय में मेरी नियुक्ति अध्यापक सहायक के रुप में ३, जुलाई २००७ को हुई थी ।वहाँ मेरी फिक्स सेलेरी का समय २,जुलाई २०१२ में पूरा हो गया। उसी कॉलेज में मैंने आठ-साल और चार-महीने तक यानी ३१ अक्टूबर २०१५ तक नौकरी की , पर अब तक मुझे रेगुलर पे-स्केल नहीं मिला है जो २, जुलाई २०१२ को मुझे मिल जाना चाहिए था।३१ अक्टूबर २०१५, में पटेल महिला कॉलेज में मेरा कार्यभार न होने से मुझे वहाँ से निष्कासित कर दिया गया।“ कमिश्नर-“ इस समय आप कहाँ नौकरी कर रही हैं ?”  “इसके बाद मेरी नियुक्ति छ साल से फिक्स सेलेरी में एस. के. आर्ट्स कॉलेज मोडासा में की गई है। अभी तक मुझे मेरे फुल पे-स्केल का अधिकार नहीं मिला है।मैंने कितनी बार दरख़्वास्त भेजी है पर उसका कोई जवाब नहीं आया है ।“  “ डॉ साधना जी आपकी क्वॉलिफिकेशन क्या है ?” जी सर मैंने एम.ए., एम.फिल, पीएच.डी और जीसेट  की योग्यता प्राप्त की है और छ: साल तक मैं एन.एस.एस. की प्रोग्राम ऑफिसर रह चुकी हूँ।“ कमिश्नर श्री ने क्लर्क पी.एन.जाडेजा को डॉ साधना की फ़ाइल लेकर ऑफिस में आने को कहा। वह फाइल पर की धूल साफ करता हुआ सोच रहा था कि नये साहब ने  डॉ साधना की फाइल क्यूँ मँगवाई ? ऑफिस में डॉ साधना को देखकर उसके चेहरे का रंग उड़ गया। कमिश्नर श्री ने  फाइल में पचासों दरख़्वास्त  देखकर जाडेजा से कहा – “ अभी तक मैडम का रेगुलर पे-स्केल क्यों  नहीं हुआ ?” डॉ साधना को मालूम था कि वह उल्टा-सीधा जवाब देकर अपनी जिम्मेदारी से हाथ ऊपर कर देगा। क्योंकि वह प्रिंसीपल से मिला हुआ था  । उसने तीक्ष्ण नज़र से डॉ साधना की ओर देखकर  कहा – “ सर यह काम शिक्षण विभाग के अंडर में आता है, इससे पहले उनका ऑर्डर शिक्षण  विभाग ने ही किया था । हम कुछ नहीं कर सकते।“ “आपने डॉ साधना की कोई दरख़्वास्त वहाँ फॉरवर्ड की है?” “नहीं सर आज कर देता हूँ ।“ अभी तक नहीं भेजी ? अपनी ड्यूटी को ध्यान में रखकर सब काम समय से करने की आदत डालो, समझे ! आज ही इसे रू-ब-रू पहुँचा दो।“ वह मन-ही-मन बोल रहा था कि हमने जानबूझकर उसका काम नहीं किया था। बिना वज़़न से उसके काग़ज़ात इधर-उधर हो जाते हैं। “उसने लज्जित स्वर में कहा- “जी सर !”  डॉ साधना ने  अग्र सचिव श्री को भी कितनी बार अपनी अर्जी भेजी थी। कमिश्नर श्री ने डॉ साधना को उच्च शिक्षण विभाग सचिवालय में  अग्र सचिव को मिलने के लिए कहा।

डॉ.साधना  उच्च शिक्षण विभाग सचिवालय पहुँची। अग्र सचिव श्री को मिलने को उसकी चिट्ठी  भेजी गई। वह  अंदर बुलाने की प्रतीक्षा में बाहर बैठी हुई थी कि अपने अन्तिम  बारह- साल के जीवन-संघर्ष में खो गई। उसके रेगुलर पे-स्केल के संघर्ष की सारी घटनाएँ एक चलचित्र की भाँति उसके मानस-पटल पर से गुजरती रहीं। ३० सितंबर,२०१५ का दिन,प्रिंसीपल की बेल की आवाज सुनकर अमृता बहन का उसकी ऑफिस में जाना -” जी मेडम ! “डॉ साधना पटेल को भेज दो ” जी मैडम।“ अमृता स्टॉफ़रूम में गई और कहा-  “डॉ साधना मैडम को प्रिंसीपल बुला रही हैं ।” डॉ साधना स्त्री सशक्तीकरण का आर्टीकल लिख रही थी, वह उसे आधा टेबल पर छोड़कर प्रिन्सीपल की ऑफ़िस में गई । “जी मैडम आपने मुझे बुलाया ?” “हाँ” कहकर डॉ. साधना के हाथ में एक लिफ़ाफ़ा थमा दिया । उसने पूछा – ” यह क्या है मैडम ? ” अहंकार और कर्कश भाषा में – ” आप ख़ुद पढ़ लीजिए ।” डॉ साधना ने ऑफ़िस में ही लिफाफ़ा खोलकर देखा, कॉलेज के लैटर-पैड पर लिखा था कि कॉलेज में उसका कार्यभार न होने से ३१,अक्टूबर,२०१५ कॉलेज के समय के बाद उसको नौकरी से निष्कासित किया गया था। एकाएक ऐसा ओर्डर मिलने से साधना के पैरों-तलों जमीन खिसक गई ।पर वह हिम्मत इकठ्ठी करके  स्वस्थ हो गई। प्रिन्सीपल को इस बात के दुःख की भनक भी नहीं पड़ने दी। वह बिना कुछ बोले स्टॉफ़-रूम में चली गई और अपने काम में मन लगाने का प्रयास किया,पर मन उचाट भर रहा था ।वह सोच में डूबी हुई थी कि अब उसे क्या करना चाहिए ? तब संस्कृत की प्रोफेसर श्वेता जी अपना लैक्चर पूरा करके स्टॉफ़-रूम में आईं।वो बहुत संवेदनशील और ममतामय थी । उसने डॉ साधना का चेहरा पढ़ लिया और उसके पास जाकर धीरे से पूछा -“साधना जी क्या हुआ? आज फूल-सा चेहरा क्यूँ मुरझाया हुआ है ?”  वह पहले तो कुछ बोली नहीं , उसकी आँखें नम हो गईं। भीतर से दुःखी बाहर से हँसते हुए उसने एक गहरा साँस छोड़ा। बार-बार पूछने पर उसने कहा – “हमारा कॉलेज में साथ रहना ३१ अक्टूबर तक है। १,नवंबर से मेरे लिए यह कॉलेज के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो जाएँगे ।“ यह बात सुनकर श्वेता जी अवाक् रह गई। उसकी आँखों के कोने करुणा के जल से गीले हो गए। वह मन-ही-मन कह उठी कि एक सच्चे व्यक्ति को इस प्रकार हैरान करने से भगवान उसे कभी नहीं माफ़ करेंगे। उसने डॉ.साधना के कन्धे पर हाथ रखकर हल्का-सा दबाया और कहा – “ हिम्मत मत हारना ईश्वर पर भरोसा रखो, सब कुछ ठीक हो जाएगा।“

प्रिंसीपल को छोड़कर पूरा स्टॉफ़ मिलजुलकर रहता था ।ईर्ष्या की आग में जलनेवाली मैडम उन सबका प्रेम से रहना उसे खटकता था।एक दिन प्रिंसीपल ने  कहा- “देखो साधना जी पूरा स्टाफ क्या करता है, कौन-सी बातें करते हैं, कहाँ जाता है आपको इसकी पूरी निगरानी रखनी है और उसकी पूरी रिपोर्ट आपको मुझे देनी   है।“ मिलनसार  साधना जी ने निडर बनके स्पष्ट सुना दिया : “देखो मैडम जी, कॉलेज में मेरी नियुक्ति छात्रों को पढ़ाने के लिए की गई है न कि इस प्रकार की चुगली करने के लिए! मैं एकदम अलग स्वभाव की महिला हूँ।आप जो चाहते हैं वो मुझसे कभी भी नहीं होगा। कृपया इसके लिए आप मुझे दूसरी बार बुलाने का कष्ट कभी  नहीं उठाना । अच्छा, आप बताओ मैडम ऐसा करके आप क्या साबित करना चाहती हैं? आप भी सबके साथ अपनत्व के भाव से रहती तो कितना अच्छा लगता ?” डॉ साधना ने ऐसा करने से मना कर दिया तो उसका माथा ठनक गया। उसके भाल पर पसीने की बूँदें आ गईं। थोड़ी देर के बाद  स्वस्थ होकर उसने खडूस भाषा में कहा – ”नो एडवाइज़ ! मैं अच्छी तरह जानती हूँ कि मुझे क्या करना है और क्या नहीं करना है! वह आप मुझे मत सिखाओ!, आपको जो कहा जाए वही करना है,समझी ? आप नहीं जानती कि कितने बीस से सौ होते हैं? आप तो एक अच्छा-सा आर्टिकल या कविता लिख सकती हो! कैसा व्यवहार करना चाहिए उसे आप क्या जानो?” उसकी परपीड़ा-वृत्ति के बारे में अपने स्टॉफ़ के मित्रों के मुँह से  पहले से ही सुन रखा था । उस दिन उसको प्रत्यक्ष अनुभव हो गया ।

डॉ साधना  सोच रही थी कि समाज में शिक्षक और आचार्य का स्थान सर्वोपरि हैं। शिक्षक यानी सद्गुणों और सद्व्यवहार का पर्याय होना चाहिए। जिससे स्कूल और कॉलेज के छात्र जीवन- मूल्यों और सदाचार  के पाठ सीखकर  आगे चलकर अच्छा इंसान बन सकें। खुद में इंसानियत के गुणों का अभाव होगा तो वह छात्रों को क्या सिखाएँगे ? ये विचार डॉ साधना को बार-बार आते थे। क्या सरकार दूसरों को परेशान करने के लिए दो लाख रूपए की की सेलेरी देती है ? मानव इतना नीचा क्यूँ गिर जाता है? यहाँ तक कि दूसरों को गिराने में ही अपने जीवन का लक्ष्य समझता है?

डॉ साधना ने कॉलेज की इंटर्नल परीक्षा में अनुपस्थित छात्रों को बुलाकर परीक्षा न देने का कारण जाना कि उन छात्रों से प्रिंसीपल ने  बिना  परीक्षा में बैठे पास होने के लिए २५०० रूपये लिए थे। इन निर्दोष गरीब छात्रों के  रुपए लेते समय उस बेईमान के हाथ क्यों न कट गए? इस बात का पता कॉलेज के मण्डल के प्रमुख श्री को लगने से उन्होंने  प्रिंसीपल मैडम को बहुत डाँटा । उसको डॉ साधना पर शक हुआ तब से वह  डॉ साधना से जलती थी । उसकी बेईमानी के रास्ते  के काँटें किस प्रकार दूर किए जाएँ इसके बारे में वह सोच रही थी । उसकी कपटी सोच से ही डॉ. साधना को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा,पर वह हिम्मत नहीं हारी ।

डॉ  साधना के अध्यापक सहायक के पाँच साल पूरे होने के बाद उसके फुल पे-स्केल की फाइल उच्च शिक्षण कमिश्नर श्री की ऑफिस गाँधीनगर पहुँचाने का काम प्रिंसीपल ने महिला कॉलेज गोंडल के ऑफिस सुप्रिटेंडेंट भ्रष्टाचारी बकुलभाई को सौंपा था। पन्द्रह-हजार रुपए के तिलक के साथ ।

नौ-महीने के बाद डॉ. साधना को कमिश्नर की ऑफ़िस से पता चला कि उसकी फाइल भेजी ही गई नहीं थी, उसने प्रिन्सीपल को कहा –“मैडम मेरी फाइल कमिश्नर की आॉफ़िस अभी तक नहीं भेजी गई है!” बिना नज़र मिलाए प्रिंसीपल शुष्क-भाषा में बोली- “यह काम मैंने बकुलभाई को सौंप दिया है। उनसे बात कर लीजिए ।“ “अरे! आप हमारी प्रिंसीपल हैं, आपकी जिम्मेदारी बनती है बकुलभाई से बात करने की, मेरी नहीं।  वास्तव में कमिश्नर तक फाइल पहुँचाने की जिम्मेदारी आपकी है ।“ वह अपने काम से हाथ ऊँचा कर  बोली – “ मैं आपकी फाइल के बारे में कुछ नहीं जानती, आप जानो और बकुलभाई जाने , मैंने वह काम उसको सौंप दिया है। । आपकी मैं कुछ भी मदद नहीं करूँगी । आपको जहाँ जाना है जाइए, जिससे फरियाद करनी है करिए वो मेरा कुछ नहीं बिगाड सकते ।“  डॉ साधना ने बकुलभाई को फोन किया । सामने से भारी आवाज में  : “हैलो”

“हाँ, जी बकुल भाई मैं डॉ साधना बोलती हूँ”

“बोलिए”

“प्रिंसीपलश्री ने आपको मेरी फाइल कमिश्नर तक पहुँचाने के लिए दी है तो आपने मेरी फाइल पहुँचा दी ?”

“हाँ बहन पहुँचा दी है ।“

“कब “

“पन्द्रह दिन पहले”

“ आप रू-ब-रू गये थे या कुरियर किया था ?”

“कुरियर किया था “

“आप मुझे  कुरियर की रसीद भेद दीजिए। जिससे मैं कमिश्नर की ऑफ़िस‌ में कह सकूँ कि मेरी फाइल आपके यहाँ आ गई है। वो लोग मुझे परसों बता रहे थे कि आपके नाम के कोई काग़ज़ात हमारे पास नहीं आए हैं ।“ डॉ साधना की बात सुनकर फोन काट दिया। दोनों ने मिलकर ही प्लान बनाया था कि फाइल कमिश्नर तक नहीं पहुँचनी चाहिए। उसने प्रिंसीपल को कॉल किया – “डॉ साधना का फोन आया था , वह फाइल के बारे में पूछ रही थी।“ “आपने क्या जवाब दिया ?” मैंने कहा फाइल भेज दी है।वो मुझसे कुरियर की रसीद माँग रही थी । आप बताइए अब आगे क्या करना है ?” “और कुछ नहीं करना है उसकी फाइल कमिश्नर की आॉफ़िस को नहीं भेजनी है ।यहाँ मेरी साजिश है उसके विषय में छात्रों को एडमिशन नहीं देना है । छात्रों की संख्या के अभाव में उसका कार्यभार कम होगा सो वो यहाँ परमेनेंट नहीं हो सकेगी । कार्यभार के अभाव में उसे नौकरी से निकाल दिया जाएगा यही मेरा मक़्सद है ।“

सप्ताह, महिने, वर्ष बीतने लगे पर अभी तक फाइल को पँख नहीं आएँ। ।  वह भी फाइल को लेकर बहुत परेशान थी । उसने बकुल भाई को कहा- “ यदि आप फाइल नहीं भेजना चाहते तो  आप मुझे दे दीजिए । मैं स्वयं कमिश्नर के ऑफ़िस तक पहुँचा दूँगी।“ उसने फाइल देने को मना कर दिया ।डॉ साधना सब कुछ  समझ गई थी कि यह प्रिंसीपल की ही चाल थी और वह उसका आदमी था । जब कॉलेज के स्टॉफ़ को कोई एरियर्स मिलता था तब प्रिंसीपल और बकुल भाई ने स्टॉफ़ के मित्रों के बहुत रुपए खाए थे, पता नहीं इनके पेट इतने बड़े थे कि कभी भरे ही नहीं जाते थे ।

डॉ साधना कॉलेज के मण्डल के प्रमुख श्री को मिली-“प्रणाम आदरणीय।“, “सबसे पहले तो साधना जी आपको बहुत-बहुत बधाई , आपके पुस्तक को जो राष्ट्रीय अवार्ड और पुरस्कार मिला है इसके लिए। आपने कॉलेज का नाम रोशन किया है।“ “आपका बहुत-बहुत आभार आदरणीय । माँ  सरस्वती की असीम कृपा से और आपके शुभ आशीष से  मुझे राष्ट्रीय सम्मान मिला है।“ “बोलिए कैसे आना हुआ ?” उसने अपनी फाइल का सत्य बयां किया ।इस बात से प्रमुख श्री बिल्कुल अनजान थे । उन्होंने नाराज़ होकर कड़े शब्दों में प्रिंसीपल को बहुत जल्दी फाइल की कार्रवाई करने की सूचना दी  । प्रमुख श्री के सामने अपमान उससे सहा नहीं गया  । वह गुस्से में पैर पटकती हुई ऑफ़िस में गई और जोर से दो-तीन बार ऑफ़िस की  बेल बजाई । जिसमें नेगेटिव वाइब्रेट का अहसास हो रहा था । अमृताबहन उतावले पैरों गई। “जी मैडम “। “डॉ साधना को बुलाओ। “ डॉ साधना प्रिंसीपल के पास गई ।  उसने क्रोध में कहा- ”आपने मुझे और प्रमुख श्री को आमने- सामने खड़े कर दिया इसके लिए आपका बहुत-बहुत आभार।” विनय से साधना ने कहा- “सुनो मैडम ! आपने अपनी जिम्मेदारी से मुँह मोड़ लिया था इसलिए  मुझे प्रमुख श्री को बताना पड़ा । जो काम एक महीने में हो जाना चाहिए था, वही काम के आज नौ महीने हो गये । आपने  फाइल अभी तक भेजी ही नहीं है ।आपको पता है? इसमें  मेरा भविष्य है! मेरे भविष्य को अन्धकार में धकेलकर आपको क्या मिलेगा ?” उसने बेईमानी से कहा- ”मुझे कुछ मिले या न मिले वह बात छोड़ो, पर आज आपने प्रमुख श्री के सामने मेरी बे-इज़्ज़ती करवाई है  इसका बदला मैं ज़रूर लूँगी ।अब आपको कोई बचा नहीं पाएगा। चाहते हुए भी कुछ नहीं कर पाएगा ।युनिवर्सिटी और उच्च शिक्षण कमिश्नर की ऑफ़िस‌ में सब जगह मेरे ही लोग बैठे हैं, मेरी ऊँगली पर सब लोग नाचते हैं। मैं आपका हाल धोबी के कुत्ते जैसा करूँगी।“ डॉ. साधना ने सोचा इनके हाथ इतने लम्बे कैसे हो सकते हैं ? दूसरे ही क्षण हाँ ..जो व्यक्ति झूठा और भ्रष्टाचारी होता है उसकी पहुँच सब जगह होती है। आज का ज़माना असत्य का साथ निभाने वाला और झूठे व्यक्तियों का  है । 

प्रिंसीपल द्वारा  फाइल तैयार की गई पर बीच में से प्रमुख श्री और प्रिंसीपल के सही वाले   महत्वपूर्ण पाँच काग़ज़ात निकाल दिए थे।। फाइल भेज दी गई । एक सप्ताह बाद कमिश्नर की ऑफ़िस से क्रमाङ्क ३,५, और ११वें के नियम की क्वेरी सोल्व करने का काग़ज़ आया । प्रिंसीपल ने  क्वेरी सोल्व नहीं करके क्षतियुक्त काग़ज़ात भेज दिए  ।  फिर से डॉ साधना कमिश्नर साहब को मिली।  : “सी. पी. जाडेजा को डॉ साधना की फाइल लेकर ऑफ़िस में बुलाया गया। वह डॉ साधना को देखकर थोड़ा हड़बड़ाया। “मैडम की फाइल का  क्या हुआ?” “उनके पूरे डोक्युमेंट्स नहीं हैं सर।“  मेरे सामने क्या देखता है? “जल्दी से  बाकी डोक्युमेंटस् मँगवाइए और उनका रेगुलर  पे-स्केल का आर्डर करना है।“ क्लर्क के चेहरे पर से छल-कपट की रेखाएँ चुगली कर रही थीं । “जी सर” “ क्लर्क फाइल लेकर वहाँ से जल्दी निकल गया ,मानो कोई शुभ घड़ी बीत न जाए । कमिश्नर श्री : “डॉ साधना जी आपकी कॉलेज ने पूरे डोक्युमेंट्स भेज दिए होते तो  आपका आर्डर आज ही हो जाता। आप वाक़ई  एक होनहार प्रतिभा हो।“ डॉ साधना कमिश्नर श्री का हार्दिक आभार मानकर वहाँ से चली गई ।.

    जाडेजा प्रिंसीपल को कॉल पर बता रहा था “डॉ साधना आज कमिश्नर श्री को मिलने के लिए आई थी । सर ने बाक़ी काग़ज़ात मँगवाने के लिए आज ही लैटर भेजने को कहा है ।“ छल-कपट और भ्रष्टाचार में अव्वल प्रिंसीपल  बात सुनकर अट्टहास कर मदभरी आवाज में-  “ मेरी बात ध्यान से सुनो, तुम क्वेरी सम्बन्धित काग़ज़ात मँगवाते रहो मैं यहाँ से क्वेरीवाले डोक्युमेंट्स भेजती रहूँगी। यह मिशन तब तक चलाना है जब तक उसको नौकरी से निष्कासित न किया जाए । हमारे इस मिशन की किसी को भी भनक नहीं आनी चाहिए और आपकी जेब गरम होती रहेगी ।“ जाडेजा के चेहरे पर ऐसी मुस्कान थी माऩो कोई भूखे आदमी को खाने के लिए मलाई मिल गई हो!  प्रिंसीपल तीन-वर्ष और चार-महिने के बाद वह अपने मिशन में सफल हुई।

 डॉ साधना की हिन्दी विषय में उत्तम योग्यता को  लेकर हिन्दी विभागाध्यक्षा किरण  सोजीत्रा भी पहले से उससे जलती थी। वह सिर्फ़ एम. ए. पास थी ।अनुदानित कॉलेज में प्रिंसीपल और मण्डल के हाथ में हर प्रकार की सत्ता होने के कारण किरण सोजीत्रा ने अपनी नोकरी की सुरक्षा के लिए मण्डल की जेब में वज़न रख दिया ।  जहाँ नीति और सिद्धान्त की हत्या कर दी थी । प्रिंसीपल और किरण सोजीत्रा दोनों ने मिलकर सबसे पहले हिन्दी विषय की संख्या को तोड़ने का काम किया ।  जिससे डॉ साधना का कार्यभार कम हुआ और कमिश्नर को पूरा कार्यभार न होने का पत्र तो भेज दिया पर आगे की क्वेरी सोल्व नहीं की ।  डॉ. साधना  को नौकरी से निकाल दिया गया।वह  अपना हक़ प्राप्त करने के लिए सरकार के सामने  ट्रिब्यूनल में गई। भ्रष्टाचारी ने सरकार के  वक़ील को भी  ख़रीद लिया और डॉ साधना हार गई।अध्यापक सहायक को सरकार की ओर से कोई रक्षण नहीं होने से वह अपना हक़ प्राप्त करने के लिए रात-दिन एक करके लड़ती रही।  उसे स्पेशल केस में आर्ट्स  कॉलेज मोडासा  में एक्स्टेंशन पर अध्यापक सहायक के रुप में नियुक्त किया ।तेरह साल से अपनी पर्मानेंट नौकरी के लिए उसका सङ्घर्ष  ज़ारी था ।  स्त्री-सशक्तीकरण की बात करने वाली  और समाज में दिव्याङ्ग जन को स्वावलम्बन बनाकर सम्मान देने  की खोखली बातें करने वाली सरकार से भी अब कोई उम्मीद नहीं रही। अधिकारी और मन्त्री के बीच न जाने कौन-सी साँठगाँठ थी कि कोई मन्त्री काम के लिए मना नहीं करते थे और अधिकारी काम करते नहीं थे। अग्र सचिव की डोर बेल की आवाज़ सुनकर वह स्वस्थ हो गई ।

डॉ.साधना को अंदर बुलाया गया। उसने विनयपूर्वक अग्र सचिव श्री का अभिवादन किया और उसके सङ्केत करने पर वह सामने वाली कुर्सी पर बैठ गई । डॉ. साधना की सारी बात सुनकर अग्र सचिव श्री पी.एन. अंसारी जी ने उसका हक़ दिलाने का वचन दिया।उप-सचिव और हेड-क्लर्क के साथ विचार-विमर्श किया और कुछ ही दिनों के बाद डॉ साधना को रेगुलर पे स्केल का आर्डर मिल गया। वह ईश्वर का आभार प्रकट करती है और मीठाई का बोक्स लेकर अग्र सचिव श्री को मिलने गई और दोनों हाथ जोड़कर अग्र सचिव श्री का आभार व्यक्त किया। उसके चेहरे पर मुस्कान और आँखें नम थीं ।

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