“दोनों जीपें हमें पहाड़ी के नीचे छोड़ देनी पड़ीं। अब तुम समझो तीन किलो मीटर चढ़कर पहाड़ी पर जाना। हम चढ़ते गए ,अब हमको तो आदत थी लेकिन वह टीम ठहरी शहरी और दिल्ली के नखरे लिए। सुबह के ग्यारह बजे भी पसीना पोंछती … Continue reading जंगल ,धरती और हम
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