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प्रेरणा – राजभाषा हिंदी का सम्मान २०२३ की पुरुस्कृत कहानी

अरे रश्मि तुम रो क्यों रही हो ?सुधा ने रश्मि के गले में बांँहें डालते हुए कहा।

“तुम तो एक वीर युवक की पत्नी बनने जा रही हो, फिर भी रो रही हो “।सुधा ने धीमे से कहा ।

अपना घर ,अपने मांँ-बाप को छोड़ते समय किसे दुःख नहीं होता है?”रश्मि रोते हुए धीमे से बोली ।

     तभी रश्मि की भाभी आई और सुधा से बोली “सुधा दीदी तुम रश्मि दीदी को लेकर नीचे चलो ।अब विदा का समय हो गया है, बस नीचे सभी को दूल्हा- दुल्हन का टीका करना है।” 

सुधा रश्मि को लेकर आंँगन में पहुंची ।नीचे शहनाइयांँ बज रही थी और डोली तैयार खड़ी थी। सुधा ने रश्मि को दूल्हे के पास कुर्सी पर बैठा दिया। वहांँ उपस्थित सभी महिलाएं बारी‌ -बारी‌ से  दूल्हे – दुल्हन का टीका करने लगी। रश्मि की मांँ ने रश्मि से देहरी पुजवायी और उसे छाती से लगा‌ रोने लगी। रश्मि अपने भैया- भाभी और अपने‌ सभी‌ रिश्तेदारों से मिलकर रोने लगी। सारा वातावरण जो कल सजावट और धूमधाम से सुशोभित था ,वह आज उदासी में डूब चुका था ।रश्मि के माता-पिता और  रिश्तेदार सभी खड़े रो रहे थे। सभी के मुंँह पर अश्रु-बिंदु चमक रहे थे लेकिन वह अश्रुबिंदु सुख और आनन्द के थे क्योंकि उनकी बेटी एक वीर नवयुवक की पत्नी बनने जा रही थी। रश्मि अपने माता-पिता से गले मिलकर रोने लगी तो माँ उसे रोते- रोते आशीर्वाद देते हुए बोली”बेटी कुल की मर्यादा का ध्यान रखना”। रश्मि अपने पिता से बिछुड़ती हुई रोती हुई डोली में बिठा दी गई। शहनाइयों के बीच रश्मि की डोली चल पड़ी।

रश्मि अपने ससुराल पहु़ँची। उसके सास- ससुर रश्मि जैसी बहू को पाकर अत्यंत प्रसन्न थे। रश्मि भी उस अनजान वातावरण को पाकर प्रसन्न थी क्योंकि वह एक फौजी अफसर की पत्नी बन गई थी। दूसरे दिन शाम को अचानक तार आ पहुँचा कि मेजर रमेश चंद्र को मोर्चे पर बुलाया है लेकिन रमेश ने अपने माता-पिता तथा अन्य रिश्तेदारों से सलाह लेकर यह सूचना भेज दी कि “वह बीमार है,अतःअभी आने में असमर्थ हैं”।

रश्मि के कानों में जब यह समाचार पहुंँचा कि उसके पति रमेश ने आज  मोर्चे पर जाने से इन्कार कर दिया है। यह सुनकर देश प्रेमिका रश्मि का खून खोलने लगा और उसकी आंँखों से वेदना युक्त अश्रुधारा बहने लगी। घर के सभी लोगों ने उससे रोने का कारण पूछा लेकिन उसने किसी को कुछ नहीं बताया ।सभी ने यह समझा कि दुल्हन अपने मांँ-बाप के वियोग में रो रही है और कोई भी उसके मन की व्यथा को जान नहीं पाया।

रश्मि के मन में विचारों का तांँता बढ़ने लगा और  उसे सुधा की बात रह -रहकर याद आने लगी कि रश्मि तुम एक वीर युवक की पत्नी बनने जा रही हो? क्या वास्तव में वह वीर पत्नी कहलाने के योग्य‌ है, क्या वह मेजर की पत्नी है? नहीं-नहीं उसका दिल बार-बार कह रहा था कि तुम एक वीर पत्नी नहीं बल्कि ऐसे कायर की पत्नी हो जो घर में बीमारी का बहाना बनाकर छुपा हुआ बैठा है जबकि एक तरफ भारत माता दुश्मन के आक्रमण से लहूलुहान होकर चीख रही है ।रश्मि को एक अपनी पुरानी सहेली की बात याद आ गई है जिससे कि वह एक बार लड़ पड़ी थी । वह बी.ए.द्वितीय वर्ष में थी तभी अचानक रमेश से उसका रिश्ता क्या हो गया था तो उसकी सहेली सुमन ने कहा था कि मेजर से शादी होना तो बिल्कुल बेकार है क्योंकि युद्ध के समय उसका जीवन खतरे से खाली नहीं होता है। तब रश्मि ने कहा था तुम क्या जानो वीर सैनिक की पत्नी बनना ,यह तो एक भाग्यशाली नारी ही एक वीर की पत्नी बन सकती है। इस पर सुमन चिढ़ गई थी और उसके 6 महीने बाद ही उसका विवाह हो गया ।आज वह सोच रही थी कि अपनी सहेलियों को अब कैसे मुंँह दिखाएगी?

रश्मि कमरे में सुहागरात की वेदी पर‌ बैठी हुई थी। सारे रिश्तेदार सो चुके थे लेकिन रश्मि एक कोने में बैठी अश्रुधारा बहा रही थी, उसे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था ।तभी अचानक रमेश ने उसके कमरे में प्रवेश किया लेकिन रश्मि ने कोई ध्यान नहीं दिया । रमेश ने देखा कि रश्मि रो रही है तो वह बोला “अरे रश्मि आज तुम्हारी आंँखों में आंँसू ,क्या तुम्हें घर में किसी ने कुछ कहा है और फिर तुम्हें औरों से क्या गिला -शिकवा मैंने तो तुम्हें कुछ नहीं कहा है ,देखो मेरे हृदय में तुम्हारे लिए प्रेम का टूट सागर लहरा रहा है। फिर तुम रो क्यों रही हो “?

रश्मि की सिसकियाँ तेज होती गई और वह चीख-सी पड़ी “मुझे तुम्हारे इस प्रेम पर विश्वास नहीं, तुम जिस भारत माता की गोद में पलकर इतने बड़े हुए हो, तुमने इसी धरती मांँ का अन्न- जल और स्नेह पाया है, आज तुमने इसी भारत माता के प्रेम  को ठुकरा दिया जबकि वह उधर चीख रही है, खून से लथपथ होकर अपने लाड़लों को पुकार रही है ।हो सकता है तुम एक दिन मेरे प्रेम को भी ठुकरा दो ।लाओ अपनी बंदूक और सैनिक पोशाक मुझे दो और तुम मेरी चूड़ियांँ पहन कर घर में बैठ जाओ।”

रश्मि की यह बात सुन कर रमेश हतप्रभ सा रह गया और  बड़ी कठिनाई से बोला” रश्मि… यह.. तुम … क्या ..कह ..रही हो।

रश्मि शांत स्वर में बोली “जो कि आज भारत के प्रत्येक पुरुष व नारी को करना चाहिए। जल्दी करिए यह समय रंगरेलियांँ मनाने का नहीं है”। रश्मि के  मुँह से ये बातें सुनकर रमेश को लज्जा आ गई और उसकी आंँखों से आंँसू निकल आए ।वह सिसक उठा और बोला “रश्मि तुम देवी हो ,मुझे नहीं पता था कि तुम्हारे ह्रदय में भी भारत माता के प्रति प्रेम है , मुझे क्षमा कर दो, तुमने मुझे भारत माता के प्रति अपराध करने से रोक दिया है नहीं तो मैं—–। 

रमेश शीघ्र ही अपनी सैनिक पोशाक लेकर आया और रश्मि से बोला” रश्मि तुम मुझे युद्ध में जाने के लिए तैयार करो अब मैं किसी प्रकार रुकूँगा नहीं”। रश्मि प्रसन्न होकर रमेश को युद्ध भूमि में जाने के लिए तैयार करने लगी ।

रमेश शीघ्र ही तैयार होकर अपने माता-पिता से युद्ध में जाने की अनुमति लेने पहुंँचा ।उसके माता-पिता इतनी जल्दी बेटे के बदले हुए विचार जानकर  रोने लगे। रमेश ने कहा “अरे माँ तुम रो क्यों रही हो

माँ तुम्हें तो खुश होना चाहिए ,न कि रोना।अरे रोना तो कायरों का काम है, तुम तो वीर माता हो, तुम्हीं तो पहले मुझे शिवाजी और महाराणा प्रताप की कहानी सुनाया करती थी। माँ आज मैं भी उन्हीं की भांँति युद्ध क्षेत्र में वीरता दिखलाऊंँगा। अच्छा मांँ, मुझे आशीर्वाद दो ताकि मै विजय श्री लेकर लौटूंँ । रमेश मांँ का आशीर्वाद प्राप्त कर माँ के चरण छूकर जैसे ही चला तभी उसने देखा कि दरवाजे के कोने में रश्मि थाल लिए खड़ी है ।रश्मि ने  रमेश के माथे पर  तिलक लगाया‌ ,आरती उतारी और उसकी चरण रज ली। रश्मि की आंँखों में अश्रुमोती चमक उठे तो रमेश ने कहा अरे रश्मि अब तुम्हारी़ आँखों में आंँसू, रोना एक वीर नारी को शोभा नहीं देता। मैं तुम्हीं को तो अपनी प्रेरणा का स्रोत बनाकर युद्ध क्षेत्र में जा रहा हूंँ।मुझे रोते हुए नहीं ,मुस्कुराते हुए विदा करो‌ जैसै कि भारतीय रमणियाँ पहले युद्ध क्षेत्र में जाते हुए अपने पति को मुस्कुराते हुए विदा करती थी। रश्मि यह सुनकर मन में हर्ष और विषाद दोनों के मिश्रण के बीच मुस्कुरा उठी। रमेश अपने कंधे पर बन्दूक लाद कर चल दिया। रश्मि अपने बिस्तर पर जाकर रोने लगी और कुछ  देर में निद्रा की गोद में गिर पड़ी। 

रश्मि 5-6 दिन बाद अपने माता-पिता के घर आ गई। माँ ने पूछा “बेटी तू खुश तो है न अपनी शादी से*? क्यों मांँ ,खुश हूँ। रश्मि ने उत्तर दिया 

“नहीं बेटी ,अभी शादी हुई और अभी वह मोर्चे पर चले गए हैं”

मांँ जब वह सेना में हैं तो जाना ही पड़ेगा। यह तो देश के प्रति उनका फर्ज है।  माँ मैं भी नर्स की ट्रेनिंग करना चाहती हूंँ।

तुम तो बी.एड.करना चाहती थी बेटी, ये नर्स की ट्रेनिंग कहांँ से आ गई।

नहीं मांँ अभी मैं नर्स की ट्रेनिंग करना चाहती हूंँ ,बी.एड. तो मैं बाद करुंँगी ।

ठीक‌ है बेटी

वह अपने माता-पिता से आज्ञा लेकर नर्स -ट्रेनिंग में भर्ती हो गई ।शीघ्र ही वह नर्स बन गई और रश्मि को मोर्चे पर घायल सिपाहियों के कैंप में भेज दिया गया ।रश्मि बहुत प्रेम से घायल सिपाहियों की सेवा करने लगी और घायल सिपाहियों की सेवा करते-करते  कभी – कभी वह वीरता के गाने गा उठती थी तो उसके गाने सुनकर घायल सिपाहियों का मन भी युद्ध भूमि में जाने को तत्पर हो उठता था।

एक दिन अचानक रश्मि ने  देखा कि सैकड़ों सैनिक घायल अवस्था में स्ट्रेचर पर रखे चले आ रहे हैं ।वह प्रत्येक सैनिक को बारी-बारी से देखती जा रही थी कि अचानक एक सैनिक को देखकर उसका मुंँह पीला पड़ गया। उसने देखा कि रमेश स्ट्रैचर पर बिल्कुल अचेतावस्था में लेटा है ।उसकी पीठ छलनी हो गई है और उसका शरीर खून से लथपथ है। लेकिन रश्मि ने बड़े धैर्य से काम लिया और अपने काम को सुचारू ढंग से करती रही ।

डॉक्टर साहब सैनिकों को बारी- बारी से देखकर उपचार करने लगे लेकिन जैसे ही डॉक्टर रमेश के पलंग के पास आए ,एकदम विचार मग्न हो गए। नर्स रश्मि ने पूछा” डॉक्टर साहब आप चुप क्यों है क्या रोगी की दशा चिंता जनक है?”

डॉक्टर ने कहा” सिस्टर रोगी का खून बहुत निकल चुका है अतः रोगी को बहुत मुश्किल से बचाया जा सकेगा।” रश्मि यह सुनकर एकदम शांत हो गई, उसका जी चाहा कि वह रमेश से  लिपटकर  खूब रोए लेकिन उसने अदम्य साहस व बुद्धि से काम लिया। उसने शांत व कांँपते स्वर में कहा “डॉक्टर साहब क्या मैं खून नहीं दे सकती “?

डॉक्टर साहब ने कहा “क्या तुम रोगी  को अपना खून दोगी, अगर तुम रोगी को अपना खून दोगी तो घायल सिपाहियों  की सेवा कैसे करोगी? नर्स का काम घायलों  की सेवा करना है न कि रोगियों के लिए स्वयं को अर्पण करना।”

रश्मि उदास मुद्रा में बोली” डॉक्टर साहब जब इतने सारे सैनिक अपने जीवन को खिलौना समझकर युद्ध भूमि में शत्रु से मुकाबला करने चल देते हैं तो क्या मैं किसी को अपना खून देकर उसका जीवन वापस नहीं ला सकती। नहीं – नहीं डॉक्टर  साहब मैं अपना खून अवश्य दूंँगी। मुझे तो सबसे अधिक खुशी उस दिन होगी जब मैं अपने हाथों से दुश्मनों को मार सकूंँगी। रश्मि के दृढ़ निश्चय को देखकर डॉक्टर साहब को रश्मि का खून लेना पड़ा। रश्मि अपने कार्य को सुचारू रूप से करती रही। 

कभी-कभी रमेश बड़बड़ा उठता” भारत मांँ क्या तुम मुझे क्षमा नहीं करोगी, मांँ मैं क्या करूँ? मैं तो दुश्मनों से आपको बचा नहीं पा रहा हूंँ। माँ मैं मरते दम तक तुम पर हो रहे अत्याचारों का बदला लूंँगा।” कभी कहता  क्या युद्ध समाप्त हो गया है ,क्या भारत माता स्वतंत्र हो गई है?”लेकिन रश्मि हमेशा रमेश के मुंँह पर हाथ रख देती ।

रश्मि की प्रेम पूर्वक सेवा से रमेश धीरे-धीरे स्वस्थ होने लगा।एक दिन रमेश ने डॉक्टर से पूछा” डॉक्टर साहब क्या युद्ध अब भी हो रहा है,अब तो मैं ठीक हूंँ, मुझे युद्ध में जाने की आज्ञा दीजिए ताकि मैं भारत माता का दुःख दूर कर सकूँ और भारत माता के ऊपर हो रहे अत्याचारों का बदला ले सकूंँ।

डॉक्टर साहब ने कहा  कि रमेश अभी तुम युद्ध में जाने के लिए असमर्थ हो और युद्ध इस समय पूर्णतः 

शांत हो गया है। अब तुम घर जाकर आराम करो‌ रमेश क्या तुम इस बात से अनभिज्ञ हो कि तुम्हारा पुनर्जीवन हुआ  है।

“डॉक्टर साहब बस मैं इतना जानता हूंँ कि मेरा बचना मुश्किल था अब आपने मुझे कैसे बचाया ,मैं इस बात से अनभिज्ञ  हू़ँ?”रमेश हाथ जोड़कर बोला।

“आओ रमेश मैं तुम्हें तुम्हारा जीवन लौटा देने वाली से मिला दूंँ।” 

रमेश डॉक्टर साहब के साथ अपने जीवन लौटा देने वाली से मिलने  चल दिया। डॉक्टर रमेश को बताने लगे कि रमेश तुम्हारी हालत बहुत नाजुकं थी और अगर…. बात पूरी भी न हो पाई थी कि अचानक रश्मि आती हुई दिखाई पड़ी।

डॉक्टर साहब ने जल्दी से रश्मि को बुलाया” सिस्टर इधर आइए।”

रश्मि के आने पर डॉक्टर साहब  रमेश से‌ बोले ” ये हैं तुम्हारा जीवन वापस पाने वाली सिस्टर रश्मि”।

रमेश रश्मि को नर्स के रूप में देखकर आश्चर्यचकित सा रह गया और मुस्कुराते हुए बोला “रश्मि, तुम- तुम यहांँ कैसे ?”

लेकिन रश्मि कुछ बोली नहीं और रमेश के चरण स्पर्श किए  तो डॉक्टर साहब बड़े आश्चर्यचकित होकर कभी रमेश को देखते और कभी रश्मि को।

तभी रमेश ने कहा रश्मि,” आज मैं बहुत खुश हूँ। आज तुमने नारी होकर भी देश के प्रति अपना कर्तव्य निभाया है ।”

“देश के प्रति अगर आपका फर्ज है तो हमारा भी तो देश के प्रति कुछ उत्तरदायित्व है।  रश्मि बोली 

फिर रमेश डॉक्टर साहब से बोले “डॉक्टर साहब यह मेरी पत्नी रश्मि है और फिर संपूर्ण बातें बता कर कहा कि डॉक्टर साहब वीर मैं नहीं, वीर तो  यह रश्मि है क्योंकि मैं इसी की प्रेरणा से यहांँ लड़ने आया था।” 

डॉक्टर साहब यह सुनकर रश्मि तथा रमेश से प्यार से बोले “मेरी बेटी तुम नारी नहीं देवी हो ।आज अगर तुम जैसी समस्त स्त्रियांँ भारत में हो जाएं तो आज हमारा भारत देश भी अन्य देशों की तरह स्वतंत्र रहकर उन्नति मार्ग पर बढ़ सकेगा । 

रमेश अब तुम अपने माता-पिता के पास रश्मि को लेकर जा सकते हो।

रमेश और रश्मि डॉक्टर से जय हिंद करके अपने घर जाने की तैयारी करने के लिए चल दिए।।

आशा जाकड़ 

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