Satire

मुंबई लोकल और उसके यात्री एक हास्य व्यंग्य

जो पहले चढ़ा, वो दरवाजे पर खड़ा रहेगा। अगर भीड़ में आपका बैग किसी को लगे, तो वो उसे अपनी…

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व्यंग्य- ये कैसे हुआ

इतना सस्ता प्याज चलते चलते इतना महंगा होने की गुत्थी कोई नहीं सुलझा पा रहा है

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व्यंग्य – और क्या चाहिए

पागल हो क्या तुम ? मैं लड़के से शादी कर रही हूं ये क्या कम है । और क्या चाहिए…

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व्यंग्य – कचरा…

कचरा भी कपालभाति है, वो गहरे अर्थों तक पहुँचता है!

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व्यंग्य- सदी की शादी

खुराफाती तुम कवि कम और पक्के खुराफाती ज्यादा हो । इसीलिए उस शाही शादी में हर किसी को बुलाया गया…

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तुमको याद रखेंगे गुरु

आइए महसूस कीजिये पब्लिसिटी के ताप को,मैं फिल्मवालों की गली में ले चलूंगा आपको”

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में दिल-ए-बैंक बोल रहा हूँ

अब मैं क्या बताऊँ आपको, आंसू और पसीना आपका बह रहा है और दिल मेरा रो रहा है, हां एक…

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व्यंग्य – लखनऊ का संत

इसकी गलियों में फरिश्तों के पते मिलते हैं

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व्यंग्य – और लैला मजनू मिल गए

हुस्न हाजिर है मुहब्बत की सजा पाने को कोई पत्थर से ना मारे मेरे दीवाने को । मेरे जलवो की…

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व्यंग्य – हमारी बड़ी बहू

हमारी सोच पर ब्रेक लगाते मियाँ भोपाली मुस्कुराये फिर पान की पीक को निगलते  गँभीर चेहरा बनाते हमें टोक बैठे."मोहतरमा,ऊ…

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