जब “मंजिल” से हुई, गुफ्तगू,हर “मोड़” पर “कश्मकश” थी,कभी काँटे लदे,कभी कंकड़ बिछे,“मजबूर” चलने को जिंदगी थी। तूफ़ां तो,कभी हवाओं…
Read More »मेरी कलम से
शब्द तुम बोलते वक्त कहाँ चले जाते हो?समय पर मेरे काम क्यों नहीं आते हो?मैं निःशब्द – सी रिक्त हो…
Read More »सक्षम, अहिंसक और वैश्विक वैभव का सांस्कृतिशाली देश।स्वाधीनता के अमृत काल के पावन अजेय काल में विश्व के सर्वाधिक आबादी…
Read More »मैं स्त्री हूँ ,काम से लौटकर, काम पर जाती हूँ।स्थान बदलते ही,नाम नया पाती हूँ।। सिर से लेकर पैर तलक,हर…
Read More »सरल होते हैं विचार मेरे जब अपनी बात में हिंदी में कहता हूंऔर लगे प्रिय मुझे यह जब हर शब्द…
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