व्यंग्य – हमारी बड़ी बहू
वर्तमान में हिन्दी को लेकर बहुत तरह की बातें हो रहीं हैं,राष्ट्रभाषा बनाने की बयानबाजी भी आँग्ल भाषा में हो रही है। यह सब देख कर मन हुआ एक छोटी सी कहानी सुनाने का …।
सदियों से हिंदुस्तान संस्कृत का घर है उसकी बेटी हिंदी बड़े नाजों से पली बढ़ी और मां के आंचल में फलती फूलती रही
समय के साथ उसकी बेटियां मैथिली बुंदेली भोजपुरी अवधि की भी ननिहाल में पूरे अधिकार से खेलते कूदते हुए परविरश हो रही है … हिंदी के भाई भारत ने भी पूरी दुनिया में अपने वैभव का सदियों तक लोहा मनवाया .. क्या मालूम था यही वैभव एक दिन दुनिया की आंख की किरकिरी बन जायेगा सो
बेटा भारत भी अंग्रेजो की सोहबत में रहते रहते कब इंडिया बन गया पता ही नहीं चला …। गोरी मेम अंग्रेजी से नैन मटकका करते करते ये इश्क परवान चढ़ गया .. संस्कृत की बहु अंग्रेजी हो चली थी .. रही सही कसर नई बहु अंग्रेजी ने पूरी कर दी ..
आज हवेली को खूब सजाया ,सँवारा जा रहा था।रंग रोगन करवाया जा रहा था। हर कोने ,आँगन को अच्छे से साफ कर के रंगोली बनाई जा रहीं थीं। आखिर होता क्यों नहीं ..हवेली की बड़ी बहूरानी बहुत इंतजार के बाद आ रहीं थीं। हर तरफ हर्ष,उल्लास और एक प्रतीक्षा थी ..बड़े बड़े लाउडस्पीकर से एक ही गीत बार बार बजाया जा रहा था …”दुल्हन चली,पहन चली ,तीन रंग की चोली ,बाँहों में लहराये गंगा-जमुना …….।”
आखिर वह दिन आ ही गया जब नवनवेली दुल्हन लाज का घूंघट ओढ़ अपनी आन -बान -शान के साथ हँसिनी सी चाल से चलती हवेली की ड्योढ़ी पर पाँव धरती है। हर तरफ रोशनी,पटाखे आतिशबाजी का शोर ,रसोईघर से उठती पकवानों की खुशबू…। अंग्रेजी बहु ने ठाठ से हवेली में प्रवेश किया ।अपनी मधुरता,बोली,वेशभूषा और व्यवहार से सभी की पसंदीदा मालकिन बन गयी। जो एक बार उससे मिल लेता ,मुरीद हो जाता।उसके व्यवहार व कार्यकुशलता से सब प्रसन्न थे। ..पर उसके पति इंडिया पर अंग्रेजी बहुरानी ,रहन-सहन का भूत सवार था। घर की रोटी से ज्यादा उन्हें विदेशी भोजन शराब का चस्का था। कहने को हवेली और गाँव वालों के लिये संस्कृत की बेटी और भारत की बहन सोण चिरैया बहुत सम्मानीय थी। सभी उसका गुणगान करते ।कसीदे पढ़ते। पर जिस बेटी को उसके घर में ही पनाह ना मिले भाभी त्रिस्कृत करे भाई ध्यान ना करे तो उसके भाग्य को कैसे सँवारा जा सकता है ?
पर सोणचिरैया हिंदी ने ने न तो अपनी मर्यादा छोड़ी न व्यवहार बदला और न वेशभूषा। अपितु अपनी माँ संस्कृत के साथ आगे अविचल भाव से बढ़ती गयी। वक्त बीता हवेली के किशोर युवा होने लगे तो वह समयानुसार बदलते वक्त के साथ चलने लगे। और वक्त के साथ दूसरी बीवी बन कर उर्दू रानी हवेली में आईं। अपनी नाज नज़ाकत व अंदाज से सबको मोहने लगीं। हर बात में नज़ाकत और लचीलापन हर किसी पर तारी होने लगा। सोण चिरैया का अस्तित्व अपनी जगह था पर अब उसका स्थान दूसरी बहुओं ने ले लिया।
बड़ी बहन हिंदी वर्जनाओं में दबी अपनी खूबसूरती को घूंघट ओढ़ छिपाने लगी और पूरी हवेली की जिम्मेदारी हिंदी के जिम्मे थी कब सोण चिरैया से सोणा हो गयी पता ही न चला। वह सिर झुकाये अपनी जिम्मेदारी पूरी करती रहती। हवेली काहर नियम ,कायदा,कानून बदल चुका था ।जहाँ एक तरफ अंग्रेजी बहु और नयी बहु उर्दू .. अपनी जगह बनाने लगी वहीं इन सबकी सिरमौर मैम हो गयी। चाहे जन्मदिन हो ,मृत्यु हो ,साँस्कृतिक आयोजन हों, जलसा हो ..सब जगह मैम का स्पेशल निमंत्रण आता। उनके दायें हाथ उर्दू देवी की सीट लगती ।
सोणा बेचारी लज्जित सी घर के नौकरों के साथ मिल कर काम करती,बतियाती,उनके दुःख सुख में भागीदारी करती। पर जहाँ श्रेय मिलना चाहिये वह मैम के खाते में चला जाता या उर्दू के खाते में। शिक्षा के रंग ढंग भी बदल गये थे। दो साल के बच्चे आँग्ल भाषा में गिटपिट करते तो सभी झूम उठते। वहीं अगर कोई बड़ी बहू से सीखी भाषा में कविता गाता तो हास्य का पात्र बनता। इस चक्कर में संस्कृत माँ कहीं बहुत पीछे छूट गयी ..और बहनें मिथिला ,मैथिली ,ब्रजरानी,भोजपुरी अवधी..सब बड़ी बहू के साये में धीरे धीरे अँकुआने लगीं। बड़ी बहन सोणा ने सदैव की तरह आदतन इन को अपनी गोद में बिठा दुलराया ,हिम्मत बंधाई।
इस सब में प्रौढ़ा से कब वृद्धावस्था की तरफ बढ़ बीमार रहने लगी सोणा किसी ने न सोचा। तब संस्कृत माँ से किसी ने अचानक सोणा बिटिया के बारे में पूछ लिया ..तब सब को हवेली की बड़ी बहू का ध्यान आया ।कोशिश शुरु हुईं पुनः हवेली की बड़ी बहन का दर्जा देने की।पर अब लोगों के मन में मैम और उर्दू- बहुओं ने भी स्वयं की जगह बना ली थी। बड़ी बेटी पुनः खड़े होने की कोशिश में डगमगाते पाँव टिकाने की कोशिश कर रही है।क्यों कि दूरदृष्टा बड़ी बेटी जानती है ये घर अब उसका नहीं रहा अब उसकी वो इज्जत नहीं रही… धीरे धीरे ही सही हिंदी बेटी नेपथ्य में जा रही है …एक समृद्ध भाषा का भविष्य में क्या हश्र होने वाला है । वैसे भी अभी एक पर्दा पड़ा है।
तो यह कहानी थी हवेली की बड़ी बेटी हिंदी की जिसे अपनों ने ही दुत्कारा उसका कौन सहारा ।
यह कहानी सुन कर हमारे मित्र,भाई समान सूरमा भोपाली जी बिदक गये।बोले -“क्या बात करती हैं मोहतरमा?तमाम अखबार, सोशल मीडिया प्रिंट मीडिया,इलेक्ट्रॉनिक मीडिया,अला फलां माध्यमों में हिन्दी का बोलबाला है। हमारी बड़ी बहू को आप कमतर कैसे आँक रही हैं भला।”
भौचक्के से हम सोचते रह गये। भोपाली बात तो सही कह रिया था ..।कितने ही हिन्दी रचनाकार हैं जो बड़े बड़े मंचों से चार चार माइकों में मुँह ठूँस कर जोर जोर से चिल्लाते हुये काव्यपाठ करते हैं।एक दिन में थोक के भाव हिन्दी में सृजन करते हैं बीस कवितायें,दस गज़लें,पाँच नवगीत,चार गीत, पच्चीस दोहे ,दो कहानी और चार -छः छंद और भी न जाने क्या क्या लिख रहें हैं..लगता है दैनिक क्रियाओं से निबटते निबटते भी दो चार शेर तैयार हो ही जाते होंगे।हर दिन ढेरो अखबारों ,पत्रिकाओं ,ई पत्रिका में छप रहे हैं ।लिफाफों से सम्मानित हो रहे हैं…..
हमारी सोच पर ब्रेक लगाते मियाँ भोपाली मुस्कुराये फिर पान की पीक को निगलते गँभीर चेहरा बनाते हमें टोक बैठे.”मोहतरमा,ऊ क्या है कि आप भी तो जभरदस्त प्रशंसिका हैं हमारी बडकी बहू ..मम..मतवल हिन्दी की।तो कर डालिये कुछ फड़कता आयोजन बहू की दिशा -दशा सुधार के लिए ।बकौल आपके हिन्दी को.अपना स्थान दिलाने के लिये।”
हम भी मुस्तैद हो गये ..और सोच समझ कर एक आह्वान तैयार कर भोपाली के सामने रखा -“हिन्दी की महान चर्चित हस्तियों वाला देश आज अलगाव.,हिंसा,स्वार्थ, अराजकता,आतंक जैसी प्रवृतियों में आकंठ डूब रहा है।यह हिन्दी के लिये भी घातक स्थिति है।अतः हिन्दी के स्वर्णिम भविष्य हेतु हम हिन्दी लेखक संघ का एकजुट हो सहयोग हेतु आह्वान.करते हैं..।”
मियाँ भोपाली ने तुरंत एक्शन लिया ,”मोहतरमा ,बड़ी बहू के उद्धार हेतु आपके इस आह्वान में शुद्व हिन्दी का सर्वथा अभाव है जो कि हिन्दी हेतु काफी खतरनाक हैं।तुरंत बदलिये।”
घबराते हुये हमने अपने संदेश के शब्द कुछ इस तरह बदले कि हिन्दी हमारे परिवार की बड़ी बहू की तरह है अतः उसका स्थान सुरक्षित रखने हेतु परिवार में आये दोषों को दूर करने और हिन्दी को.शीर्ष स्थान.दिलाने हेतु सहयोग करें।
अब तो मियाँ भोपाली कुछ तन कर और फैलते हुये बैठ गये और बोले यह क्या आप परिवारवाद की राजनीति लेकर बैठ गयीं जिज्जी?यह तो विरोधियों वाली भाषा है। इन सब में उलझ कर आप हिन्दी के लिये संघर्ष कैसे करेंगी?आपका स्वयं का एक दमदार व्यक्तित्व है…सोचिये …सोचिये ..आखिर ….मामला ..हिन्दी का है।”
भोपाली के मासूम चेहरे पर व्यंग की रेखायें गहरी हो रहीं थीं। उन्हें फैलते देख हमने हथियार डालना उचित समझा।मन ही मन प्रचलित हिन्दी में ही हिन्दी दिवस मनाने का निर्णय कर लिया ।समझ आ गया था कि *बड़ी बहू के जीवन में समझौता ही लिखा है ।*
मनोरमा जैन पाखी
मेहगाँव ,जिला भिंड
मध्यप्रदेश