व्यंग्य – और लैला मजनू मिल गए

हुस्न हाजिर है मुहब्बत की सजा पाने को कोई पत्थर से ना मारे मेरे दीवाने को । मेरे जलवो की खता है, जो यह दीवाना हुआ में हूं मुजरिम यह अगर, होश से बेगाना हुआ। “