राम जन्मभूमि आंदोलन
यह बात अक्टूबर १९९० की है जब एक प्रदेश के मुख्यमंत्री जी ने सत्ता के मद में चूर होकर निहत्थे प्रभू श्रीराम के भक्तों पर एक षड्यंत्र रचते हुए कहर बरपाया था। यह समय वह था जब पूरे देश में राम जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए देश में हर स्थान से कारसेवाएं निकाली जा रही थी। भिंड शहर में भी एकत्रित हुए कारसेवकों को सभी धर्मशालाएं, होटल आदि में भोजन एवं ढहराने की व्यवस्था युद्ध स्तर पर की गई थी क्योंकि भिंड (मध्य प्रदेश) से इटावा (उत्तर प्रदेश)की सीमा लगी हुई है।पूरे भिंड शहर में कारसेवकों का जोश, उत्साह भरपूर दिखाई दे रहा था। २७अक्टूवर १९९० को एक जुलूस निकाला गया जिसमें सभी कारसेवक अनुशासित होकर भिंड शहर की गलियों में नारे और भजन गाते चल रहें थे। जुलूस में नारे लगाए जा रहे थे बच्चा बच्चा राम का, जन्म भूमि के काम का,रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनायेंगे
इन्हीं नारों और जोश के साथ कारसेवकों ने २८ अक्टूबर १९९० को अयोध्या की ओर कूच किया। कारसेवकों की संख्या बहुत अधिक थी लेकिन रामलला के प्रति आस्था हिलोरें मार रही थी।जिनको बस में जगह नहीं मिली वह बसों की छतों पर, ट्रैक्टर, ट्रक, जीप और तो और कुछ कारसेवक पैदल ही आगे बढ़ने लगे। चारों ओर भीड़ ही भीड़ दिखाई दे रही थी।उस दिन भिंड (मध्य प्रदेश) और इटावा (उत्तर प्रदेश) को जोड़ने वाली चंबल नदी पर बना हुए पुल (जो आधा मध्य प्रदेश और आधा उत्तर प्रदेश में आता है) पर तबके उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, उनके सहयोगी और पुलिस ने निहत्थे राम भक्त कार सेवकों पर जो ज़ुल्म और कहर बरपाया था, गोलियां चलाई थी और कुछ कारसेवकों के निजी वाहनों में आग लगाई थी,वह सब कुछ मेंने अपनी आंखों से देखा था।उस दिन का जो नजारा था वह आज भी स्मरण में है।उस समय चंबल पुल पर ऐसा माहौल बना हुआ था जैसे कि दो देशों की सेनाएं आमने सामने युद्ध के मैदान में खड़ी हों।
श्री राम जन्मभूमि को मुक्त कराने के लिए एक तरफ भिंड सीमा पर कारसेवकों का हुजूम अपनी गिरफ्तारी देकर आंदोलन को समर्थन देने के खड़ा हुआ था तो वहीं दूसरी ओर (इटावा) जो कि मुलायम सिंह यादव का ग्रहक्षेत्र भी था, वहां पुलिस द्वारा छावनी बना दी गई थी। वहां पर वह नहीं चाहते थे कि इस रास्ते से कारसेवक उत्तर प्रदेश की सीमा में प्रवेश कर सकें। लेकिन शायद वह नहीं जानतें थे कि जो कारसेवक ३०अक्टूवर को अयोध्या जी में कारसेवा करने वाले हैं, वह पहले से ही अपनी अलग तैयारी में लगे हुए थे।
मुलायम सिंह यादव के आदेश पर १५ अक्टूवर से ही इस रास्ते को बंद कर आवागमन रोक दिया था और २२ अक्टूवर को चंबल नदी के इसी पुल के मध्य एक त्रिस्तरीय कांटेदार तारों की बाढ़ से मजबूत दीवार बना दी गई ताकि कोई भी इसे पार कर नहीं जा सकें।दीवार इस तरह से बनाई गई थी कि तारों में विधुत प्रवाह वह रहा था तथा दीवार के बीच में बड़े बड़े फाटक लगा दिए।६ इंच मोटी लोहे की चादरें दीवार में फंसा कर बीच की दीवारों में रेत भर दिया गया था।दीवार के ऊपर लोहे की मोटी पैनी पत्तियां लगा दी गई थी ताकि कोई भी इन दीवारों को फांद कर दूसरी ओर ना जा सकें, वहीं पानी में में भी नावों के द्वारा गस्ती की जा रही थी, बहुत कड़े इंतजाम किए गए थे क्योंकि उनका कहना था कि कोई भी परिंदा उत्तर प्रदेश की सीमा में प्रवेश नहीं कर सकता। कारसेवक चंबल घाटी के ऊंचे टीलों पर बैठे हुए थे।
सब कुछ शांतिप्रिय तरीके से हो, इस आंदोलन को यहां पर ही रोकने के लिए पहले से ही दोनों जिलों के जिलाधीशों के मध्य तय हुआ था कि यहां तक आने वाले कारसेवकों पर कोई भी गैर कानूनी कार्रवाई नहीं की जाएगी, सभी आने वाले कारसेवकों की ३०-३० के समूह में शांति पूर्वक तरीके से गिरफ्तार कर गिरफ्तारी ली जाएगी। कारसेवक दोपहर में ही चंबल पुल पर पहुंच गए थे अपनी गिरफ्तारी देने के लिए। लेकिन काफी इंतजार के बाद गिरफ्तारी शुरू नहीं की गई तब कारसेवकों को आदेश दिया गया कि इस दीवार को तोड़ दो। कारसेवकों ने साधुओं के चिमटे आदि लेकर ही दीवार तोड़नी शुरू कर दी। सिर्फ १५-२० मिनटों में ही वह मजबूत दीवार ठहा दी गई और मलबा पुल से नीचे पानी में फेंक दिया।
इन सबके बीच उत्तर प्रदेश पुलिस ने आंसू गैस की गोलियां चलानी शुरू कर दी। इससे पुल पर भगदड़ मच गई।कारसेवकों ने वापस जलते हुए गोले पुलिस के ऊपर फेंकना शुरू कर दिया। कारसेवकों में रामलला के लिए समर्पित भाव स्पष्ट दिखाई दे रहा था। तत्पश्चात् पुलिस ने निहत्थे कारसेवकों पर गोलियां चलाई। पुलिस को गोलियां चलाने का आदेश दिया गया। उस वक्त उत्तर प्रदेश पुलिस के साथ ए.डी.एम कुं विक्रम सिंह एवं मुलायम सिंह के भाई शिशुपाल सिंह ने उत्तर प्रदेश की सत्ता का दुरुपयोग करते हुए पुलिस के हथियार उनसे छीनकर निहत्थे कारसेवकों पर गोलियां चलाई, उनके साथ एक पत्रकार भी साथ में था। कारसेवकों के पास टूटी दीवार के पत्थर हाथों में थें और उनसे ही अपनी सुरक्षा कर रहे थे। लगभग एक घंटे तक उत्तर प्रदेश पुलिस मध्यप्रदेश की सीमा में आकर गोलियां चलाते रहें।
लगभग १४-१५ कारसेवक गोलियां लगने से घायल हो गए, उनके शरीर से खून बह रहा था।वो तो मध्यप्रदेश शासन द्वारा अपनी सीमा में चिकित्सा व्यवस्था पहले से कर दिए जाने से घायल कारसेवकों को तुरंत ही उपचार मिल गया इससे उनकी जान बच गई।एक कारसेवक श्री सत्यपाल अग्रवाल जी की इलाज के दौरान वीरगति को प्राप्त हो गए। उत्तर प्रदेश पुलिस ने मध्यप्रदेश की सीमा में लगे हुए टेंट और खड़े वाहनों में आग लगा दी।
मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के झूठे अहंकार और अपनी झूठी शान बचाने के लिए यह कृत्य किया गया। यहां ऐसा लग रहा था कि हम भारत मे नही बल्कि किसी युद्ध के मैदान में खड़े हुए हो,दो देशों में युद्ध हो रहा हो।
मुलायम सिंह यादव को उस समय समझना चाहिए था कि एकत्रित हुए कारसेवक कोई निजी मांगों या आंदोलन के लिए वहां एकत्रित नहीं हुए थे! वो लोग तो प्रभु श्रीराम के प्रति समर्पण और आस्था के लिए कारसेवा करना चाह रहे थे।
इस तरह से कारसेवकों के लिए पैदा की गई विपरीत परिस्थितियों के चलते ही ६ दिसंबर १९९२ को विवादित ढांचा ढहा।
और अंत में कई सदियों से चले आ रहे रामजन्म भूमि बावरी मस्जिद विवाद का माननीय सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयानुसार २० अगस्त २०२० को विध्वंस हुए ढांचे की ही जगह राम मंदिर बनाने का निर्णय सुनाया गया। २२ जनवरी २०२४ को प्रभू श्री रामलला जी की नये भव्य मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई।
में अपने आपको भाग्यशाली मानता हूं कि इस आंदोलन के दौरान मेरी भी एक छोटी सी सहभागिता रही और अब रामलला की प्राणप्रतिष्ठा अपनी आंखों के सामने देखना सुखद अनुभूति का अहसास कराता है।
जय श्री राम
संजीव जैन